श्रम का विभाजन और हस्तनिर्माण ४१५ विभावन प्राधारित होता है, केवल उपयोग मूल्य पर जोर देने का यह बस सेनोफोन की भांति ही सुस्पष्टता के साथ अपनाते है, जो अपनी पूंजीवादी प्रवृत्ति के कारण वर्कशाप में होने वाले भम-विभाजन के ज्यादा नजदीक पहुंच जाते हैं। प्लेटो के प्रजातंत्र में यहां तक राज्य के निर्माणकारी सिदान्त के रूप में भम-विभाजन की पर्चा की गयी है, वहां तक प्लेटो का प्रजातंत्र केवल मिल की वर्ण-व्यवस्था का ही एक एपेन्सीय पार्श स है। प्लेटो के बहुत से समकालीन लोगों के लिये भी मिब एक पांचोगिक देश के ममूने का काम कर चुका है। अन्य लोगों के अलावा प्राइसोकेटस' का भी यही विचार . गया, - है, उसमें भी हमें प्लेटो का यही विचार फिर से सुनाई पड़ रहा है। इन लोगों का व्यवसाय मजदूरों की सुविधा का इन्तजार नहीं कर सकता, क्योंकि उनके कारखानों में "मुलसाने , धोने , सफ़ेद करने , इस्तरी करने, भाप से इस्तरी करने और रंगने की जो क्रियाएं होती हैं, उनमें से कोई भी किसी एक निश्चित क्षण पर नुक़सान के खतरे के बिना नहीं रोकी जा सकती ... सभी मजदूरों के लिये यदि भोजन का कोई एक समय निश्चित किया तो कभी-कभी अपूर्ण क्रिया के कारण बहुत कीमती सामान के नष्ट हो जाने का खतरा पैदा हो जायेगा।" Le platonisme ou va-t-il se nicherl (इसके बाद अब और कहां पर हमें प्लेटोवाद के दर्शन होंगे!) क्सेनोफ़ोन का कहना है कि ईरान के राजा के लिये तैयार किये गये भोजन में से कुछ पा जाना न केवल सम्मान की बात है, बल्कि यह भोजन भन्य भोजन से अधिक स्वादिष्ट होता है। "और इसमें कोई पाश्चर्य की बात नहीं है। कारण कि जिस तरह बड़े शहरों में अन्य कलामों का खास विकास होता है, उसी तरह शाही भोजन भी एक खास ढंग से तैयार किया जाता है। कारण कि छोटे शहरों में चारपाइयां, दरवाजे, हल और मेज, सब एक ही पादमी बनाता है, और अक्सर तो घर भी वही बना देता है, और यदि उसके जीवन- निर्वाह लायक ग्राहक मिल जाते हैं, तो वह बूब संतुष्ट रहता है। जो भादमी इतने बहुत से काम एक साथ करता हो, उसके लिये उन सब को अच्छी तरह करना सर्वथा असम्भव है। परन्तु बड़े शहरों में, जहां हरेक को बहुत से खरीदार मिल सकते हैं, एक पादमी के जीवन- निर्वाह के लिये केवल एक धंधा ही काफ़ी होता है। नहीं, बल्कि अक्सर तो एक पूरे धंधे की भी जरूरत नहीं होती; एक आदमी मदों के लिये जूते बनाता है, तो दूसरा आदमी औरतों के लिये। कहीं-कहीं पर एक पादमी जूते सीकर जीविका कमाता है, तो दूसरा जूतों के लिये चमड़ा काटकर गुजर करता है; एक पादमी कपड़े की कटाई के सिवा और दूसरा कटे हुए टुकड़ों को सीने के सिवा और कुछ नहीं करता। तो इससे हम पनिवार्य रूप से इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि जो पादमी सबसे सरल ढंग का काम करता है, वह निस्सन्देह उसे सबसे बेहतर करता है। भोजन बनाने की कला के लिये भी यही बात सच है।" (Xenophon, "Cyro- paedia", अन्य ८, अध्याय २१) सेनोफ़ोन ने यहां केवल इस बात पर जोर दिया है कि पहले से कितना अच्छा उपयोग-मूल्य तैयार हो सकेगा, हालांकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि श्रम-विभाजन के सोपान-क्रम मण्डी के विस्तार पर निर्भर करते हैं। " उसने (बुसाइरिस ने ) उन सब को विशेष वर्गों में बांट दिया था पावेश पा कि एक व्यक्ति को सदा एक ही धंधा करना चाहिये। यह इसलिये कि बुसाइरिस को यह मालूम था कि जो लोग अपना धंधा बदलते रहते है, वे किसी धंधे में निपुण नहीं हो ... उसका
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