काम का दिन २६५ अनुभाग २ - अतिरिक्त श्रम का मोह। कारखानेदार और सामन्त अतिरिक्त मम का पूंजी ने पाविष्कार नहीं किया है। जहां कहीं समाज के एक भाग का उत्पादन के साधनों पर एकाधिकार होता है, वहां मजदूर को, वह स्वतंत्र हो या न हो, अपने जीवन-निर्वाह के लिये जितने समय तक जरी तौर पर काम करना होता है, उसके अलावा उसे उत्पावन के सापनों के स्वामियों के जीवन-निर्वाह के साधन तैयार करने के लिये कुछ अतिरिक्त समय तक काम करना पड़ता है। उत्पादन के साधनों का यह स्वामी एपंस का momos ntronic (अभिजात) है, या प्राचीन इरिया के धर्मतंत्र का शासक है, civis Romanus (रोमन नागरिक) है या नोमन सामन्त, अमरीकी गुलामों का मालिक है या बैलोशिया का श्रीमन्त, या माधुनिक बीदार अथवा पूंजीपति है, इससे कोई पन्तर नहीं पड़ता। किन्तु यह बात स्पष्ट है कि समाज के किसी भी ऐसे पार्षिक संघटन में, जिसमें पैदावार के विनिमय-मूल्य का नहीं, बल्कि उपयोग-मूल्य का प्रधान महत्व होता है, वहां पावश्यकताओं की एक छोटी या बड़ी निश्चित संख्या ही होती है, और यह संख्या अतिरिक्त मम को सीमित कर देती है। ऐसे किसी भी समाज में स्वयं उत्पादन के स्वरूप से अतिरिक्त मम की कोई ऐसी प्यास नहीं पैदा हो सकती, मो कभी बुम न सके। चुनांचे प्राचीन काल में लोगों से प्रत्यषिक काम लेने की प्रथा केवल उसी समय भयानक रूप धारण करती थी, जब उसका उद्देश्य विशिष्ट एवं स्वतंत्र मुद्रा-रूप में विनिमय- मूल्य प्राप्त करना होता था,-यानी केवल सोने और चांदी के उत्पादन में ही प्रत्यधिक परिचम कराने की प्रथा भयंकर रूप धारण करती थी। सोने और चांदी के उत्पादन में श्रम करने वालों से इस बुरी तरह काम लेना कि वे मेहनत करते-करते मर जायें, एक मानी और मानी हुईबात थी। इसके लिये केवल सिसिली के विनोबोरस की रचना को पढ़कर देखिये, पूरा हाल मालूम हो जायेगा। फिर भी प्राचीन काल में ये बातें अपवाद-स्वरूप बीं। लेकिन जैसे ही कोई ऐसी . 1"जो लोग श्रम करते हैं, वे... वास्तव में अपना... और पेन्शन पाने वालों का (जो कि धनी कहलाते हैं)- दोनों का-पेट भरते हैं।" (Edmund Burke, उप० पु०, पृ०२।) नीबूर ने अपने “Romische Geschichte" ('रोमन इतिहास') में बड़े ही भोलेपन के साथ लिखा है : “यह बात स्पष्ट है कि प्राचीन इरिया के जैसे निर्माण कार्य', जिनके ध्वंसावशेष भी हमें पाश्चर्यचकित कर देते हैं, केवल सामन्तों और कृषि-दासों के छोटे-छोटे (!) राज्यों की उपस्थिति में ही सम्भव थे। सिस्मोंदी ने इसकी अपेक्षा अधिक सूझ-बूझ का परिचय दिया है। उसने लिखा है कि "बूसेल्स की लेस" केवल मजदूरों से काम लेने वाले सामन्तों और मजदूरी पर काम करने वाले दासों के समाज में ही तैयार हो सकती थी। 3 "(मिश्र, इथियोपिया और अरब की सीमाओं पर पायी जाने वाली सोने की खानों में काम करने वाले) इन प्रभागों को देखकर कोई भी उनकी दीन दशा पर तरस खाये बिना नहीं रह सकता। ये लोग अपनी देह तक को साफ़ नहीं रख सकते और न ही अपनी नग्नावस्था को छिपाने के लिये कपड़े जुटा सकते है। यहां न तो बीमार का कोई खयाल किया जाता है और न कमजोर का; यहां न तो बुढ़ापे पर रहम बाया जाता है और न पौरत की शारीरिक दुर्व- लता पर। यहां तो कोड़ों की मार के नीचे सब को उस वक्त तक काम करते रहना पड़ता है, जब तक कि मौत पाकर उनको तमाम यातनामों और पीड़ाओं से छुटकारा नहीं दिला देती। ("Diodor's von Sicilien Historishe Bibliothek" [Stuttgart, 1828), grey , 40474 १३ [पु० २६०]1) »
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