दूसरे जर्मन संस्करण का परिशिष्ट २७ काल और प्रत्येक स्थान में एक सा रहता है। इसके विपरीत, उसका कहना यह है कि विकास को हरेक मंजिल का अपना प्राबादी का नियम होता है... उत्पादक शक्ति का विकास जितना कम-फ्यादा होता है, उसके अनुसार सामाजिक परिस्थितियां और उनपर लागू होने वाले नियम भी बदलते जाते हैं। जब मास अपने सामने यह काम रखता है कि उसको इस दृष्टिकोण से पूंजी के प्रभुत्व के द्वारा स्थापित प्रार्षिक व्यवस्था का अध्ययन एवं स्पष्टीकरण करना है, तब वह केवल उसी उद्देश्य को सर्वथा वैज्ञानिक ढंग से स्थापना कर रहा है, जो प्रार्षिक जीवन को प्रत्येक परिशुद्ध खोज का उद्देश्य होना चाहिये। ऐसी खोज का वैज्ञानिक महत्त्व इस बात में है कि वह उन विशेष नियमों को खोलकर रख दे, जिनके द्वारा किसी सामाजिक संघटन को उत्पत्ति, अस्तित्व, विकास और अन्त कातपा उसके स्थान पर किसी और, अधिक ऊंचे संघटन की स्थापना का नियमन होता है। और, असल में, मार्क्स की पुस्तक का महत्व इसी बात . 91 . यहां पर लेखक ने जिसे मेरी पद्धति समझकर इस सुन्दर और (जहाँ तक इसका सम्बंध है कि जब मैंने उसे किस तरह लागू किया है) उदार ढंग से चित्रित किया है, वह उन्नवादी पत्ति के सिवा और क्या है? बाहिर है, किसी विषय को पेश करने का ढंग खोज के ढंग से भिन्न होता है। खोज के समय विस्तार में जाकर सारी सामग्री पर अधिकार करना पड़ता है, उसके विकास के विभिन्न पों का विश्लेषण करना होता है और उनके प्रान्तरिक सम्बंध का पता लगाना पड़ता है। जब यह काम सम्पन्न हो जाता है, तभी जाकर कहीं वास्तविक गति का पर्याप्त वर्णन करना सम्भव होता है। यदि यह काम सफलतापूर्वक पूरा हो जाता है, यदि विषय-वस्तु का बीवन वर्पण के समान विचारों में मलकने लगता है, तब यह सम्भव है कि हमें ऐसा प्रतीत हो, जैसे किसी ने अपने दिमाग से सोचकर कोई तसवीर गढ़ दी है। मेरी इनवाबी पति हेगेलवावी पति से न केवल भिन्न है, बल्कि ठीक उसकी उल्टी है। हेगेल के लिये मानव-मस्तिष्क की बीवन-प्रक्रिया, अर्थात् चिन्तन की प्रक्रिया, जिसे "विचार" के नाम से उसने एक स्वतंत्र कर्ता तक बना गला है, वास्तविक संसार की सृजनकी है और वास्तविक संसार "विचार" का बाहरी, इनियगम्य रूप मात्र है। इसके विपरीत, मेरे लिये विचार इसके सिवा और कुछ नहीं कि भौतिक संसार मानव-मस्तिष्क में प्रतिविम्बित होता है और चिन्तन के रूपों में बदल जाता है। हेगेलवावी इनवाद के रहस्यमय पहलू की मैंने लगभग तीस वर्ष पहले पालोचना की थी, और तब उसका काफी चलन था। लेकिन जिस समय में 'Das Rapital" के प्रथम सम्म पर काम कर रहा था, ठीक उसी समय इन चिड़चिड़े, घमंग और प्रतिभाहीन Pravan (योग्य नेता के अयोग्य अनुयायियों) को, जो कि माजकल सुसंस्कृत जर्मनी में बड़ी लम्बी-लम्बी हाक रहे हैं, हेगेल के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार करने की सूक्षी, जैसा लेस्सिंग के काल में बहादुर मोसेन मेण्डेल्सोन ने स्पिनोवा के साथ किया था,-यानी उन्होंने भी हेगेल के साथ 'मरे हुए कुत्ते' जैसा व्यवहार करने की सोची। तब मैंने खुल्लमखुल्ला यह स्वीकार किया कि मैं उस महान विचारक का शिष्य हूं, और मूल्य के सिद्धान्त वाले अध्याय में जहां-तहां मैने अभिव्यक्ति के उस ढंग से भी प्रास-मिचौली खेली है, जो हेगेल का बास ढंग है। हेगेल के हाथों में इनवाब पर रहस्य का पावरण पड़ जाता है, लेकिन इसके बावजूद यह सही है कि हेगेल ने ही सबसे पहले विस्तृत पौर सचेत ढंग से यह बताया था कि अपने सामान्य रूप में इनवार किस प्रकार 9 . . .
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