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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३३९

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पूंजीवादी उत्पादन मुकाबले में उनकी अपनी शालानों की हालत कितनी अच्छी है। "प्रशास्त्र" के पाली प्रचारक अब यह कहते फिरते थे कि कानून द्वारा काम के दिन को निश्चित करने की प्रावश्यकता को महसूस करना- यह उनके "विज्ञान" का एक विशिष्ट एवं नवीन प्राविष्कार था।' यह बात मासानी से समझ में प्रा जानी चाहिये कि जब कल-कारखानों के मालिकों ने अवश्यम्भावी के सामने सिर झुका दिया और उसे अनिवार्य मानकर स्वीकार कर लिया, उसी समय से पूंजी की प्रतिरोष की शक्ति धीरे-धीरे कम होती गयी और साथ ही, प्रत्यक रूप से इस सवाल में कोई दिलचस्पी न रखने वाले समाज के वर्षों से नये सहायक मिलने के साथ-साथ, मजदूर-वर्ग की पूंजी पर हमला करने की शक्ति बढ़ती गयी। १८६० के बाद से इसीलिये अपेक्षाकृत तीव गति से प्रगति हुई है। कपड़ा रंगने और सफेद करने के सब के सब कारखाने १९६० में १९५० के फ्रेक्टरी- कानून के मातहत मा गये लैस और जुर्राब तैयार करने वाले कारखानों पर यह कानून १८६१ में लागू हुआ। मिसाल के लिये, २४ मार्च १८६३ के "The Times" में ई. पोटर का पत्र देखिये। "The Times" ने मि• पोटर को दस घण्टे के बिल के खिलाफ कारखानेदारों के विद्रोह का स्मरण करवाया था। 'अन्य व्यक्तियों के अलावा, "History of Prices" ('दामों का इतिहास') लिखने में टूके के सहयोगी तथा इस पुस्तक के सम्पादक मि० डब्लयू ० न्यूमाचं ने भी इसी प्रकार की बात कही है। कायरों की तरह जनमत के सामने सिर झुका देना भी क्या विज्ञान की प्रगति है ? ११८६० में जो कानून पास हुआ था, उसने कपड़े रंगने तथा सफ़ेद करने के कारखानों के विषय में यह ते किया था कि १ अगस्त १८६१ से काम का दिन अस्थायी तौर पर १२ घण्टे का और १ अगस्त १८६२ से निश्चित रूप से १० घण्टे का माना जाये , यानी मजदूर साधारण दिनों को १० घण्टे और शनिवार को ७ घण्टे काम किया करें। लेकिन जब १८६२ का निर्णायक वर्ष पाया, तो फिर वही पुराना नाटक दोहराया गया। इसके अलावा, कारखानेदारों ने संसद को दरखास्त दी कि उन्हें और एक साल तक लड़के-लड़कियों तथा स्त्रियों से १२ घण्टे रोज काम लेने की इजाजत दी जाये। उन्होंने लिखा था कि “व्यवसाय की वर्तमान अवस्था में (यह कपास के अकाल का समय था) मजदूरों का इसमें बड़ा लाभ है कि वे १२ घण्टे रोजाना काम करें और जब मजदूरी कमा सकते हैं, कमा लें।" इस माशय का एक बिल भी संसद में पेश कर दिया गया था, "और मुख्यतया यह स्कोटलैण्ड के कपड़ा सफ़ेद करने के कारखानों के मजदूरों की कार्रवाइयों का नतीजा था कि बाद में इस बिल का विचार छोड़ दिया गया था।" ("Reports, &c., for 31st October, 1862" ["रिपोर्ट , इत्यादि, ३१ अक्तूबर १९६२'], पृ० १४-१५।) जब पूंजी को उन्हीं मजदूरों ने परास्त कर दिया, जिनके नाम पर बोलने का वह दावा करती थी, तो उसने वकीलों के चश्मों की मदद से यह खोज की कि १८६० के कानून में, संसद के 'श्रम के संरक्षण' के उद्देश्य से बनाये गये अन्य कानूनों की तरह, बहुत सी ऐसी मस्पष्ट बातें हैं, जिनके बहाने से वे "calenderers" (इस्तरी करने वाले मजदूरों) और "finishers' (फ़िनिश करने वाले मजदूरों) को इस कानून के क्षेत्र से अलग कर सकते है। अंग्रेजों का न्यायशास्त्र सदा पूंजी का वफ़ादार सेवक रहा है। उसने .