पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३४

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तीसरे जर्मन संस्करण की भूमिका . इस तीसरे संस्करण को प्रेस के लिये जर तैयार करना मास के भाग्य में नहीं था। उस शक्तिशाली विचारक की, जिसकी महानता के सामने अब उसके विरोधी तक शीश नवाते है, १४ मार्च १८५३ को मृत्यु हो गयी। मार्स की मृत्यु से मैंने अपना सबसे अच्छा, सबसे सच्चा और चालीस वर्ष पुराना मित्र तो दिया। यह मेरा ऐसा मित्र गा, जिसका मुमपर इतना जग है, जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। उसकी मृत्यु के बाद इस तीसरे संस्करण के और साथ ही उस द्वितीय सम के प्रकाशन की देखरेख करने की जिम्मेवारी मुमपर पायी, जिसे मार्स हस्तलिपि के म में छोड़ गये थे। अब मुझे यहाँ पाठक को यह बताना है कि इस जिम्मेवारी के पहले हिस्से को मैंने किस ढंग से पूरा किया है। मार्स का शुरू में यह रावा बा कि प्रथम सग के अधिकतर भाग को फिर से लिस गलें, वह बहुत से सेवान्तिक नुकतों को क्या सही ढंग से पेश करना चाहते थे, कुछ नये नुकते बोड़ना और नवीनतम ऐतिहासिक सामग्री तथा प्राकड़े शामिल करना चाहते थे। परन्तु उनकी बीमारी ने और द्वितीय सण का बल से बल्ल अन्तिम सम्पादन करके उसे तैयार कर देने की प्रावश्यकता ने उनको यह योजना त्याग देने पर मजबूर कर दिया। तय हुआ कि महल बहुत ही बरी तबीलियां की गायें और केवल वे ही नये अंश बोड़े गायें, वो फ्रांसीसी Hancu (“Le Capital”. Par Karl Marx. Paris, Lachâtre, 1873) Á quite et मौजूद हैं। मार्स यो किताबें छोड़ गये हैं, उनमें 'पूंजी' की एक बर्मन प्रति थी, बिसे उन्होंने पर वहाँ-तहां सही किया था और जिसमें फांसीसी संस्करण के हवाले भी दिये थे। उसके साथ-साथ उन किताबों में एक फ्रांसीसी प्रति भी पी, जिसमें उन्होंने क उन अंशों को इंगित किया था, जिनको इस्तेमाल करने की पावश्यकता पी। कतिपय अपवादों को छोड़कर ये सारे परिवर्तन और मूल पाठ में जोड़े गये नये अंश पुस्तक के केवल उस प्राषिरी (अंग्रेजी संस्करण के उपान्त्य) भाग तक ही सीमित है, जिसका शीर्षक है 'पूंजी का संचय'। यहां पहले वाली पाठ्य सामग्री दूसरी सभी जगहों की तुलना में मौलिक मसवि के प्रषिक अनुरूम वी, जब कि उसके पहले पाले हिस्सों को स्थावा यान देकर दोहराया पाएका पा। इसलिये इस पाखिरी हिस्से की शैली प्रषिक सजीव और ते कि एक ही सांचे में डाली गयी लगती थी, लेकिन साथ ही उससे कुछ ज्यादा लापरवाही भी झलकती थी, उसमें अंग्रेजी मुहावरे और प्रयोग छाये हुए थे और अनेक स्थानों पर भाषा प्रस्पष्ट हो गयी थी, जहां-तहां लगता पा कि बलीलों को पेश करने में से कुछ छूट गया है और कुछ महत्वपूर्ण बातों की तरफ इशारा भर करके छोड़ दिया गया है। -