पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३२४

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काम का दिन ३२१ . कराने की इजावत नहीं दी। इसलिए तीसरे पहर की पाली में वे बच्चे नहीं हो सकते थे, जो सुबह को काम कर चुके थे। नियम बना दिया गया था कि भोजन, नाश्ते मादि के लिए जो र घन्टे का समय दिया जाता था, "उसमें से कम से कम एक घण्टा तीसरे पहर के तीन बनने के पहले ही दे देना बरी है... और वह सब को एक ही बात पर दिया जाना चाहिये। दोपहर के १ बनने के पहले किसी बच्चे या लड़के-लड़की से पांच घण्टे से ज्यादा काम उस वक्त तक नहीं लिया जायेगा, जब तक कि उसे कम से कम घन्टे की खाने की छुट्टी नहीं दी जायेगी। उस समय (यानी लाने की छुट्टी के समय) किसी बच्चे को या किसी लड़के प्रववा सड़की को (या किसी स्त्री को) किसी भी ऐसे कमरे में नहीं रहने दिया जायेगा, जिसमें कोई उत्पादन-प्रक्रिया जारी हो," इत्यादि। हम यह देख चुके हैं कि ऐसी तफसीली हिदायतें, जिनमें काम का समय, उसकी सीमा और छुट्टी के बात मानो घड़ी की सुई बेलकर सैनिक एकल्पता के साथ निर्धारित कर दिये गये में, केवल संसद की कल्पना की उपज हरगिव नहीं थीं। उनका उत्पादन की माधुनिक प्रणाली के स्वाभाविक नियमों के रूप में परिस्थितियों में से धीरे-धीरे विकास हुमाया। वर्गों के एक लम्बे संघर्ष के परिणामस्वरूप राज्य द्वारा उनकी स्थापना हुई, उन्हें सरकारी मान्यता प्राप्त हुई तवा राज्य द्वारा उनकी घोषणा की गयी। उनका एक पहला नतीजा यह हमा कि व्यवहार में कैक्टरियों में काम करने वाले वयस्क पुरुषों के काम के दिन पर भी वैसी ही सीमाएं लग गयीं , क्योंकि उत्पादन की अधिकतर प्रक्रियाओं में बच्चों, लड़के-लड़कियों और स्त्रियों का सहयोग अनिवार्य होता है। इसलिए, कुल मिलाकर, १४ र १५४७ के बीच फेक्टरी-कानून के मातहत उद्योग की सभी शाखाओं में पाम तौर पर १२ घन्टे का दिन जारी हो गया। परन्तु कारखानेदारों ने "प्रगति" का यह कदम उस वक्त तक नहीं उठने दिया, जब तक कि उसके एवज में "प्रतिगमन" का भी एक कदम नहीं उठाया गया। उनके उकसावे पर हाउस पान कामन्स ने शोषण के योग्य बच्चों की उम्र वर्ष से घटाकर ८ वर्षकरदी, ताकि फैक्टरियों में काम करने के लिए बच्चों की वह अतिरिक्त संख्या भी सुनिश्चित हो जाये, जो पूंजीपतियों को श्वरीय तथा मानवीय, दोनों प्रकार के कानूनों की दृष्टि से मिलनी चाहिये।' इंगलैण्ड के पार्षिक इतिहास में १८४६-४७ का समय एक युगान्तरकारी समय है। इन बों में अनाज के कानून रह कर दिये गये, कपास और अन्य कच्चे मालों पर लगी हुईमुंगी मंसूब कर दी गयी, स्वतंत्र व्यापार के सिद्धान्त को तमाम कानूनों का पथ-प्रदर्शक सिद्धान्त घोषित कर दिया गया,-और एक शन में कहा जाये, तो बस मानो स्वर्णयुग का प्रारम्भ हो गया। दूसरी ओर, इन्हीं वर्षों में पार्टिस्ट पान्दोलन और १० घन्टे की तहरीक अपनी परम सीमा पर पहुंच गये। अनुवार-चल के लोग तो कारखानेदार से बदला लेने के लिए बेकरारये, उन्होंने इन पान्दोलनों का साथ दिया। स्वतंत्र व्यापार के मूल-प्रिय समर्षकों की सेना नाइट और कोबरेन के नेतृत्व में विद से मंत्री होकर १० घण्टे के बिल का बहुत समय से जोरदार विरोध - 1"चूंकि बच्चों के काम के घण्टों में कमी कर देने के फलस्वरूप उनको पहले से अधिक संख्या में नौकर रखना पड़ेगा, इसलिए समझा जाता था कि ८ वर्ष से लेकर १ वर्ष तक के बच्चों की जो नयी संख्या फैक्टरियों में काम करने के लिये प्रायेगी, उससे यह बढ़ी हुई मांग पूरी हो जायेगी।" (उप. पु०, पृ० १३॥ ) 21-45