काम का दिन २९१ उद्योग की कुछ शालाओं में लड़कियों और औरतों को रात भर मा के साथ काम करना पड़ता है। रात के काम का पाम तौर पर बो सराव प्रसर होता है, उसके अलावा उत्पादन की . . . " . पृ० Xm . 1"स्टेफ़्फ़र्डशायर और दक्षिणी वेल्स, दोनों में कोयला-खानों और कोक के ढेरों पर न सिर्फ दिन में, बल्कि रात में भी लड़कियों और औरतों से काम लिया जाता है। संसद के सामने पेश की गयी कई रिपोर्टों में बताया गया है कि इस प्रथा से बहुत भयानक बुराइयां पैदा हो जाती है। ये स्त्रियां पुरुषों साथ काम करती हैं। उनकी पोशाक पुरुषों की पोशाक से कोई खास भिन्न नहीं होती। वे सदा धूल और धुएं से ढंकी रहती हैं। और उनको स्त्रियों को शोभा न देने वाला जो काम करना पड़ता है, उससे अनिवार्य रूप से उनका प्रात्म-सम्मान जाता रहता है और उससे उनमें चरित्रहीनता पैदा होने की माशंका उत्पन्न हो जाती है।" ( उप०, पु., १९४, पृ. XXVI (छब्बीस)। देखिये "Fourth Report (1865)" ('चौथी रिपोर्ट ( १८६५)'), ६१, पृ. XII (तेरह)।) कांच के कारखानों में भी यही हालत है। एक इस्पात के कारखाने के मालिक ने , जो रात को बच्चों से काम लेता है, बताया कि “यह एक स्वाभाविक बात प्रतीत होती है कि जो लड़के रात को काम करते हैं, वे दिन में न तो सो सकते हैं और न ठीक तरह माराम कर सकते हैं, बल्कि सदा इधर-उधर दौड़ते रहते हैं ( उप० पु०, “Fourth Report" ('चौथी रिपोर्ट'), ६३, (तेरह)।) शरीर के भरण-पोषण एवं विकास के लिए सूरज की रोशनी कितनी पावश्यक है, इसके बारे में एक डाक्टर ने लिखा है : "प्रकाश शरीर के ऊतकों को कड़ा करने और उनकी लोच बढ़ाने में उनपर सीधा प्रभाव डालता है। जब पशुओं की मांसपेशियों को उचित मात्रा में प्रकाश नहीं मिलता, तो वे नरम हो जाती हैं और उनकी लोच कम हो जाती है। स्नायु-शक्ति को यदि पर्याप्त उद्दीपन नहीं प्राप्त होता, तो वह क्षीण होने लगती है। और लगता है, जैसे सारा विकास विकृत हो गया हो... बच्चों के स्वास्थ्य के लिए यह अत्यन्त पावश्यक है कि दिन में उनको रोशनी बराबर बहुतायत से मिलती रहे और कुछ समय तक सूरज की किरणें उनपर सीधे पड़ती रहें। प्रकाश अच्छे सुघट्य रक्त के बनने में मदद देता है और शरीर के तंतुओं को कड़ा करता है। साथ ही वह नेत्रों को भी बल देता है और इस प्रकार मस्तिष्क की विभिन्न क्रियाओं को तेज करता है।" यह अंश वोरसेस्टर के “General Hospital" ('सामान्य अस्पताल') के बड़े डाक्टर डब्लयू. स्ट्रेंज की रचना "Health" ('स्वास्थ्य') (१८६४ ) से लिया गया है। इन्हीं डाक्टर साहब ने मि• व्हाइट नामक एक सरकारी जांच-कमिश्नर के नाम एक पत्र में लिखा है : 'जब मैं लंकाशायर में रहता था, तब मुझे यह देखने का मौका मिला था कि रात को काम करने का बच्चों पर क्या असर पड़ता है, और मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि कुछ मालिक माम तौर पर जो कुछ कहने के शौकीन है, उसके बिल्कुल विपरीत, जिन बच्चों से रात में काम लिया जाता है, उनका स्वास्थ्य बहुत जल्दी खराब हो जाता है।" (उप० पु०, २८४, पृ. ५५) ऐसे प्रश्न पर भी कोई गम्भीर वाद-विवाद खड़ा हो सकता है, इसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि पूंजीपतियों और उनके मुसाहबों के दिमागों को पूंजीवादी उत्पादन कितना कुंद कर देता है। . 190
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