काम का दिन २८३ . (कम दामों पर रोटी बेचने वाले मालिक) (जो "पूरे भाव" से कम दामों पर अपनी रोटी बेच देते हैं और जिनकी श्रेणी में, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, लन्दन के तीन- चौलाई रोटी वाले पा जाते हैं) जिन कारीगरों को नौकर रखते हैं, उनको पाम तौर पर न सिर्फ स्यादा देर तक काम करना पड़ता है, बल्कि उनका सारा काम रोटी पकाने के कमरे के भीतर ही होता है। कम दामों पर रोटी बेचने वाले मालिक माम तौर पर... अपनी दुकानों पर ही रोटी बेच देते हैं। मोगियों की दुकानों के सिवा वे अपनी रोटी और कहीं नहीं भेजते, और वहाँ भेजने के लिए वे पाम तौर पर दूसरे मजदूरों से काम लेते हैं। उनके घर- घर रोटी पहुंचाने का प्रचलन नहीं है। जब सप्ताह समाप्त होने के करीब पाता है, तब... कारीगर लोग बृहस्पतिवार को रात के १० बजे शुरू करके शनिवार की रात तक लगातार काम करते चले जाते हैं और बीच में महब बरा सी देर के लिए उनको एक छुट्टी मिलती है।" "Underselling masters" (कम दामों पर रोटी बेचने वाले मालिकों) की स्थिति को पूंजीवादी विमान भी समझता है। " ये लोग कारीगरों से मुक्त श्रम (the umpald labour of the men) कराते हैं और उसके सहारे प्रतियोगिता करते हैं। और बांच-कमीशन के सामने “full priced baker" (पूरे दामों पर बेचने वाला) underselling (कम दामों पर बेचने वाले) अपने प्रतिनियों की निन्दा करता है और कहता है कि लोग दूसरों के भम को पुराते हैं और रोटी में मिलावट करते हैं। वे यदि जिन्दा है, तो केवल इसलिए कि वे एक तो जनता को धोखा देते हैं और, दूसरे, अपने कारीगरों को १२ घण्टे की मजदूरी देकर उनसे १८ घण्टे काम कराते हैं।" रोटी में मिलावट किया जाना और नानवाइयों के एक ऐसे वर्ग का जन्म ले लेना, जो पूरे भाव से कम दामों पर अपनी रोटी बेच देता है,-यह १८ वीं सदी के शुरू में, उसी समय से प्रारम्भ हो गया था, जब इस व्यवसाय का संघीय स्वरूप नष्ट हो गया और रोटियों की दुकान के मालिक की नकेल पाटे की चक्की के मालिक या पाठे के प्राकृती के रूप में पूंजीपति के हाथों में पहुंच गयी। इस प्रकार इस व्यवसाय में पूंजीवादी उत्पादन और काम के दिन को . . 1 उप० पु०, पृ. LXXI (इकहत्तर)। 2 George Read, "The History of Baking" ( (जार्ज रीड, 'रोटी बनाने के व्यवसाय का इतिहास'), London, 1848, पृ० १६ । 3 "Report (First), &c. Evidence of the full-priced" baker Cheeseman" [ ( पहली) रिपोर्ट, इत्यादि । “पूरे दामों पर" रोटी बेचने वाले नानबाई चीजमन का बयान'], पृ० १०८।
- George Read, उप. पु.। १७वीं सदी के अन्त में और १८वीं सदी के प्रारम्भ
में factors (पाढ़ती लोग) हर सम्भव व्यवसाय में घुस गये थे, और उस समय भी माम तौर पर इन लोगों को "public muisances" (एक “सामाजिक मुसीबत") समझा जाता था। चुनांचे, सोमेरसेट की काउंटी के मजिस्ट्रेटों के वैमासिक अधिवेशन के दौरान Grand Jury (छोटी अदालत की जूरी) ने हाउस माफ़ कामन्स को एक दरखास्त दी थी, जिसमें अन्य बातों के अलावा यह भी कहा गया था कि "ब्लैकवेल हाल के ये माढ़ती सार्वजनिक कष्ट का कारण बने हुए हैं और कपड़े के व्यवसाय को हानि पहुंचा रहे है, और इसलिए एक सामाजिक मुसीबत के रूप में इन लोगों को खतम कर देना चाहिये ।" ("The Case of or English Wool, &c." ['हमारे अंग्रेजी ऊन की हिमायत में, इत्यादि'], London, 1685, पृ. ६,७)