२८८ पूंजीवादी उत्पादन शुक्रवार को मेरी एन वाल्कले बीमार पड़ी और इतवार को मर गयी। भीमती एलीव को यह जानकर बहुत पाश्चर्य हुमा कि वह बिना काम बतम किये इस दुनिया से चल दी। मि० कीब नाम के एक गक्टर साहब मरीज को देखने के लिये बुलाये गये थे, मगर वह तब पहुंचे, जब रोगी की जान बचाना असम्भव था। मजिस्ट्रेट की प्रदालत में बूरी के सामने उन्होंने ईश्वर को हाजिर-नाजिर मानकर यह बयान दिया कि "मेरी] एन वाल्कले भीड़ से भरे एक कमरे में बहुत देर तक काम करने और एक बहुत ही छोटे, बेहवा कमरे में सोने के कारण मर गयी है।" गफ्टर को भाजनोचित व्यवहार सिलाने के उद्देश्य से पूरी ने निर्णय दिया कि "मृत स्त्री रस्तापात से मरी है, लेकिन संदेह होता है कि भीड़ से भरे हुए कमरे में बहुत देर तक काम करने के कारण उसकी मौत जल्दी हो गयी, इत्यादि इत्यादि।" स्वतंत्र व्यापार के समर्थक कोवडेन और बाइट के मुलपत्र "Morning Star" ने इसपर टिप्पणी करते हुए लिखा: "हमारी ये गोरी बालियां, बो मेहनत करते-करते कल में पहुंच जाती है, प्रायः चुपचाप धुलती रहती है और अन्त में मर जाती है।" 11 कायम है, जो पूंजी से उत्पन्न सुविधाओं का लाभ (that spring from capital) उठाते हुए, श्रम को और चूसने के लिए नयी पूंजी लगा सकते हैं (can bring in capital to force economy out of labour)। इस ताकत का पूरे वर्ग पर असर पड़ता है। यदि कोई पोशाक सीने वाली औरत कुछ खरीदारों का काम नियमित रूप से पा सकती है, तो उसे ऐसी भयानक प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है कि वह अपने पैर जमाये रखने के लिये काम करते-करते मौत के मुंह में पहुंच जाती है, और यदि कोई दूसरी औरत उसकी मदद करती है, तो उससे भी इस औरत को वैसा ही कमर-तोड़ काम लेना पड़ता है। यदि वह फिर भी प्रतियोगिता में असफल हो जाती है या यदि वह स्वतंत्र रूप से उद्योग करना नहीं चाहती, तो उसे किसी दूकान में शामिल हो जाना पड़ता है, जहां पर उसे मेहनत तो पहले से कम नहीं करनी पड़ती, मगर उसका पैसा सुरक्षित रहता है। यहां वह महज एक गुलाम बन जाती है और सदा समाज के उतार-चढ़ावों के थपेड़े खाया करती है। जब वह अपने घर पर काम करती थी, तो उसे एक कमरे में बैठकर भूखों मरना पड़ता था या भाषा पेट खाकर रह जाना पड़ता था। अब वह चौबीस घण्टे में १५, १६ और १८ घण्टे मेहनत करती है, और वह भी ऐसी हवा में, जिसे बर्दाश्त करना मुश्किल होता है, और ऐसा खाना खाकर, जो यदि अच्छा भी हो, तो शुद्ध हवा के प्रभाव में कभी हजम नहीं हो सकता। तपेदिक, जो कि महज गन्दी हवा की बीमारी होती है, इन औरतों को खास तौर पर अपना शिकार बनाती है।" (Dr. Richardson, "Work and Overwork" [डा. रिचार्डसन, 'काम और अत्यधिक काम']; “Social Science Review" ['समाज-विज्ञान रिव्यू'], १८ जुलाई १९६३।) 1“Morning Star", २३ जून १८६३ ।- "The Times" ने बाइट प्रादि के मुकाबले में अमरीका के गुलामों के मालिकों की हिमायत करने के लिये इस घटना का उपयोग किया। २ जुलाई १८६३ के एक सम्पादकीय लेख में उसने लिखा: “हममें से बहुत से लोग यह सोचते हैं कि जब हम खुद कोड़े की मार की जगह पर भूख की मार का प्रयोग करके अपने देश की युवतियों से जबर्दस्ती काम लेते है.और काम लेते-लेते उनको मार डालते हैं, तब हमें इसका कोई अधिकार नहीं है कि हम उन परिवारों पर पाग बबूला होते फिरें, जो जन्म से . .
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