पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२४५

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२४२ पूंजीवादी उत्पादन उत्पादन-प्रश्यिा में उत्पन्न प्रतिरिक्त मूल्य की निरपेन मात्रा को अभिव्यक्त करती है। सापेन उत्पावित मात्रा, या अस्थिर पूंजी की प्रतिशत वृद्धि, बाहिर है, अस्थिर पूंजी के साथ प्रतिरिक्त के अनुपात से निश्चित होती है, या उसे अस्थि के द्वारा व्यक्त किया जाता है। हमने . को उदाहरण ले रखा है, उसमें यह अनुपात है, जिसका मतलब है १०० प्रतिशत की वृद्धि। अस्थिर पूंजी के मूल्य की सापेक्ष वृद्धि, या अतिरिक्त मूल्य की सापेन मात्रा को मैं "अतिरिक्त मूल्य की बर" कहता हूं।' . . 1 हम यह देख चुके हैं कि मजदूर अम-प्रक्रिया के एक भाग में केवल अपनी श्रम-शक्ति का मूल्य, पर्यात् केवल अपने जीवन-निर्वाह के सापनों का मूल्य, पैदा करता है। अब उसका काम चूंकि सामाजिक बम-विभाजन पर प्राधारित एक व्यवस्था का अंग होता है, इसलिए वह जीवन- निर्वाह के लिए प्रावश्यक जिन वस्तुओं का स्वयं उपभोग करता है, उनको सीधे तौर पर जुद पैसा नहीं करता। उनके बजाय वह कोई ऐसा माल, मिसाल के लिए, सूत , पैदा करता है, जिसका मूल्य इन पावश्यक वस्तुओं के मूल्य के बराबर होता है, या जिसका मूल्य उस मुद्रा मूल्य के बराबर होता है, जिसके द्वारा ये प्रावश्यक वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। इस उद्देश्य के लिए खर्च होने वाला उसके दिन भर के श्रम का भाग उन पावश्यक वस्तुओं के मूल्य अनुपात के अनुसार कम या ज्यादा होगा, जिनकी उसे प्रोसतन हर दिन मावश्यकता होती है। या, जो कि एक ही बात है, वह उस श्रम-काल के अनुपात में कम या ज्यादा होगा, जिसकी इन मावश्यक वस्तुओं को पैदा करने के लिए मौसतन बहरत होगी। यदि इन मावश्यक वस्तुओं का मूल्य प्रोसतन छः घण्टे के श्रम का प्रतिनिधित्व करता है, तो मजदूर को इतना मूल्य पंवा करने के लिए प्रोसतन छः घण्टे काम करना चाहिए। यदि वह पूंजीपति के वास्ते काम करने के रूप से खुद अपने लिए काम करता होता, तो भी अन्य बातों के समान रहते हुए उसे अपनी अम-शक्ति का मूल्य पैदा करने के लिए और उसके द्वारा जीवन-निर्वाह के उन सापनों को प्राप्त करने के लिए, जिनकी उसे अपने को बनाये रखने-अथवा अपना पुनरुत्पादन जारी रखने के वास्ते बहरत होती है, इतने ही घण्टों तक मम करना पड़ता। लेकिन, जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, मजदूर अपने दिन भर के श्रम के जिस हिस्से में अपनी श्रम-शक्ति का मूल्य, मान लीजिये ३ शिलिंग, पैदा करता है, उसमें वह केवल अपनी श्रम-शक्ति के उस मूल्य का सम-मूल्य ही पैदा करता है, जिसे पूंजीपति पेशगी प्रदा कर चुका है। इस तरह वह जो 1मैं इस नाम का उसी ढंग से प्रयोग करता हूं, जिस ढंग से अंग्रेज लोग "rate of profit", "rate of interest" ("नफ़े की दर", "सूद की दर") का प्रयोग करते हैं। पुस्तक ३ में हम देखेंगे कि अतिरिक्त मूल्य के नियमों को जानते ही मुनाफ़े की दर हमारे लिए कोई रहस्यमयी बात नहीं रह जाती। परन्तु क्रम को उलट देने पर हम दोनों में से किसी भी चीज को नहीं समझ सकते हैं। [तीसरे जर्मन संस्करण में जोड़ा गया फुटनोटः लेखक ने यहां अपने जमाने में प्रचलित अर्थशास्त्र सम्बन्धी भाषा का प्रयोग किया है। पाठक को याद होगा कि पृ० १८२ (वर्तमान संस्करण के पृ० १७४) पर यह सिद्ध किया जा चुका है कि वास्तव में पूंजीपति मजदूर को "पेशगी": नहीं देता, बल्कि मजदूर पूंजीपति को “ पेशगी" देता है।-के. ए.]