पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३२९

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३२६ पूंजीवादी उत्पादन ("मेरा किया मेरे सिर पर, मैं तो इन्साफ़ चाहता हूं। मेरे बारे में जो कुछ लिखा है, मैं बस वही चाहता हूं।") सच तो यह है कि २६ जुलाई १८५० को नो प्रांकड़े हाउस माफ कामन्स में पेश किये गये, उनके अनुसार तो इस तमाम विरोध के बावजूद १५ जुलाई १८५० को २५७ पटरियों में ३,७४२ बच्चे इस "प्रषा" का शिकार बने हुए थे। परन्तु इतना ही काफी नहीं था। पूंजी की बन-बिलाव जैसी तेव प्रांतों ने यह भी खोज निकाला कि १४ का कानून दोपहर के पहले तो इस बात की इजाजत नहीं देता कि नाश्ते के लिये कम से कम पाषे घण्टे की छुट्टी दिये बिना लगातार ५ घण्टे तक काम कराया जाये, मगर दोपहर के बाद के काम के वास्ते उसमें ऐसी शर्त नहीं है। पूनावे, उसने पाठ-पाठ बरस के बच्चों से न केवल २ बजे से लेकर रात के ८.३० बजे तक बिना किसी प्रकाश के लगातार काम कराने का, बल्कि इस पूरे अरसे में उनको भूला रखने का भी हा हासिल कर लिया। “Ay, his heart, So says the bond.” ("मुझे दो कलेगा उसका वही में यही लिखा है!")' इस प्रकार, जहाँ तक बच्चों के काम का सम्बंब पा, १४ के कानून की शब्दावली से पाइलोक की तरह चिपट जाने का उद्देश्य केवल यह पाकि "लड़के-लड़कियों और स्त्रियों" के सम्बंध में भी इस कानून के खिलाफ खुल्लमखुल्ला विद्रोह शुरू हो जाये। पाठकों को याद होगा कि इस कानून का मुख्य उद्देश्य एवं ध्येय "मूठी relay system (पालियों की प्रणाली) 91 1" Reports, &c., for 31st October, 1850" ('foute, maifa, 19 yagars १८५०'), पृ. ५, ६॥ 'पूंजी के विकसित रूप में भी उसका वही स्वभाव रहता है, जो अविकसित रूप में है। अमरीकी गृह युद्ध के प्रारम्भ होने के कुछ ही समय पहले न्यू मैक्सिको के इलाके पर गुलामों के मालिकों के प्रभाव के फलस्वरूप जो कोड थोप दिया गया था, उसमें यह कहा गया था कि पूंजीपति चूंकि मजदूर की श्रम-शक्ति खरीद लेता है, इसलिये मजदूर "उसकी (पूंजीपति की) मुद्रा होता है" (the labourer is his (the capitalist's) money")। रोम के अभिजात वर्ग के लोगों में यही दृष्टिकोण पाया जाता था। साधारण लोगों को वे जो मुद्रा कर्ज पर दे देते थे, वह जीवन-निर्वाह के साधनों के जरिये कर्जदारों के रक्त और मांस में रूपान्तरित हो जाती थी। और इसलिये यह "रक्त और मांस" उनकी "मुद्रा" होता था। दस तालिकामों का शाइलोक-मार्का कानून इसी विचार की उपज है। लिंगुएत का खयाल है कि टाइबर नदी के उस पार अभिजात वर्ग के महाजन समय-समय पर कर्जदारों के मांस का महाभोज किया करते थे। ईसाइयों के ग्रीष्ट-भोज समारोह के सम्बंध में दौमेर की परिकल्पना की भांति हम इस परिकल्पना को भी अनिर्णीत छोड़ सकते हैं।