२७८ पूंजीवादी उत्पादन . . में इस उद्योग का तेजी से विकास हुमा है, और यह बास तौर पर लन्दन की बनी बस्तियों में.और साप ही मानचेस्टर, विधिम, लिवरपूल, बिस्टल, नोविच, न्यूकेसन और ग्लासगो में भी फैल गया है। उसके साथ-साथ हनु-स्तंभ की बीमारी का बहनासम भी फैल गया है, जिसके बारे में वियेना के एक गक्टर ने पता लगाया है कि यह बीमारी खास तौर पर दियासलाई बनाने वालों में पायी जाती है। इन मजदूरों की भाषी संख्या तेरह वर्ष से कम उन्न के बच्चों और मारह वर्ष से कम उम्र के लड़कों की है। यह उचोग इतना गन्दा और स्वास्थ्य के लिए इतना हानिकारक सममा जाता है कि मजदूर वर्ग का केवल सबसे गया-गुखरा हुमा हिस्सा,-यानी वे विषवाएं, जिन्हें पाषा पेट खाकर रह जाना पड़ता है, और इसी प्रकार के अन्य लोग ही अपने बच्चों को, अपनी "फटे-हाल, भूजी, पाहिल सन्तान" को, इस उद्योग में काम करने के लिए भेजते हैं। कमिश्नर व्हाइट ने जितने गवाहों के बयान लिये थे (१८६३ में), उनमें से २७० की उन १८ वर्ष से और ५० की उन्न १० वर्ष से कम पीतवा ५ केवल ६ वर्ष के थे। काम का दिन १२ से लेकर १४ या १५ घण्टे तक का था। रात को भी काम करना पड़ता था। भोजन का कोई समय निश्चित नहीं था। भोजन प्रायः काम के कमरों में ही करना पड़ता चा, बो फास्फोरस के बहरीले धुएं से भरे रहते थे। दांते यदि इस उद्योग को देखते, तो इसे अपने नरक से भी अधिक भयानक पाते। दीवार पर मढ़े जाने वाले काग्रज के उद्योग में घटिया काग्रब मशीन से छापा जाता है और बढ़िया हाप से (block-printing द्वारा)। इस व्यवसाय में सबसे प्यारा तेची अक्तूबर के शुरू से अप्रैल के अन्त तक रहती है। इन महीनों में काम अंजाब चलता है और ६ बजे सुबह से रात के १० बजे या उसके भी बाद तक बिना रके बराबर जारी रहता है। ० लीच का बयान है कि "पिछले बाड़ों में उन्नीस में से लड़कियां अत्यधिक काम करन के कारण बीमार पड़ गयी और काम पर ना सकी। में उनको गंट-मांटकर जगाये रखता हूं, वरना ये सब काम करते-करते ही सो जायें।" उन्नपू. फ्री ने कहा है: "मैंने यह बात भी देता है, जब कोई भी बच्चा काम करने के लिए अपनी पनि मुली हुई नहीं रख पा रहा था। और बच्चे ही क्यों, वास्तव में हममें से कोई भी अपनी प्राय जुली हुई नहीं रख सकता था।" 20 लाइटबोर्न का बयान है कि "मेरी उन्न १३ वर्ष है... पिछले बाड़ों में हम लोग रात के ९ बजे तक काम करते थे और उसके पहले वाले जाड़ों में रात के १० बजे तक। बाड़ों में मेरे पैर इस पुरी तरह फट जाते थे कि मैं रोज रात को र के मारे रोया करता था।" जी. ऐप्सन में बताया है: "मेरा यह लड़का... जब यह ७ वर्ष का था, तब मैं उसे अपनी पीठ पर चढ़ाकर बढ़ पार करके कारखाने में ले जाया और वहाँ से लाया करता था। वहां बह रोख सोलह घण्टे काम करता पा... अक्सर वह मशीन के पास खड़ा रहता था और में उसे झुककर खाना खिलाता था, क्योंकि वह न तो मशीन के पास से हट सकता था और न ही बीच में काम बन कर सकता था।" मानचेस्टर की एक फैक्टरी के प्रबंधकर्ता हिस्सेदार स्मिथ ने बताया है कि "हम लोग (उसका मतलब है: "हमारे मजदूर", जो "हम लोगों के काम करते हैं) बराबर . 4 हैं और खाना खाने के लिए भी बीच में नहीं पकते , जिससे १०६ घण्टे का दिन भर का काम 1 उप. पु. , पृ. LIV (पोवन)।
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२८१
दिखावट