पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२९३

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२९० पूंजीवादी उत्पादन लेनी चाहिये। वह इसकी कोशिश करता है। नतीजा यह होता है कि कुछ समय तक २५ प्रतिशत अधिक काम निकालने की कोशिश में बह ५० वर्ष की उम्र के बजाय ३७ वर्ष की उम्र में ही मर जाता है। अनुभाग ४-दिन का काम और रात का काम । पालियों की प्रणाली , अतिरिक्त मूल्य के सूबन के दृष्टिकोण से स्थिर पूंजी-अपवा उत्पादन के साधनों-का अस्तित्व केवल मम का अवशोषण करने के लिये और मम के प्रत्येक बिन्दु के साथ सानुपातिक मात्रा में अतिरिक्त भम का अवशोषण करने के लिये होता है। जब उत्पावन के साधन यह काम नहीं करते, तब उनका मात्र अस्तित्व पूंजीपति के लिये अपेक्षाकृत नुकसान की बात होता है, क्योंकि जितने समय तक ये बेकार पड़े रहते हैं, उतने समय तक उतनी पूंजी पर्ष लगी रहती है। और जब उनका इस्तेमाल बीच में रुक जाने का यह परिणाम होता है कि काम फिर से शुरू करने के समय उनपर नयी पूंजी खर्च करनी पड़ती है, तब यह नुकसान सकारात्मक और निरपेक्ष रूप धारण कर लेता है। काम के दिन को प्राकृतिक दिन की सीमाओं से मागे खींचकर और रात में भी काम लेकर इस नुकसान को थोड़ा ही कम किया जा सकता है। पूंजी में गयन की तरह बम के जीवित रक्त को चूसने की वो चाह होती है, रात में काम लेकर उसे केवल कुछ ही हद तक संतुष्ट किया जा सकता है। इसलिये पूंजीवादी उत्पादन में चौबीसों घन्टे काम लेने की स्वाभाविक प्रवृति होती है। लेकिन चूंकि एक ही व्यक्ति की प्रम-शक्ति का दिन में भी और रात में भी लगातार शोषण करना शारीरिक दृष्टि से असम्भव होता है, इसलिये इस शारीरिक रुकावट पर काबू पाने के लिये यह प्रावश्यक हो जाता है कि कुछ लोगों की शक्ति को दिन में चूसा जाये और कुछ लोगों की शक्ति को रात में। यह अबला-बदली कई प्रकार से की जा सकती है। मिसाल के लिये, ऐसी व्यवस्था की जा सकती है कि मजदूरों का एक भाग एक सप्ताह दिन में काम करे और दूसरे सप्ताह रात में। यह एक सुविदित बात है कि इस प्रकार की पालियों की प्रणाली का, जिसमें मजदूरों के दो बलों से बारी-बारी से दिन और रात में काम लिया जाता है, इंगलैग के सूती उद्योग की भरी जवानी के दिनों में हर तरफ बोलबाला था, और, अन्य जगहों के अलावा, मास्को जिले के कपास की कताई करने पाले कारखानों में यह प्रणाली अब भी खूब चोरों से काम कर रही है। रिटेन में उद्योग की ऐसी कई शालाओं में, जो अभी तक "स्वतंत्र" है, जैसे इंगलेगा,बेल्स तथा स्कोटलैग की पिपलाज- भट्टियों में, लोहार की भट्टियों में, पातु की चादरें तैयार करने वाली मिलों में और धातु के अन्य कारखानों में, चौबीसों घटे चलने वाली इसी उत्पादन-प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। यहां काम के छ दिनों के २४ घण्टों के अलावा रविवार के २४ घण्टों का अधिकतर भाग भी काम के समय में शामिल होता है। मजदूरों में मर्द और पौरतें, वयस्क और बच्चे, लड़के और लड़कियां, सभी होते हैं। बच्चों और लड़कों की उन ८ वर्ष से (कहीं-कहीं पर ६ वर्ष से) शुरू करके १८ वर्ष तक की होती है।' . 1 Dr. Richardson, 340 gol 2 "Children's Employment Commission. Third Report" l'aterraternarum की तीसरी रिपोर्ट'], London, 1864, पृ. IV, V, VI (चार, पांच, छः)। .