काम का दिन ३२५ "11 पर साथ ही उनका दावा है कि भोजन आदि के लिये जो घण्टे का समय दिया जाना चाहिये, उसके बारे में यह जरूरी नहीं है कि उसका कोई भाग फैक्टरी के काम के दिन के दौरान में बिया इसलिये, कारखानेदारों का कहना था कि भोजन के समय के बारे में १४ के कानून में बो अत्यन्त कड़ी धाराएं हैं, उनके मातहत मजदूर केवल फैक्टरी में पाने के पहले और फैक्टरी से जाने के बाद-यानी केवल अपने घर पर ही-खा-पी सकते हैं। और मजदूर सुबह ९ बजने के पहले ही अपना खाना-पीना भला खतम क्यों न कर? मगर शाही वकीलों ने यही फैसला दिया कि कानून में भोजन आदि के लिये वो समय निर्धारित किया गया है, वह "काम के घण्टों के दौरान में अवकाश के रूप में दिया जाना चाहिये, और ९ बजे सुबह से शाम के ७ बजे तक बिना किसी अवकाश के लगातार १० घन्टे तक काम लेना कानून के खिलाफ समझा जायेगा।" इन सुन्दर प्रदर्शनों के बाद पूंजी ने अपने विद्रोह की भूमिका के तौर पर एक ऐसा कदम उठाया, जो १४ के कानून की शब्दावली के अनुरूप था और इसलिये वो एक कानूनी कदम था। १४ का कानून ८ वर्ष से १३ वर्ष तक के उन बच्चों से, जो बोपहर के पहले से काम कर रहे हों, बोपहर के १ बजे के बाद काम लेने से निश्चय ही मना करता था। मगर जिन बच्चों के काम का समय दोपहर के १२ बजे या उसके बाद शुरू होता था, . उनके ६ काम का यह कानून किसी प्रकार नियमन नहीं करता था। ८ बरस के बच्चों का काम यदि दोपहर को शुरूहोता हो, तो उनसे १२ बजे से १ बजे तक १ घन्टा, २ बजे से ४ बजे तक २ घण्टे, शाम के ५ बजे से रात के ८.३० बजे तक ३ षष्टे,- इस तरह कुल मिलाकर ६६ घण्टे तक काम लिया जा सकता पाया इससे भी बेहतर व्यवस्था हो सकती थी। बच्चों से रात को ८.३० बजे तक वयस्क पुरुषों के साथ-साथ काम कराने के लिये कारखानेवारों को बस यह तरकीब करने की जरूरत थी कि वे उनसे बिन के २ बजे तक कोई काम न लें, और फिर वे उनको बिना किसी अवकाश के रात के ८.३० बजे तक बराबर फैक्टरी में रख सकते थे। "और यह बात साफ तौर पर मान ली गयी है कि मिल-मालिकों की अपनी मशीनों से बस घण्टे से ज्यादा काम लेने की इच्छा के कारण इंग्लज में यह प्रथा पायी जाती है कि तमाम लड़के- लड़कियों और औरतों के फ़ैक्टरी से चले जाने के बाद पुरुषों के साथ-साथ बच्चों से भी काम लिया जाता है, और यदि फ़ैक्टरी के मालिक चाहें, तो उनको रात के ८.३० बजे तक रोक लिया जाता है। मजदूरों और फ्रेक्टरी-स्पेक्टरों ने स्वास्थ्य-विज्ञान तथा नैतिक प्रापार पर इस प्रथा का विरोध किया, किन्तु पूंजी ने उन्हें जवाब दिया कि २ . १ . "My deeds upon my head! I crave the law, The penalty and forfeit of my bond." . 1 "Reports, &c., for 30th April, 1848" ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३० अप्रैल १८४८'), पृ. ४७॥ ."Reports, &c., for 31st October, 1848" ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १८४८'), पृ० १३०। "Reports, &c." ("रिपोर्ट, इत्यादि'), उप. पु., पृ० १४२।
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