अतिरिक्त मूल्य की दर २४१ . . . पहली दृष्टि में यह एक अचीव सी बात मालूम होती है कि स्थिर पूंजी को शून्य के बराबर मान लिया जाये। लेकिन हम रोजमर्रा यही करते हैं। मिसाल के लिए, अगर हम यह हिसाब लगाना चाहते हैं कि कपास के उद्योग से इंगलैस को कितना नका होता है, तो हम सबसे पहले उन कामों को घटा देते हैं, जो अमरीका, हिन्दुस्तान, मिम तवा अन्य देशों को कपास के बदले में की जा चुकी है। दूसरे शब्दों में, जिस पूंजी का मूल्य पैदावार के मूल्य में महब पुनः प्रकट होता है, हम उसे अपने हिसाब. में शून्य के बराबर मान लेते हैं। जाहिर है कि न केवल पूंजी के उस भाग के साथ, जिससे अतिरिक्त मूल्य प्रत्यक्षतः उत्पन्न होता है और जिसके मूल्य में होने वाले परिवर्तन का यह प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि मूल पूंजी के कुल मोड़ के साथ भी अतिरिक्त मूल्य के अनुपात का प्रार्षिक दृष्टि से भारी महत्व होता है। इसलिए तीसरी पुस्तक में हम इस अनुपात पर पूर्ण विस्तार के साथ विचार करेंगे। यदि पूंजी के एक भाग को भम-शक्ति में परिवर्तित होकर अपने मूल्य का विस्तार करना है, तो उसके लिए बरी है कि पूंजी का एक और भाग उत्पादन के साधनों में बदल दिया जाये। यदि अस्थिर पूंजी को अपना कार्य करना है, तो उसके लिए मावश्यक है कि 'स्थिर पूंजी उचित अनुपात में लगायी जाये। यह उचित अनुपात प्रत्येक मन-प्रमिया की विशिष्ट प्राविधिक परिस्थितियों द्वारा निर्धारित होता है। लेकिन किसी रासायनिक प्रकिया में यदि भमकों तथा अन्य वर्तनों की बरत पड़ती है, तो इससे यह बरी नहीं हो जाता कि रसायनल अपने विश्लेषण के परिणाम पर पहुंचते समय उनकी मोर ध्यान दे। यदि हम मूल्य के सृजन के साप तथा मूल्य की मात्रा में होने वाले परिवर्तन के साथ उत्पादन के साधनों के सम्बंध को ध्यान में रखते हुए उनपर विचार करें और किसी और बात की मोर ध्यान न दें, तो ये साधन केवल उस सामग्री के रूप में सामने पाते हैं, जिसमें मूल्य की सूचन-की, पानी भम- शक्ति, अपने को समावेश कर देती है। इस सामग्री का न तो स्वल्प किसी महत्व का होता है और न उसका मूल्य ही। परत सिर्फ इतनी होती है कि यह सामग्री इतनी पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो कि उत्पादन की प्रक्रिया में बो भम वर्ष किया जाय, उसका यह अवशोषण कर ले। यह मात्रा पहले से निश्चित हो, तो सामग्री का मूल्य चाहे बढ़ पाये, चाहे घट जाये और चाहे तो भूमि और सागर की भांति मूल्यहीन हो जाय, उसका मूल्य के सृजन पर या मूल्य की मात्रा के परिवर्तन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।' इसलिए, सबसे पहले हम स्थिर पूंजी को शून्य के बराबर मान लेते हैं। पुनांचे मूल पूंजी 'स्थि+पस्थि' से 'अस्थि' में परिणत हो जाती है, और पैदावार के मूल्य (स्थि+पस्थि)+मके बजाय अब हमारे पास महब वह मूल्य (मस्थि+म) होता है, जो उत्पावन-प्रक्रिया में उत्पन्न हुआ है। उत्पादन प्रक्रिया में मो नया मूल्य उत्पन्न हुमा है, यदि हम उसे १८० पौड मान लें, तो यह राम उस समस्त मम का प्रतिनिधित्व करती है, वो उत्पादन प्रक्रिया के दौरान में खर्च किया गया है। इस काम में से यदि हन अस्थिर पूंची के मूल्य के १० पोल घटा दें, तो हमारे पास १० पौण बच रहते हैं, जो अतिरिक्त मूल्य होते हैं। १० पौण की यह रकम, अपवा 'म', . 1 सुक्रेटियस ने जो कुछ कहा है, वह स्वतःस्पष्ट है। "Nil posse creari de nihilo," अर्थात् शून्य में से कुछ नहीं पैदा किया जा सकता। मूल्य का सृजन श्रम-शक्ति का श्रम में रुपान्तरण है। श्रम-शक्ति बद वह ऊर्जा है, जो पोषक पदार्थ द्वारा मानव-शरीर में स्थानांतरित कर दी जाती है। 16-45
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