२५६ पूंजीवादी उत्पादन अन्य सब बातें पहले जैसी रहती है, तो अतिरिक्त मम घण्टों से कम होकर घण्टे का रह जायेगा, और इन ४ घण्टों में पापको अतिरिक्त मूल्य की बहुत लाभदायक पर मिल जायेगी। इन १ घण्टों में भाप २६ प्रतिशत की दर से अतिरिक्त मूल्य कमायेंगे। लेकिन यह भयानक "अन्तिम घण्टा", जिसके बारे में प्रापने इतनी कहानियां गढ़ रती है, जितनी कि कयामत के दिन के पहले ईसा द्वारा एक सहन बों तक राज्य करने की कल्पना में विश्वास करने वालों ने नहीं गढ़ीं,-वह "अन्तिम घन्टा" "all bosh" ("एकदम बकवास") है। यदि यह "अन्तिम घन्टा" माता भी रहे, तो इससे न तो पापका पसल मुनाका खतम हो जायेगा और न ही जिन लड़के-लड़कियों को मापने नौकर रख रखा है, उनके दिमाग दूषित हो जायेंगे। और जब कमी सचमुच माप लोगों का अन्तिम घंटा" बबने . यदि एक तरफ़ सीनियर ने यह साबित कर दिया था कि कारखानेदार का प्रसल मुनाफा , अंग्रेजों के सूती उद्योग का अस्तित्व और दुनिया की मण्डी पर इंगलैण्ड का प्राधिपत्य - सब ", काम के अन्तिम घण्टे" पर निर्भर करते हैं, तो, दूसरी तरफ़, डा. ऐण्ड्यू उरे ने यह प्रमाणित कर दिया है कि यदि बच्चों को और १८ वर्ष से कम आयु के लड़के-लड़कियों को पूरे १२ घण्टे तक फैक्टरी के स्नेह भरे एवं विशुद्ध नैतिक वातावरण में रखने के बजाय उनको एक घण्टा पहले ही बाहर निकालकर इस निर्मम एवं तुच्छ संसार में छोड़ दिया जायेगा, तो निठल्लेपन और व्यसनों के कारण उनकी पात्मानों को कभी मुक्ति प्राप्त न हो सकेगी। १८४८ से ही फैक्टरी-इंस्पेक्टर लोग इस "अन्तिम" एवं “निर्णायक घण्टे" को लेकर मालिकों का मजाक बना रहे है। चुनांचे, मि० होवेल ने अपनी ३१ मई १८५५ की रिपोर्ट में लिखा है: "यदि यह चातुर्यपूर्ण हिसाब (वह सीनियर को उद्धृत करते हैं) सही होता, तो १८५० से ही ब्रिटेन की stunt gat feest è a Territ glait " (Reports of the Insp. of Fact. for the half year, ending soth April, 1855" ["३० अप्रैल १८५५ को समाप्त होने वाली छमाही की फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट"], पृ० १९,२०) १० घण्टे का बिल पास हो जाने के बाद, १८४८ में, सन की कताई करने वाली कुछ मिलों के मालिकों ने, जिनके कारखाने संख्या में बहुत ही कम और गैसेंट तथा सोमेसेंट की सीमा पर जहां-तहां बिखरे हुए थे, अपने कुछ मजदूरों से जबर्दस्ती इस बिल के खिलाफ़ एक दरखास्त पर दस्तखत कराये। इस दरखास्त की एक धारा इस प्रकार पी: "माता-पिता के रूप में प्रावेदकों का विचार है कि एक घण्टे का अतिरिक्त अवकाश उनके बच्चों के नैतिक पतन का कारण बन जायेगा, क्योंकि उनका यकीन है कि मालस्य व्यसन का जनक होता है।" इसके बारे में ३१ अक्तूबर १८४८ की फैक्टरी-रिपोर्ट में कहा गया है : “इन नेक एवं कोमल-हदय माता-पितामों के बच्चे सन कातने की जिन मिलों में काम करते है, वे कच्चे माल के रेशे तथा धूल से इस बुरी तरह भरी रहती है कि कताई के कमरों में १० मिनट बड़ा होना भी बहुत ही बुरा लगता है। कारण कि इन कमरों में घुसते ही मापकी पांडे, कान, नाक पौर मुंह फौरनं सन की धूम के उन बादलों से भर जाते हैं, जिनसे बचना वहाँ प्रसम्भव होता है, और मापको सत तकलीफ़ होने लगती है। मशीनें इस अंधाधुंध तेजी के साप पलती है कि श्रम करने वाले को . .
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