पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३०६

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काम का दिन ३०३ . (गरीबों के कानून के कमिश्नरों) के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि खेतिहर बिलों की 'फालतू पावादी" को उत्तर में भेज दिया जाये, और इसके पक्ष में यह बलील दी गयी थी कि वहां "उसे कारखानेदार सपा लेंगे और इस्तेमाल कर गलेंगे।"1नांचे, "Poor Law Commissioners की अनुमति से एजेन्ट नियुक्त कर दिये गये थे . . . भामचेस्टर में एक वपतर खोल दिया गया था। लेतिहर खिलों के दो मजदूर नौकरी चाहते थे, उनके नामों की सूचिर्या इस पतर में भेज दी जाती थी, और वहां पर उनके नाम रजिस्टरों में वर्ष कर लिये जाते थे। कारखानों के मालिक इन दफ्तरों में जाते थे, और इन सूचियों में से अपनी इच्छानुसार कुछ लोगों को छांट लेते थे। अपनी 'मावश्यकता के अनुसार' लोगों को छांट लेने के बाद ये हिदायतें जारी कर देते थे कि इन मजदूरों को मानचेस्टर भेज दिया जाये। सामान की गांगे की तरह इन मजदूरों पर भी लेविल लगाकर उनको नहरों में चलने वाली नावों के जरिये, गाड़ियों के जरिये या पैदल ही मानचेस्टर रवाना कर दिया जाता था, और उनमें से बहुत से बीच में ही सो जाते थे, या भूत से परेशान होकर रास्ते में ही बैठ जाते थे। इस व्यवस्था ने एक नियमित व्यापार का म धारण कर लिया था। हाउस माफ़ कामन्स मेरी बात पर विश्वास न करेगा, पर मैं मापसे कहता हूं कि मानव-वेहों का यह व्यापार उतने ही जोर-शोर से चलता था, इन मजदूरों की (मानचेस्टर के) कारजानेवारों के हाप उतने ही नियमित रूप से विक्री होती थी, जितने नियमित रूप से संयुक्त राज्य अमरीका के कपास की खेती करने वालों के हापों गुलामों की बिक्री होती है . . . १८६० में, 'कपास का व्यापार उन्नति के शिखर पर था ...' तब कारखानदारों को फिर मजदूरों की कमी उन्होंने 'गोश्त के एजेण्ट' कहलाने वाले लोगों से मजदूर मांगे। इन एजेष्टों ने मजदूरों की तलाश में इंगलड के दक्षिणी पारों में, डोसेंटशायर की चरागाहों में, वनशायर के जंगली मैदानों में, और विलशायर के गाय पालने वालों के बीच अपने प्रावमी भेजे, मगर बेसूब। फालतू प्राबादी पहले ही 'हबम हो चुकी थी।" क्रांसीसी संधि पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद "Bury Guardian" नामक पत्र ने लिखा था कि "लंकाशायर १०,००० नये मजदूरों को हजम कर सकता है, और अभी हमें ३०,००० या ४०,००० मजदूरों की प्रावश्यकता पड़ेगी।" जब ये "गोश्त के एजेण्ट और सब-एबेष्ट" खेतिहर जिलों में घूम-घूमकर खाली हाथ लौट पाये, तो "एक प्रतिनिधि मण्डल लन्दन माया और माननीय महोदय के सामने (यानी Poor Law Board [गरीबों के कानून के बो] के अध्यक्ष मि. विलियर्स के सामने) उपस्थित हुमा। यह चाहता था कि कुछ मुहताज-सानों में रहने वाले बच्चे लंकाशावर की मिलों को मिल जायें। महसूस होने लगी - . » 1 * 2 उप० सूती कपड़ा बनाने वाले कारखानेदारों ने ठीक इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया था।"- उप० पु०। पु०। अपने बेहतरीन इरादों के बावजूद मि. विलियर्स को “कानूनन" कारखानेदारों की बरखास्त को मानने से इनकार कर देना पड़ा। परन्तु इन महानुभावों ने गरीबों के कानून के मातहत बनाये गये बोडों की कृपा-दृष्टि का उपयोग करके अपना काम बना लिया। फैक्टरियों के इंस्पेक्टर मि० ए० रेड्गव का कहना है कि जिस व्यवस्था के मातहत अनाथ बच्चों मोर गरीबों के बच्चों को “कानूनन" शागिर्द (apprentices) समझा जाता था, उसमें इस बार "उसकी पुरानी बुराइयां नहीं पायी जाती थीं" ( इन "बुराइयों" के बारे