दूसरे जर्मन संस्करण का परिशिष्ट २५ - "Das Kapttat" में प्रयोग की गयी पत्ति के बारे में जो तरह-तरह की परस्पर-विरोधी पारणाएं लोगों ने बना ली है, उनसे मालूम होता है कि इस पत्ति को लोगों ने बहुत कम समझा है। चुनांचे पेरिस की *Revue Positiotste" ने मेरी इसलिये भर्त्सना की है कि एक तरफ तो मैं पर्यशास्त्र का प्रतिभौतिक ढंग से विवेचन करता हूं और दूसरी तरफ़-खरा सोचिये तो! में भविष्य के बाव लानों के लिये नुसने (शायद कोतवावी नुसजे?) लिखने के बजाय केवल वास्तविक तथ्यों के पालोचनात्मक विश्लेषण तक ही अपने को सीमित रखता हूं। जहां तक प्रतिभूतवाद की शिकायत है, उसके जवाब में प्रोफेसर जीवेर ने यह लिखा है कि "वहां तक वास्तविक सिद्धान्त के विवेचन का सम्बंध है, मार्स की पत्ति पूरी अंग्रेजी पारा की निगमन-पत्ति है, और इस धारा में तमाम गुण और अवगुण मौजूद है, जो सर्वोत्तम सैद्धान्तिक प्रशास्त्रियों में पाये जाते हैं। gato al "Les Théoriciens du Socialisme en Allemagne. Extrait du Journal des Economistes, Juillet et Aodt 1872" ñ ar atacante किया है कि मेरी पत्ति विश्लेषणात्मक है, और लिखा है कि "Par cet ouvrage M. Marx se classe parml les esprits analitiques les plus Eminents" ("इस रचना द्वारा भीमान मार्स ने सबसे प्रमुख विश्लेषणकारी प्रतिमानों की पंक्ति में स्थान प्राप्त कर लिया है")। जर्मन पत्रिकाएं, बाहिर है, "हेगेलवावी ढंग से बाल की खाल निकालने" के खिलाफ चील रही हैं। सेप्ट पीतसंबुर्ग के 'योरपियन-मसंजर' नामक पत्र ने एक लेख में *Das Kapital" की केवल पति की ही चर्चा की है (मई का अंक, १८७२, पृ०४२७-४३६) । उसको मेरा सोन का तरीका तो प्रतियथार्थवादी लगता है, लेकिन विषय को पेश करने का मेरा ढंग , उसकी दृष्टि से, दुर्भाग्यवश जर्मन-सन्नवादी है। उसने लिखा है : "यदि हम विषय को पेश करने के बाहरी ढंग के प्राचार पर अपना मत कायम करें, तो पहली दृष्टि में लगेगा कि मास भाववादी दार्शनिकों में भी सबसे अधिक भाववादी है, और यहां हम इस शब्द का प्रयोग उसके जर्मन पर्ष में, यानी बुरे पर्व में, कर रहे हैं। लेकिन असल में वह पार्षिक पालोचना के क्षेत्र में अपने समस्त पूर्वगामियों से कहीं अधिक यथार्थवादी है। उसे किसी भी पर्व में भाववादी नहीं कहा जा सकता।" मैं इस लेखक को उत्तर देने का इससे अच्छा कोई दंग नहीं सोच सकता किबर उसकी मालोचना के कुछ उद्धरणों की सहायता लूं हो सकता है कि बसी लेल जिनकी पहुंच के बाहर है, मेरे कुछ ऐसे पाठकों को भी उसमें दिलचस्पी हो। १८५६ में बर्लिन में प्रकाशित मेरी पुस्तक 'पर्वशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास' की भूमिका का एक ऐसा. उद्धरण (पृ. चार-सात) देने के बाद, जिसमें मैंने अपनी पत्ति के भौतिकवादी मापार की चर्चा की है, इस लेखक ने प्रागे लिखा है: "मास के लिये जिस एक बात का महत्त्व है, वह यह है कि जिन घटनाओं की छानबीन में वह किसी बात लगा हमा हो, उनके नियम का पता लगाया जाय। और उसके लिये केवल उस नियम का ही महत्व नहीं है, जिसके द्वारा इन घटनाओं का उस हर तक नियमन होता है, जिस हद तक कि उनका कोई निश्चित स्वरूप होता है और जिस हद तक कि उनके बीच किसी बास ऐतिहासिक काल के भीतर पारस्परिक सम्बंध होता है। मास के लिये इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण नियम है घटनाओं के परिवर्तन को, उनके विकास का, अर्थात् उनके एक रूप से दूसरे रूप में बदलने का, सम्बंधों के एक कम से दूसरे क्रम में परिवर्तित होने का। इस नियम का पता लगा लेने के बाद वह विस्तार के साथ इस बात की खोज करता है कि यह नियम सामाजिक जीवन में किन-किन मों .. .
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