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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३३७

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३३४ पूंजीवादी उत्पादन हर महीने के बाद इस स्थिति के विरोध में अपनी भावान गुलब करता है, पर यह कुप्रथा प्राण तक ज्यों की त्यों बली पाती है।' सुबह ५.३० बजे से रात के ८.३० बजे तक के १५ घन्टे के काम के समय को १८५० कानून ने केवल "लड़के-लड़कियों और स्त्रियों" के लिये ६ बजे सुबह से ६ बजे शाम तक के १२ घन्टे के समय में बदल दिया इसलिये, इस कानून का उन बच्चों पर कोई असर नहीं पड़ा, जिनसे हमेशा इस काल के प्राधा घण्टा पहले और २६ घण्टे बाद काम लिया . जा सकता था। हां, इतना खयाल रखना बहरी था कि कुल मिलाकर उनसे ६. घण्टे से ज्यादा काम न लिया जाये। जब बिल पर बहस चल रही थी, तो फैक्टरी-इंस्पेक्टरों ने संसद के सामने इस बारे में पकड़े पेश किये कि इस प्रसंगति से मालिक कितना बेजा फायदा उठा रहे हैं। पर इससे कोई लाभ नहीं हुमा। कारण कि पृष्ठभूमि में तो यह इच्छा थी कि व्यवसाय की समृद्धि का काल माने पर बच्चों की मदद से वयस्क पुरुषों से किसी न किसी तरह १५ घण्टे रोजाना काम कराया जाये। इसके बाद के तीन वर्षों के अनुभव से यह मालूम हमा कि यदि ऐसी कोई कोशिश की जायेगी, तो वह वयस्क मजदूरों के विरोध के सामने कामयाब नहीं हो सकेगी। इसलिये मासिर १८५३ में 'सुबह को लड़के-लड़कियों तथा स्त्रियों के पहले और शाम को उनके बाद बच्चों से काम लेने" की मनाही करके १८५० के कानून को पूर्णता दी गयी। इस समय से १८५० का फ़ैक्टरी-कानून कुछ अपवादों को छोड़कर बाक़ी उन सभी मजदूरों के काम के दिन का नियमन करने जो उद्योग की उन शाखामों में काम करते थे, जिनपर यह कानून लागू था।' लगा, यह बात सुविदित है कि इंग्लैण्ड के “स्वतंत्र व्यापार के समर्थकों" ने रेशम के उद्योग के संरक्षण के लिये लगायी गयी चुंगी की मंसूखी के सम्बन्ध में कितनी अनाकानी दिखायी थी। पर अब यदि फ्रांस से आने वाले रेशमी माल पर लगी हुई चुंगी उसकी रक्षा नहीं करती, तो उसके बजाय इंग्लैण्ड के कारखानों में काम करने वाले बच्चों के लिए संरक्षण का प्रभाव उसकी सहायता करता है। "Reports, &c., for soth April, 1853" ("रिपोर्ट, इत्यादि, ३० अप्रैल १८५३'),. २१८५६ और १८६० इंगलैण्ड के सूती उद्योग के परमोत्कर्ष के वर्ष थे। इन वर्षों में कारखानेदारों ने प्रोवरटाइम काम के लिये ऊंची मजदूरी का लालच देकर वयस्क पुरुषों को काम के दिन के विस्तार के लिये राजी करने की कोशिश की। हाप से चलने वाले म्यूल पर कताई करने वाले मजदूरों ने और अपने पाप चलने वाले म्यूलों की देखरेख करने वाले मजदूरों ने मालिकों के पास एक दरखास्त भेजकर इस प्रयास का अन्त कर दिया। इस दरखास्त में उन्होंने कहा था: "यदि साफ़-साफ़ कहा जाये, तो हमारा जीवन हमारे लिये एक बोझा बन गया है, और जब तक हम लोगों को प्रति सप्ताह देश के बाकी मजदूरों से लगभग दो दिन [२० घण्टे] अधिक मिलों में बन्द रखा जायेगा, तब तक हम अपने को कृषि-दासों के समान समझते रहेंगे और हमें लगेगा कि हम एक ऐसी व्यवस्था को चिरस्थायी बना रहे हैं, जो हमारे लिये और पाने वाली पीढ़ियों के लिये हानिकारक है ... इसलिये इस दरखास्त के - .