३२२ पूंजीवादी उत्पादन . 4 करती रही थी। फिर भी यह बिल, जिसके लिये इतने दिनों से संघर्ष चल रहापा, संसद में पास हो गया। पून १८४७ के नये पटरी-कानून के द्वारा निश्चय किया गया कि १ जुलाई १९४७ को (१३ वर्ष से १८ वर्ष तक के) "लड़के-लड़कियों" तबा.समी स्त्रियों के काम के पदों में एक प्रारम्भिक कमी करके १९ पडे की सीमा नियत कर दी जाये, पर १ मई १८४८ को काम के दिन पर निश्चित म से १० घन्टे की सीमा लगा दी जाये। दूसरी बातों में यह कानून १८३३ मोर १८४ के कानूनों का संशोधन करता था और उन्हें पूर्ण बनाता था। प्रब पूंबी ने इस कानून को १ मई १८४८ को अमल में पाने से रोकने के लिये एक प्रारम्भिक पान्दोलन छेड़ा। और मजदूरों को भी पुद अपनी सफलतामों को नष्ट करने में मदर देनी थी, जिसके लिये बहाना यह पा कि वे अपने अनुभव से सबक सीखपुके हैं। इस पान्दोलन के लिये बहुत चालाकी से पक्त पुना गया था। 'याद रखना चाहिये कि पिछले दो वर्ष से पिटरियों के मजदूर (१८४६-४७ के भयंकर संकट के परिणामस्वल्प) सन्त तकली उन रहे है, क्योंकि बहुत सी मिलें कम समय काम कर रही थी और बहुत सी एकवन बन्द हो गयी थीं। इसलिये मजदूरों को काफी बड़ी संख्या बहुत मुश्किल से दिन काट रही होगी। बहुतों पर गर्ने का भारी बोस होगा। और इसलिये कोई भी यह समझ सकता था कि इस बात मजदूर स्यावा देर तक काम करना पसन्द करेंगे, जिससे कि पिछले नुकसान को पूरा कर सकें, कर्वे प्रवा कर , गिरवी रखा हुमा फर्नीचर का लायें या बो फर्नीचर बिक गया है, उसकी जगह पर नया ले पायें या अपने लिये तथा अपने परिवार के लिये नये कपड़े खरीद लें। इन परिस्थितियों का पो स्वाभाविक प्रभाव पा, उसे कारखानेदारों ने मजदूरी में १० प्रतिशत की प्राम कटौती करके और भी उप बना देने की कोशिश की। यह कटौती मानो स्वतंत्र व्यापार के नवीन युग के उद्घाटन के उपलक्ष्य में की गयी थी। उसके बाद बब काम का दिन प्रतिशत की एक और कटौती करवी गयी, और बब अन्त में काम का दिन १० घण्टे तक सीमित कर दिया गया, तो मालिकों ने इसकी दुगनी कटौती का ऐलान कर दिया। इस तरह, जहां कहीं भी परिस्थितियों ने इजाजत पी, वहां मजदूरी कम से कम २५ प्रतिशत घटा दी गयी। इस प्रकार अच्छी तरह भूमिका तैयार करने के बाद फैक्टरी मजदूरों के बीच १८४७ के कानून को मंसूब कराने का पान्दोलन के दिया गया। इस कोशिश में न तो मूठ से गुरेख किया गया और न धूत से, और न ही धमकियां देने में कोई हिचकिचाहट विनायी गयी। मगर कोई बीच काम नहीं पायी। मजदूरों से कोई पापी बन पावेदन-पत्र विनाये गये थे, जिनमें "कानून उनके ऊपर नो अत्याचार कर घटाकर ११ घन्टे का कर दिया गया, तो तुरन्त ही .
- 1 "Rep. of Insp. of Fact., 31st Oct., 1848" (forefout is het
रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८४८'), पृ० १६ । "मैंने पाया कि जिन लोगों को १० शिलिंग प्रति सप्ताह मिल रहे थे, उनकी मजदूरी में १० प्रतिशत की कटौती के नाम पर १ शिलिंग काट लिया गया, और बचे हुए १ शिलिंग में से १ शिलिंग ६ पेन्स समय में होने वाली कमी के काट लिये गये। इस तरह कुल मिलाकर २ शिलिंग ई पेंस की कटौती हुई। और फिर भी बहुत से मजदूर कहते थे कि उन्हें १० घण्टे ही काम. करना पसन्द है।" (उप. पु. [पृष्ठ १६]1)".