सहकारिता . . फिर . जाती हैं। प्रसिद्ध फूटतार्किक एवं चाटुकार एग्मण वर्क तो काश्तकार के रूप में अपने व्यावहारिक अनुभव के प्राधार पर इस हद तक रावा करते हैं कि पांच लेत-मजदूरों की 'जैसी छोटी इकड़ी" में भी तमाम व्यक्तिगत भिन्नताएं गायब हो जाती है और इसलिये अगर किन्हीं भी पांच वयस्क खेत-मजदूरों से एक साथ काम कराया जाये, तो वे समान समय में उतना ही काम करेंगे, जितना कोई और पांच करेंगे।' बहरहाल जो भी हो, इतनी बात स्पष्ट है कि जिनसे एक साथ काम लिया जा रहा है, ऐसे मजदूरों की एक अपेक्षाकृत बड़ी संख्या के सामूहिक काम के दिन को इन मजदूरों की संख्या से भाग देने पर मौसत सामाजिक श्रम का एक दिन निकल पाता है। मिसाल के लिये, मान लीजिये कि प्रत्येक व्यक्ति का काम का दिन १२ घण्टे का है। तब एक साथ काम करने वाले १२ व्यक्तियों का सामूहिक काम का दिन १४ घण्टों के बराबर होगा। और हालांकि इन एक दर्जन पादमियों में से प्रत्येक अलग-अलग भादमी का श्रम प्रोसत ढंग के सामाजिक श्रम से कुछ कम या अधिक होगा और इसलिये हालांकि उनमें से हरेक को एक सी क्रिया को पूरा करने में अलग-अलग समय लगेगा, १ भी चूंकि हरेक का काम का दिन १४ घण्टे के सामूहिक दिन का १२ वां भाग है, इसलिये उसमें एक प्रोसत ढंग के सामाजिक काम के दिन के गुण मौजूद होंगे। किन्तु इन १२ भादमियों से काम लेने वाले पूंजीपति के दृष्टिकोण से काम का दिन पूरे वर्जन भर पावमियों का दिन होता है। और ये १२ भादमी चाहे अपने काम में एक दूसरे की मदद करें और चाहे इन भादमियों के काम में केवल इतना सम्बंध हो कि वे सब एक पूंजीपति के लिये काम कर रहे हैं, प्रत्येक अलग-अलग प्रावमी का दिन इस सामूहिक काम के दिन का एक पूरकभाजक भाग होता है। परन्तु यदि इन १२ भादमियों की छः जोड़ियों से छः छोटे-छोटे मालिक काम लेते हैं, तो यह बात केवल संयोग पर ही निर्भर करेगी कि इनमें से हरेक मालिक दूसरों के समान मूल्य पैदा कर पाता है या नहीं और इसलिये अतिरिक्त मूल्य की सामान्य दर के अनुसार अतिरिक्त मूल्य कमा पाता है या नहीं। हर अलग-अलग सूरत में थोड़ा-बहुत फर्क रहेगा। किसी माल के उत्पादन में सामाजिक दृष्टि से जितना समय लगना चाहिये, यदि किसी मजदूर का उस की अपेक्षा बहुत अधिक समय लग जाता है, तो उसका प्रावश्यक भम-काल सामाजिक दृष्टि से मावश्यक प्रोसत श्रम-काल से काफी भिन्न होगा और इसलिये न तो उसका श्रम प्रोसत श्रम माना जायेगा और न ही उसकी श्रम-शक्ति प्रासत श्रम-शक्ति मानी जायेगी। तब यह भम-शक्ति या तो बिल्कुल न विक पायेगी, और विकेगी, तो प्रोसत मूल्य से कम दाम पर। - 1" बल, दक्षता और ईमानदारी की दृष्टि से निस्सन्देह एक आदमी के श्रम और दूसरे पादमी के श्रम के मूल्य में बहुत अन्तर होता है। लेकिन मेरा जितना अनुभव है, उसके आधार पर मुझे पूर्ण विश्वास है कि कोई भी पांच पादमी कुल मिलाकर उतना ही श्रम करेंगे , जितना कोई भी अन्य पांच जीवन की उपर्युक्त प्रवस्थानों में करेंगे। अर्थात् ऐसे पांच प्रादमियों में एक ऐसा होगा, जिसमें एक अच्छे मजदूर के सारे गुण मौजूद होंगे, एक ख़राब मजदूर होगा और बाकी तीन पहले और अन्तिम मजदूर के बीच के स्तर के होंगे। चुनांचे, पांच मजदूरों की छोटी सी टुकड़ी से भी माप वह पूरा काम ले सकेंगे, जो कोई भी पांच प्रादमी कर सकते हैं।". (E. Burke, उप. पु., पृ० १५, १६ ।) प्रोसत व्यक्ति के विषय में स्वेतलेत से तुलना कीजिये।
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