काम का दिन ३२७ . को बन्द कराना पा। मालिकों ने अपने विद्रोह का श्रीगणेश इस साधारण सी घोषणा से किया कि १४ के कानून की ये धाराएं, जो मालिकों को १५ घण्टे के दिन के चाहे जितने छोटे भाग में लड़के-लड़कियों तथा स्त्रियों से ad libitum (इच्छानुसार) काम लेने से रोकती है, उस वक्त तक "प्रपेक्षाकृत हानिरहित' ("comparatively harmless") पीं, जब तक कि काम का समय १२ घण्टे निश्चित था। लेकिन बस घन्टे के कानून के मातहत तो ये धाराएं भी उनके लिये "भारी मुसीबत " (hardship) बन जायेंगी। मालिकों ने कैक्टरी-स्पेक्टरों को प्रत्यषिक शान्त ढंग से सूचित कर दिया कि हम अपने को कानून की शबावली के ऊपर समानते हैं और पुरानी प्रणाली अपने पाप फिर से जारी कर देना चाहते हैं।' उन्होंने कहा कि यह काम हम खुब मजदूरों के हित में करना चाहते हैं, जो गलत सलाहकारों के कहने में पागये हैं, और हमारा उद्देश्य यह है कि हम "उनको प्यावा ऊंची मजबूरी दे सकें। मालिकों का कहना था कि "बस घन्टे के कानून के मातहत चलते हुए प्रेट ब्रिटेन की प्रौद्योगिक श्रेष्ठता को कायम रखने का बस यही एकमात्र सम्भव तरीका है। " "पालियों की व्यवस्था में, मुमकिन है, अनियमित बातों का पता लगाना पोड़ा कठिन हो जाये, लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है? फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों और सब-इंस्पेक्टरों को घोड़ी सी परेशानी (some little trouble) से बचाने के लिये क्या इस देश के महान प्रौद्योगिक हितों को गौण स्थान दिया जायेगा? इन तमाम पैंतरेबानियों से, बाहिर है, कोई फायदा नहुमा । फ्रेपटरीनंस्पेक्टरों ने प्रदालतों बरवार में जाकर गुहार मचायी। परन्तु शीघ्र ही मिल-मालिकों ने बरखास्तों की ऐसी पापी उठायी कि गृह मंत्री सर जाने की नाक में बम मा गया और उन्होंने ५ अगस्त १८४८ को एक गश्ती चिट्ठी भेजकर इंस्पेक्टरों से कहा कि उनको “कानून की शब्दावली के खिलाफ बाने या पालियां बनाकर लड़के-लड़कियों से काम लेने के बारे में मिल मालिकों के विक्ट ऐसी सूरत में रिपोर्ट नहीं भेवनी चाहिये, जब कि यह यकीन करने का कोई पापार न हो कि इन लड़के- लड़कियों से सचमुच कानून द्वारा निश्चित समय से अधिक देर तक काम लिया गया है।" इसपर फैक्टरी-इंस्पेक्टर ० स्टुअर्ट ने पूरे स्कोटलेज में १५ घन्टे के फैक्टरी के दिन के दौरान में तवाकषित पालियों की प्रणाली के अनुसार काम लेने की इजाजत दे दी, और इस इलाके में इस प्रणाली का फिर पहले की तरह चोर-शोर से प्रचलन हो गया। दूसरी ओर, इंग्लैड के फ्रेक्टरी- इंस्पेक्टरों ने कहा कि गृह मंत्री को इस तानाशाही ढंग से कानून को मंसूत कर देने का कोई हक नहीं है, और उन्होंने the proslavery rebellion (गुलामी की हिमायत में की गयी इस बगावत) के खिलाफ अपनी कानूनी कार्रवाइयां जारी रखी। परन्तु पूंजीपतियों को अदालत के सामने खड़ा करने से क्या लाभ पा, अब कि अदालतें- araft it county magistrates (ardat afarrge), forment state in "Great Unpaid" . . 1 "Reports, &c., for 30st April, 1848.” ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३० अप्रैल १८४८'), पृ. २८॥ 'चुनांचे, अन्य व्यक्तियों के अलावा, दानवीर ऐशवर्य ने भी लेमोनार्ड होर्नर को एक ऐसा क्वेकर-मार्का खत लिखा है, जिसे पढ़कर बहुत अफ़सोस होने लगता है। ("Reports, &c., April, 1849" ["रिपोर्ट, इत्यादि , अप्रैल १८४६'], पृ० ४।) 'उप. पु., पृ० १४०। .
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