काम का दिन २६६ . भम-शक्ति को अंधाधुंध चूसने की पूंजी की प्रवृत्ति पर रोक लगाते हैं। उस मजबूर-मान्दोलन के अलावा, बो दिन-प्रति-दिन प्रषिक डरावना रूप धारण करता जा रहा है, कारखानों के मजदूरों के श्रम को सीमित करना उसी तरह पावश्यक हो गया था, जिस तरह इंगलैड के खेतों में बनावटी सार (guano) का प्रयोग करना। खेती में लालब की अंधी मिस लूट ने धरती की उर्वरता को नष्ट कर दिया था, उसी ने उद्योग में राष्ट्र की जीवन्त शक्ति को मानो जड़ से उतार दिया था। इंगलड में समय-समय पर फैलने वाली महामारियां इसका उतना ही स्पष्ट प्रमाण है, जितना कि जर्मनी और फ्रांस का गिरता हुमा सैनिक स्तर।' १८५० का Factory Act (फेक्टरी-कानून), जो पाजकल (१८६७ में) लागू है, प्रोसतन १० घण्टे के दिन की इजाजत देता है। यानी पहले पांच दिन सुबह ६ बजे से शाम के ६ बजे तक १२ घण्टे काम कराया जा सकता है, जिनमें प्राधे घण्टे की नाश्ते की और एक घण्टे की खाने की कुट्टी शामिल होती है, और इस तरह १० घण्टे काम के बचते हैं, शनिवार को सुबह छः बजे से तीसरे पहर २ बजे तक ८ घण्टे काम कराया जा सकता है, जिनमें से प्राधा घण्टा नाश्ते के लिए होता है। इस तरह काम के कुल ६० घण्टे बचते हैं,- पहले पांच दिन घण्टे रोजाना और आखिरी दिन घण्टे। इन कानूनों के कुछ संरक्षक पौर of . 1"यदि किसी प्रजाति के जीव अपनी प्रजाति के पौसत भाकार से अधिक बड़े होते हैं, तो पाम तौर पर और कुछ सीमाओं के भीतर यह उनकी सम्पन्नता का प्रमाण होता है। जहां तक मनुष्य का सम्बंध है, यदि किन्हीं भौतिक अथवा सामाजिक कारणों से उसका जितना विकास होना चाहिये , उतना नहीं होता, तो उसकी शारीरिक ऊंचाई कम हो जाती है। योरप के उन सभी देशों में, जिनमें अनिवार्य सैनिक भरती जारी है, इस प्रथा के लागू होने के समय की अपेक्षा प्रब वयस्क पुरुषों की मौसत ऊंचाई कम हो गयी है और सैनिक सेवा के लिए उनकी सामान्य योग्यता का स्तर गिर गया है। क्रान्ति (१७८९) के पहले फ्रांस में पैदल सेना में भरती होने के लिए आवश्यक अल्पतम ऊंचाई १६५ सेण्टीमीटर थी, १८१८ में (१० मार्च के कानून द्वारा) उसे १५७ सेण्टीमीटर कर दिया गया, और २१ मार्च १८३२ के कानून के अनुसार उसे १५६ सेण्टीमीटर में बदल दिया गया था। फ्रांस में पोसतन प्राधे से ज्यादा भादमी ऊंचाई कम होने या किसी अन्य शारीरिक दुर्बलता के कारण फ़ौज में भरती नहीं किये जाते। १७८० में सेक्सोनी में सैनिक स्तर १७८ सेण्टीमीटर था। प्रब वह १५५ सेण्टीमीटर है। प्रशिया में वह १५७ सेण्टीमीटर है। मई १८६२ के बवेरियन गजट "Bayriche Zeitung" में डा० मायेर का एक बयान छपा है। उसमें बताया गया है कि वर्ष के पोसत का यह परिणाम है कि प्रशिया में जो पादमी अनिवार्य भरती में बुलाये जाते हैं, उनमें एक हजार में से ७१६ प्रादमी सैनिक सेवा के अयोग्य होते है,- ३१७ ऊंचाई कम होने के कारण अयोग्य होते हैं और ३६६ शारीरिक दोषों के कारण... १८५८ में बर्लिन को जितने रंगरूट देने चाहिये थे, वह नहीं दे सका। उनमें १५६ भादमियों की कमी रह गयी।" (J. von Liebig, "Die Chemte in threr Anwen- dung auf Agrikultur und Physiologie", 1862, ७ वां संस्करण, खण्ड १, पृ० ११७, ११८1) ३१८५० के फैक्टरी-कानून का इतिहास इसी अध्याय में प्रागे मिलेगा।
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