काम का दिन ३०५ मनुष्यों की कई ऐती पीढ़ियों का होता है, जिनके शरीर का विकास बीच में एक गया है, जो बहुत थोड़े समय ही बिन्दा रह पाती है, जिनमें एक पीढ़ी बहुत बल्ली दूसरी पीढ़ी का स्थान ले लेती है और वो मानो परिपक्वता को प्राप्त होने के पहले ही मसलकर फेंक दी जाती है। पौर, सचमुच, अनुभव से कोई भी बुद्धिमान पर्यवेक्षक यह देख सकता है कि ऐतिहासिक दृष्टि से उत्पादन की वो पूंजीवादी प्रणाली अभी कल ही पैसा हुई थी, उसने कितनी तेजी और कितनी मजबूती के साथ लोगों की बीवन-शक्ति को जड़ से अपने शिकंजे में जकड़ लिया है। अनुभव बताता है कि प्रौद्योगिक जन-संस्था का यदि एकदम अंधाधुंध पतन नहीं हो रहा है, तो इसका केवल यही कारण है कि उसमें लगातार देहात के ऐसे प्राविम तत्व शामिल होते रहते हैं, वो शारीरिक दृष्टि से अभी भ्रष्ट नहीं हुए हैं। अनुभव से पता चलता है कि बेहात से माये हुए मजदूर हालांकि सबा ताबा हवा में रहते पाये हैं और उनके बीच हालांकि principle of natural selection (प्राकृतिक परण का सिद्धान्त) बड़े शक्तिशाली ढंग से काम कर रहा है और केवल सबसे ताकतवर व्यक्तियों को ही जीवित रहने का अवसर देता है, परन्तु इन मजदूरों ने भी अभी से मरना प्रारम्भ कर दिया है। पूंजी का हित इसी बात में है कि अपने इर्द-गिर्द रहने वाले प्रसंस्य Insp. of Fact., 31st Oct., 1855" [" फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५५'], पृ. १०३।) ऊपर रेड्व नामक जिस फैक्टरी-इंस्पेक्टर का जिक्र किया गया है, उन्होंने १८५१ की प्रौद्योगिक प्रदर्शनी के बाद, कारखानों की हालत की जांच करने के लिये, योरपीय महाद्वीप की और विशेष कर फ्रांस और जर्मनी की यात्रा की थी। प्रशिया के मजदूर के बारे में उन्होंने लिखा है : "उसे मजदूरी इतनी मिलती है, जो बहुत सादा भोजन और उन चन्द सुविधाओं को मुहय्या करने के लिए काफ़ी होती है, जिनकी उसको पादत है .. वह मोटा-मोटा खाता है और खूब कड़ी मेहनत करता है, और इस तरह उसकी स्थिति अंग्रेज Hrygt i ferfor et arcra I” (“Rep. of Insp. of Fact., 31st October, 1855" ["फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५५'], पृ. ८५।) जिनसे बहुत अधिक काम लिया जाता है, के “एक अजीब तेजी के साथ मरने लगते हैं, लेकिन जो मर जाते हैं, उनका स्थान तुरन्त ही भर जाता है, और व्यक्तियों का जो परिवर्तन इतनी जल्दी-जल्दी होता रहता है, उससे पूरे चित्र में कोई मन्तर नहीं पड़ता। (“England and America" ["इंगलैण्ड और अमरीका'], London, 1833, खण्ड १, पृ. ५५ । ई० जी० वेकशील्ड द्वारा लिखित ।) safet Public Health. Sixth Report of the Medical Officer of the Privy Council, 1863" ('सार्वजनिक स्वास्थ्य । प्रिवी काउंसिल के मेडिकल अफसर की छ: रिपोर्ट, १८६३')। लन्दन से १९६४ में प्रकाशित। यह रिपोर्ट खास तौर पर बेतिहर मजदूरों के बारे में है। "सदरलैण्ड को... पाम तौर पर एक बहुत उन्नत काउण्टी समझा जाता है,.. लेकिन... हाल की जांच-पड़ताल से पता लगा है कि यहां भी, ऐसे इलाकों में, जो किसी समय अपने जवानों और बहादुर सिपाहियों के लिये प्रसिद्ध थे, अब नसल खराब हो गयी है और केवल छोटे-छोटे ऐसे मनुष्य पैदा होते हैं, जिनकी बाढ़ मारी जा चुकी है। जो स्थान सबसे अधिक स्वास्थ्यप्रद है, जैसे समुद्र किनारे के पहाड़ी इलाके, वहां पर भी इन लोगों के दुबले-पतले, भूचे बच्चों के चेहरे उतने ही पीले पड़ गये है, जितने कि लन्दन की किसी गली के गन्दे वातावरण में रहने वाले बच्चों के चेहरे होते है।" (W. Th. Thornton. . 20-48
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