पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३३

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फ्रांसीसी संस्करण का परिशिष्ट . मि० 10 रोष ने एक ऐसा संस्करण तैयार करने का बीड़ा उठाया था, जो अधिक से अषिक सही हो और यहां तक कि जिसमें मूल का प्रक्षरशः अनुवाद किया गया हो, और उन्होंने यह काम बड़ी सतर्कता के साथ पूरा किया है। लेकिन उनकी इसी सतर्कता ने मुझे उनके पाठ में कुछ तबीलियां करने के लिये मजबूर कर दिया है, ताकि वह स्यावा मासानी से पाठक की समझ में पा सके। ये तबदीलियां कभी-कभी जल्दी में की जाती थी, क्योंकि किताब भागों में प्रकाशित हो रही थी, और चूंकि सब तबीलियों में बराबर सतर्कता नहीं बरती गयी, इसलिये लादिमी तौर पर उनका यह नतीजा हुमा कि शैली में बदलावड़पन मा गया। पुस्तक को बोहराने का काम एक बार हाथ में लेने पर मैं मूल पाठ (दूसरे वर्मन संस्करण) को भी दोहराने लगा, ताकि कुछ युक्तियों को और अधिक सरल बना दूं, दूसरी कुछ युक्तियों को और पूर्ण कर दूं, कुछ नयी ऐतिहासिक सामग्री या नये प्रांकड़े शामिल कर दूं और कुछ मालोचनात्मक टिप्पणियां जोड़ दूं, इत्यादि। इसलिये इस फांसीसी संस्करण में साहित्यिक दोष चाहे जैसे रह गये हों, इसका मूल संस्करण से स्वतंत्र वैज्ञानिक महत्त्व है और इसे उन पाठकों को भी देखना चाहिये, बो बर्मन संस्करण से परिचित हैं। नीचे मैं दूसरे बर्मन संस्करण के परिशिष्ट के उन अंशों को दे रहा हूं, जिनमें जर्मनी में प्रशास्त्र के विकास और मेरी इस रचना में प्रयोग की गयी पत्ति की चर्चा की गयी है। कार्ल मार्क्स लन्दन, २८ अप्रैल १८७५।