पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३२६

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काम का दिन रहा है", उसकी शिकायत की गयी थी। बबानी विरह होने पर स्वयं प्रार्षियों ने यह कहा कि उनले सबर्दस्ती बस्तखत कराये गये थे। "वे अपने को अत्याचार का शिकार होते तो अनुभव कर रहे थे, मगर इसका कारण फैक्टरी-कानून नहीं था। परन्तु यदि कारखानदारों को मजदूरों से अपनी मनचाही बातें कहलाने में कामयाबी नहीं मिली, तो वे खुद मजदूरों के नाम पर अखबारों में और संसद में और भी जोर से चिल्लाने लगे। उन्होंने फेक्टरी-इंस्पेक्टरों को इस तरह कोसना शुरू किया, जैसे वे फ्रांस की राष्ट्रीय परिषद के क्रान्तिकारी कमिश्नरों से कर्मचारी हों और अपने मानवतावादी दुराग्रहों की वेदी पर प्रभागे मजदूरों की निर्ममतापूर्वक बलि दे रहे हों। लेकिन यह बाल भी बेकार गयी। फैक्टरी-स्पेक्टर लेयोनार होर्नर ने खुद और अपने सबसस्पेक्टरों के चरिये संकाशायर की फैक्टरियों में अनेक मजदूरों के बयान लिये। जितने लोगों के बयान लिये गये, उनमें से लगभग ७० प्रतिशत ने १० घन्टे का समर्थन किया, एक बहुत छोटी संस्था ने ११ घन्टे की ताईद की और एक नाम-मात्र की संस्था ने पुराने १२ घण्टों को ही पसन्द किया।' एक और बड़ी "मित्रतापूर्ण" चाल यह थी कि बयस्क पुरुषों से १२ से १५ घण्टे तक काम कराया जाता और फिर पारों पोर इसका ढोल पीटकर यह साबित किया जाता कि सर्वहारा की प्रान्तरिक इच्छा यही है। लेकिन उस "निर्मम" फैक्टरी-इंस्पेक्टर लियोनार होनर के सामने यह तरकीब भी नहीं चली। प्रोवरटाइम काम करने वाले ज्यादातर मजदूरों ने कहा कि "हम तो कम मजबूरी पर बस घन्टे काम करना कहीं ज्यादा पसन्द करेंगे। पर हमारे सामने कोई और चारा नहीं था। हममें से इतने अधिक लोग बेकार घे (पौर कताई करने वाले इतने अधिक मजदूरों को दूसरे काम के प्रभाव में पागा जोड़ने का काम करना पड़ रहा है और उनको इतनी कम मजदूरी मिल रही है) कि यदि हम ज्यादा समय तक काम करने से इनकार करते, तो दूसरे लोग फौरन हमारी जगह लेने को मामाते। इसलिये हमारे सामने सवाल यह था कि या तो स्यावा समय तक काम करना मंजूर करें और या नौकरी से हाथ धोने के लिये तैयार हो जायें।" इस प्रकार, पूंजी का प्रारम्भिक प्रान्दोलन असफल रहा, और बस घण्टे का कानून १ मई १८४८ को लागू हो गया। परन्तु इस बीच पार्टिस्ट पार्टी प्रसफल हो गयी थी, उसके नेता गिरफ्तार हो गये और उसका संगठन छिन्न-भिन्न हो गया था, और उसके फलस्वरूप अंग्रेस मजदूर-वर्ग को - 1 'मैंने इसपर (मावेदन-पत्र पर) दस्तखत तो कर दिये थे, पर मैंने उसी वक्त यह कहा था कि मैं एक गलत चीज़ पर दस्तखत कर रहा हूं।' - 'तब फिर तुमने उसपर क्यों दस्तख़त किये?'-'इसलिये कि अगर मैं इनकार करता, तो मुझे नौकरी से जवाब मिल जाता।'- इससे पता चलता है कि इस प्रादमी को 'अत्याचार' का तो अहसास था, पर वह फैक्टरी कानून का प्रत्याचार नहीं था।" (उप० पु०, पृ० १०२ ।) 'उप. पु., पृ० १७ । मि. होर्नर के इलाके में इस तरह १५१ फैक्टरियों के १०,२७० वयस्क मजदूरों के बयान लिये गये थे। इन लोगों ने जो कुछ कहा, वह अक्तूबर १८४८ को समाप्त होने वाली छमाही की फैक्टरी-रिपोर्टों के परिशिष्ट में मिलेगा। इन बयानों में कुछ अन्य प्रश्नों के सम्बंध में भी मूल्यवान सामग्री उपलब्ध है। 'उप. पु.। मोनाई होर्नर ने पद जो बयान इकट्ठा किये थे, वे अंक ६६, ७०, ७१, ७२, ६२ और १३ में मिलते है, और सब-इंस्पेक्टर ए. द्वारा इकट्ठा किये हुए बयान परिशिष्ट के अंक ५१, ५२, ५८, ५६, ६२ और ७० में देखे जा सकते है। एक कारखानेदार ने भी सच्ची बात कही है। देखिये अंक १४ पौर अंक २६५, उप. पु.। 21