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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३०५

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३०२ पूंजीवादी उत्पादन . बगह पर दूसरे स्थान से फौरन कोई नया गुलाम मा सकता है, तब इस बात का कम महत्व रह जाता है कि गुलाम कुल कितने दिन बिन्दा रहेगा, और महत्व इस बात का हो जाता है कि जब तक वह जिंदा है, तब तक वह कितनी पैदावार करता है। पूनांचे दूसरे मुल्कों से गुलाम मंगाने वाले देशों में गुलामों से काम लेने वालों का यह उसूल है कि सबसे अच्छी पर्व- व्यवस्था वह होती है, जो मनुष्य-स्सी चल सम्पत्ति (human cattle) से कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा मेहनत कराने में कमयाब होती है। उष्णदेशीय संस्कृति के क्षेत्रों में, वहां एक साल का नका असर बागानों में लगी हुई कुल पूंजी के बराबर होता है, सबसे अधिक लापरवाही के साथ हवियों के जीवन की बलि दी जाती है। वेस्ट इन्डीन की सेती, जो सदियों से बेशुमार बोलत पैदा करती भा रही है, हब्शी नस्ल के लाखों-करोड़ों पावनियों को मा गयी है। क्यूबा में, जिसकी प्रामवनी करोड़ों में गिनी जाती है और जिसके बागानों के मालिक राबाओं की तरह रहते हैं, हम मान भी पुलामों को खराब से खराब बाना साकर अनवरत अत्यधिक पकाने वाला कठिन परिश्रम करते हुए देखते हैं, जिसके फलस्वरूप उनका एक बड़ा भाग हर साल पूर्णतः नष्ट हो जाता है।"1 Mutato nomine de te fabula narratur! (यह कहानी जनाब ही की है!) गुलामों के व्यापार की जगह पर मजदूरों की मन्डी, केन्टुकी और वर्णनिया की जगह पर पायरलण्ड और इंकलेज, कोटलग तवा वेल्स के खेतिहर निस्ट्रिक्टों को और अफ्रीका की जगह पर जर्मनी को रख दीजिये। हम सुन चुके हैं कि ज्यादा काम करने के कारण लन्दन के रोटी बनाने पाले कारीगरों में मृत्यु-संख्या कितनी अधिक बढ़ गयी थी। फिर भी लन्दन की मम की मनी रोटी की दूकानों में मृत्यु का प्रास बनने के इच्छुक गमन तथा अन्य मजदूरों से सवा ठसाठस भरी रहती है। जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले मजदूर सबसे कम समय तक बिन्दा रहते हैं। पर क्या इससे मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की कोई कमी महसूस होती है? मिट्टी के बर्तन बनाने की प्रानिक कला के पाविष्कारक बोसिया बेजबुर पुर भी शुरू में एक साधारण मजदूर थे। उन्होंने १७८५ में हाउस माफ़ कामन्स के सामने बयान देते हुए बताया था कि इस पूरे व्यवसाय में १५,००० से लेकर २०,००० तक पादमी काम करते हैं।' १८६१ में इंगलैग में इस उद्योग के केवल शहरी केनों की जन-संख्या १,०१,३०२ थी। "सूती कपड़ों का व्यवसाय मब्बे वर्ष से कायम है . की तीन पीढ़ियों से यह मौजूद है, और मेरा विश्वास है कि यदि में यह कहूं, तो खरा भी अतिशयोक्ति न होगी, कि इस दौरान में यह व्यवसाय कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की नौ पीढ़ियों को हरप गया है। इसमें सन्देह नहीं कि अब उद्योग-बंधों में प्रसाधारण तेवी माती है, तब मम की मन्डी में मजदूरों की जाती कमी महसूस होने लगती है। मिसाल के लिए, १८३४ में ऐसी कमी महसूस हुई थी। पर उस बात कारखानदारों ने Poor Law Commissioners ... अंग्रेजी नसल 11 8 1J. E. Cairnes, "The Slave Power" (ले० ए० केर्न्स, 'दास-शक्ति'), London, 1862, पृ० ११०, १११। SJohn Ward, "The Borough of Stoke-upon-Trent" (जान वार्ड, 'ट्रेट नदी के तट पर स्थित स्टोक नगर का इतिहास'), London, 1843, पृ. १२। हाउस माफ़ कामन्स में फेण्डि का भाषण, २७ अप्रैल १८६३ । 8