४१२ पूंजीवादी उत्पादन . रहा हूं, -वहीं पर उसे या तो उस संघटन के अवयव , जिससे उसे काम लेना है, इपर-उपर वितरे हुए पहले से तैयार मिल जाते हैं, जिनको उसे केवल जमा कर देना होता है, जैसा कि बड़े शहरों में कपड़े के हस्तनिर्माण में होता है,-पौर या वह महब किसी बस्तकारी (जैसे जिल्बसाखी) की विभिन्न नियामों को केवल कुछ खास व्यक्तियों को सौंपकर बड़ी मासानी से विभाजन के सिद्धान्त को व्यवहार में ला सकता है। ऐसी सूरत में एक सप्ताह का अनुभव ही अलग-अलग कामों के लिये पावश्यक मजदूरों की संस्थानों का अनुपात निर्धारित करने के लिये काफी होता है।' बस्तकारियों को छिन्न-भिन्न करके, भन के प्राचारों का विशिष्टीकरण करके, तफ़सीली काम करने वाले मजदूरों को जन्म देकर और उनको जत्वेबन्द करके तथा एक संयुक्त यंत्र का रूप देकर हस्तनिर्माण में होने वाला भम-विभाजन उत्पादन की सामाजिक क्रिया में एक गुणात्मक पर-सोपान और परिमाणात्मक अनुपात पैदा कर देता है। इसके फलस्वरूप वह समाज के श्रम का एक निश्चित संगठन पैरा कर देता है और साथ ही उसके द्वारा समाज में नयी उत्पादक शक्तियों को विकसित करता है। श्रम-विभाजन अपने विशिष्ट पूंजीवावी रूप में,-और जैसी परिस्थितियां पहले से मौजूद थीं, उनमें वह पूंजीवादी पके सिवा और कोई प नहीं पारण कर सकता था,-केवल सापेन अतिरिक्त मूल्य प्राप्त करने या मजदूर के मत्थे पूंजी के प्रात्म- विस्तार को और तेज करने की ही एक खास पति होता है। इसी पूंजी को प्रायः सामाजिक "wealth of nations" ("राष्ट्रों का धन") प्रादि कहा जाता है। अपने पूंजीवावी रूप में श्रम-विभाजन न केवल मजदूर के बजाय पूंजीपति के हित में श्रम की सामाजिक उत्पादक शक्ति को बढ़ाता है, बल्कि वह मजदूरों को लुंग बनाकर यह कार्य सम्पन्न करता है। वह श्रम के ऊपर पूंजी की प्रभुता के लिये नयी परिस्थितियां पैदा कर देता है। इसलिये, यदि एक तरफ वह ऐतिहासिक दृष्टि से एक प्रगतिशील कदम तथा समाज के प्रार्षिक विकास की एक सरी मंजिल के रूप में सामने प्राता है, तो, दूसरी तरफ, वह शोषण की एक सुसंस्कृत एवं सम्य प्रणाली भी है। एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में प्रशास्त्र ने पहले-पहल हस्तनिर्माण के काल में जन्म लिया पा। वह सामाजिक सम-विभाजन को केवल हस्तनिर्माण के दृष्टिकोण से ही देखता है और इसे केवल श्रम की एक निश्चित मात्रा की बदौलत पहले से अधिक माल तैयार करने और . 1 यह सरल विश्वास कि अलग-अलग पूंजीपति श्रम का विभाजन करने में किसी निगम्य (a priori) माविष्कार-प्रतिभा का प्रयोग करते हैं, पाजकल केवल हेर रोश्चेर के ढंग के जर्मन प्रोफ़ेसरों में ही पाया जाता है। हेर रोश्चेर यह मानकर चलते है कि श्रम-विभाजन का विचार पूंजीपति के दिमाग से बना-बनाया तैयार निकलता है, जिस तरह मिनर्वा जुपिटर के माये से निकली थी, और इसके एवज में हेर रोश्चेर पूंजीपति को “विभिन्न प्रकार की मजदूरियां" ("diverse Arbeitslāhne") समर्पित कर देते हैं। श्रम-विभाजन का छोटे पैमाने पर प्रयोग किया जायेगा या बड़े पैमाने पर, यह , असल में, पूंजीपति की प्रतिमा पर नहीं, बल्कि उसकी शैली के प्राकार पर निर्भर करता है। 'पेटी तथा "Advantages of the East India Trade' ('ईस्ट इण्डिया के व्यापार के लाभ') के गुमनाम लेखक जैसे पुराने लेखक हस्तनिर्माण में इस्तेमाल होने वाले श्रम-विभाजन के पूंजीवादी स्वरूप का ऐडम स्मिय से अधिक स्पष्टता के साथ निरूपण करते हैं।
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