काम का दिन २८९ 1 "काम करते-करते मर गाना- यह केवल पोशाक बनाने वाली दुकानों का ही नियम नहीं है। हजारों अन्य स्थानों में भी यही होता है। बल्कि मैं तो कहना चाहता था कि हर ऐसी जगह पर यही होता है, वहां कोई "फलता-फूलता व्यवसाय" चलाना होता है...मिसाल के लिये, लोहार को लीजिये। यदि कवियों की बातें सच्ची होती, तो लोहार से अधिक हंसमुख, प्रसन्न और उत्साही भावनी पौर कोई नहीं हो सकता था। वह सुबह को तड़के ही उठ जाता है और सूरज निकलने के पहिले अपने प्रहरन से चिंगारियां निकालने लगता है। वह जितना मजा लेकर साता-पीता है और जितनी अच्छी नींद सोता है, वैसा खाना-पीना और वैसी नीव और किसी को नसीब नहीं हो सकती। यदि वह संयम के साथ काम करता है, तो शारीरिक दृष्टि से वस्तुतः उसकी स्थिति और सभी मनुष्यों से अच्छी रहती है। परन्तु उसके पीछे-पीछे खरा किसी शहर या कस्बे में चलकर देखिये कि वहां इस ताकतवर पावमी पर काम का कैसा बोमा पाकर पड़ता है और अपने देश के मृत्यु-अनुपात में उसका क्या स्थान है। मैरिलीवोन में एक हजार के पीछे लोहारों की वार्षिक मृत्यु-वर ३१ है, जो पूरे देश के बयस्क पुरुषों की मौत की प्रोसत बर से ११ अधिक है। लोहार का पेक्षा मानव-कला के एक अंग के रूप में सर्वधा नैसर्गिक है और मानव-उद्योग की एक शाला के रूप में सर्वथा अनापत्तिजनक है, परन्तु फिर भी महत्र प्रत्यषिक काम के कारण वह मनुष्य को नष्ट कर देता है। लोहार एक दिन में इतनी बार धन बला सकता है, इतने कदम चल सकता है, इतनी बार सांस ले. सकता है, इतना उत्पादन कर सकता है, और यह सब करते हुए वह प्रोसतन, मान लीजिये, पचास वर्ष तक जिन्दा रह सकता है। पर उससे रोज इतनी ज्यादा बार धन चलवाया जाता है, उसे इतने अधिक कदम चलने के लिये मजबूर किया जाता है, इतनी जल्दी-जल्दी सांस लेने के लिये विवश किया जाता है कि इतना सब करने के लिये उसे अपने जीवन-काल में कुल मिलाकर एक चौथाई भाग की वृद्धि कर . .. - 1 ही गुलामों से काम लेते पाये हैं और जो कम से कम अपने गुलामों को अच्छा खाना देते हैं और उनसे कम काम लेते हैं।" "Standard" नामक एक अनुदार-दली पन ने इसी प्रकार रेवरेण्ड न्यूमैन हाल को बहुत बुरा-भला कहा : “वह गुलामों के मालिकों को तो शाप देते थे, पर उन प्रद्र पुरुषों के साथ बैठकर ईश्वर की प्रार्थना करते थे, जो लन्दन के गाड़ीबानों और कण्डक्टरों मादि से बिना किसी संकोच के १६ घण्टे रोज काम कराते हैं और उन्हें मजदूरी बहुत थोड़ी देते है।" अन्त में, भविष्यवक्ता टोमस कार्लाइल बोले, जिनके बारे में मैंने १८५०
- Je ferat af "Zum Teufel ist der Genius, der Kultus ist geblieben"
("प्रतिभा का लोप हो गया है, उसकी पूजा बाकी है")। एक छोटी सी नीति-कथा में वह अमरीकी गृह युद्ध जैसी माधुनिक इतिहास की एकमात्र महान घटना को इस स्तर पर उतार लाये कि उत्तर में रहने वाला पीटर दक्षिण में रहने वाले पाल का केवल इसलिए सिर तोड़ देना चाहता है कि उत्तर-वासी पीटर रोजाना के हिसाब से अपने मजदूरों को नौकर रखता है और दक्षिण-वासी पाल उनको पूरी जिन्दगी के लिये नौकर रखता है। ("Macmillan's Magazine" में "Ilias Americana in ruce' शीर्षक लेख, अगस्त, १५६३।) इस प्रकार शहरी मजदूरों के लिये -पर देहाती मजदूरों के लिये कदापि नहीं-अनुदारपंथी लोगों के दिलों में सहानुभूति का जो बबण्डर उठ रहा था, वह पाविर फट ही पड़ा। और उसके मन्दर से निकली क्या? -दासता! 1945