पूंजीवादी उत्पादन . घटता जाता है। चूंकि एक ही किया मालों को सस्ता कर देती है और साथ ही उनमें निहित अतिरिक्त मूल्य को बढ़ा देती है, इसलिये यहां पर हमें इस समस्या का हल मिल जाता है कि पूंजीपति , जिसका एकमात्र उद्देश्य विनिमय-मूल्य का उत्पादन करना होता है, क्यों मानों के विनिमय-मूल्य को सवा घटाने की कोशिश में लगा रहता है? यही वह पहेली थी, जिसके द्वारा प्रशास्त्र का एक संस्थापक, वेखने, अपने विरोधियों को सताया करता था और जिसे वे कभी भूल न पाते थे। वेखने कहता पाः "तुम लोग यह मानते हो कि मोद्योगिक पैदावार के निर्माण में उत्पादन को कोई हानि पहुंचाये बिना बर्षे को और मम की लागत को जितना कम किया जा सकता है, उससे उतना ही अधिक लाभ होता है, क्योंकि इस तरह तैयार बस्तु का दाम घट जाता है। और, फिर भी, तुम यह समझते हो कि मजदूरों के श्रम से पैदा होने वाली दौलत का उत्पादन वास्तव में उनकी पैदावार के विनिमय-मूल्य को बढ़ाकर किया जाता है।" इसलिये, पूंजीवादी उत्पादन में जब मन की उत्पादकता को बढ़ाकर उसकी बचत की जाती है, तब इसका उद्देश्य काम के दिन को छोटा करना नहीं होता। इसका उद्देश्य केवल यह होता है कि मालों की एक निश्चित मात्रा के उत्पादन के लिये प्रावश्यक प्रम-काल को घटा दिया जाये। मजदूर के श्रम की उत्पादकता के बढ़ जाने पर यदि बाह, मान लीजिये, पहले से बस-गुना माल तैयार करने लगता है और इस तरह हर बस्तु पर पहले का केवल , 1 "Ils conviennent que plus on peut, sans préjudice, épargner de frais ou de travaux dispendieux dans la fabrication des ouvrages des artisans, plus cette épargne est profitable par la diminution des prix de ces ouvrages. Cependant ils croient que la production de richesse qui résulte des travaux des artisans consiste dans l'augmentation de la valeur vénale de leurs ouvrages.” (Quesnay, "Dialogues sur le Commerce et les Travaux des Artisans”, Daire 4 pcu, Paris, 1846, qo 955, 95€ 1 ) 8"Ces spéculateurs si économes du travail des ouvriers qu'il faudrait quils payassent." ["इन सट्टेबाजों को जब मजदूरों के श्रम के दाम देने पड़ते है, तब वे उसका उपयोग करने में बड़ी कमली दिखाते हैं।"] (J. N. Bidaut, "Du Mo- nopole qui s'établit dans les arts industriels et le commerce", Paris, 1828, q. १३) “मालिक हमेशा समय और श्रम की बचत करने की कोशिश में रहेगा।" (Dugald Stewart, Works, ed. by Sir W. Hamilton, Edinburgh, v. viii, 1855, "Lectures on Polit. Econ." [गल्ड स्टीवर्ट , 'अर्थशास्त्र पर कुछ भाषण', सर डब्लयू० हैमिलटन द्वारा सम्पादित 'रचनाएं' में , एडिनबरा , खण्ड ८,१८५५], पृ० ३१८ 1 ) "उनका (पूंजीपतियों का) हित इसमें है कि जिन मजदूरों को उन्होंने नौकर रखा है, उनकी उत्पादक शक्तियां अधिक से अधिक हों। उनका ध्यान एक तरह से सदा केवल इस शक्ति को बढ़ाने में ही लगा TRATI" ("Text-book of Lectures on the Political Economy of Nations. By the Rev. Richard Jones" ['राष्ट्रों के अर्थशास्त्र के विषय में कुछ भाषणों की पाठ्य-पुस्तक । रेवरेण्ड रिचर्ड जोन्स द्वारा लिखित'], Hertford, 1852, Lecture m (तीसरा भाषण) [पृ. ३९]।) . .
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