पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४१२

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श्रम का विभाजन और हस्तनिर्माण Yo हस्तनिर्माण में, जो कि मजदूर को महन एक तासीली काम करने वाला मजदूर बना देता है, यह अलगाव और बढ़ जाता है। माधुनिक उद्योग में, जो विज्ञान को श्रम से बिल्कुल अलग उत्पादक शक्ति बना देता है और उसे पूंजी की सेवा में जोत देता है, यह अलगाव पूरा हो जाता है। हस्तनिर्माण में सामूहिक मजदूर को और उसके परिये पूंजी को सामाजिक उत्पादक शक्ति की दृष्टि से धनी बनाने के लिये हर अलग-अलग मजदूर को व्यक्तिगत उत्पादक शक्तियों के मामले में गरीब बना देना पड़ता है। "मशान भी अंधविश्वास के साथ-साथ उद्योग की मां है। चिन्तन और कल्पना गलती कर सकते हैं, पर हाथ या पैर को हिलाने की प्रावत बोनों से स्वतंत्र होती है। चुनाचे, हस्तनिर्माण सबसे अधिक वहाँ फलते-फूलते हैं, जहां मस्तिष्क से कम से कम परामर्श लिया जाता है और वहां वर्कशाप . एक इंजन की तरह होती है, जिसके पूर्व इनसान होते हैं। सच बात तो यह है कि १८ वीं सदी के मध्य में कुछ इने-गिने कारखानेदार ऐसी क्रियाओं के लिये, जो व्यापारिक रहस्य होती थी, अर्ष-मूढ़ व्यक्तियों को नौकर रखना पसन्द करते थे।' ऐग्म स्मिथ ने कहा है : "अधिकतर मनुष्यों की समझ-यूम की संरचना अनिवार्य रूप से उनके साधारण पंषों द्वारा होती है। जिस मादमी का पूरा जीवन चन्द सरल सी क्रियाओं को सम्पन्न करने में खर्च हो जाता है ... उसको अपनी समझ-यूम पर चोर गलने का कोई मौका नहीं मिलता... ऐसा मादमी पाम तौर पर इतना मूर्ख और जाहिल हो जाता है, जितना कोई मनुष्य कभी हो सकता है।" तफसीली काम करने वाले मजदूर की मूर्खता का वर्णन करने के बाद ऐग्म स्मिय मागे लिखते हैं : “उसके निश्चल बीवन की एकरसता स्वाभाविक रूप से उसके मन के साहस को कुंठित कर देती है यहां तक कि वह उसके शरीर की क्रियाशीलता को भी कुंठित कर देती है, और जिसमें वह पला है, एक उस धंधे को छोड़कर अन्य किसी भी धंधे में तेजी और लगन के साथ अपनी शक्ति का प्रयोग करने के उसे अयोग्य बना देती है। इस तरह खुद अपने विशेष पंधे में उसकी निपुणता कुछ इस तरह की प्रतीत होती है, जैसे वह उसके बौद्धिक, सामाजिक एवं सामरिक गुणों की बलि देकर प्राप्त की गयी हो। परन्तु हर उन्नत और सम्य समाज में श्रमजीवी गरीबों को (the labouring poor), ... . . 1"ज्ञानी व्यक्ति और उत्पादक मजदूर एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं, और ज्ञान मजदूर के हाथ में उसकी उत्पादक शक्तियां बढ़ाने के लिए श्रम की परिचारिका के रूप में काम करने के बजाय ... लगभग हर जगह श्रम के विरोध में खड़ा हो गया है ... और उनकी (मजदूरों की) मांस-पेशियों की शक्तियों को सर्वथा यांत्रिक एवं प्राज्ञाकारी बना देने के उद्देश्य से उनको सुनियोजित ढंग से धोखा देता है और गुमराह करता है।" (W. Thompson, "An Inquiry into the Principles of the Distribution of Wealth" [डब्लयू० टौम्पसन, 'धन के बंटवारे के सिद्धान्तों की जांच'], London, 1824, पृ. २७४।)

  • A. Ferguson,

पु०, पृ० २८०।

  • J. D. Tuckett, "A History of the Past and Present State of the

Labouring Population" [जे० ० टकेट्ट, 'श्रमजीवी मावादी की भूतकालिक तथा वर्तमान अवस्था का इतिहास'], London, 1846 (अन्य १, पृ० २७४) ।