पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४३४

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मशीनें और प्राधुनिक उद्योग ४३१ . . मानव-हापों को पूरी करनी होगी, उसका विश्लेषण किया जाता है और उसको उसकी संघटक उपभियानों में बांट दिया जाता है और हर तफसीली उपनिया को कार्यान्वित करने तथा सारी उपणियामों को एक सम्पूर्ण इकाई में जोड़ने की समस्या को मशीनों तथा रसायन-विज्ञान प्रावि की सहायता से हल किया जाता है। लेकिन चाहिर है कि इस सूरत में भी बड़े पैमाने पर अनुभव संचय करके सिद्धान्त को पूर्णता प्रदान करना पावश्यक होता है। तकसीली काम करने बाली हर मशीन काल में अगले नम्बर की मशीन को कच्चा माल तैयार करके देती है, और कि तमाम मशीनें एक साथ काम करती होती है, इसलिये पैदावार सदा अपने निर्माण की विभिन्न अवस्थामों में से गुजरती रहती है और साथ ही यह निरन्तर एक परिवर्तनकालीन रक्षा में, एक अवस्था को छोड़कर दूसरी अवस्था में प्रवेश करने की बता में, बनी रहती है। जिस प्रकार हस्तनिर्माण में तफसीली काम करने वाले मजदूरों की प्रत्यक्ष सहकारिता विशिष्ट बलों की संख्या के बीच एक अनुपात स्थापित कर देती है, क उसी प्रकार मशीनों की संगठित संहति में भी, वहां तफसीली काम करने वाली एक मशीन सा किसी दूसरी मशीन को काम में लगाये रहती है, मशीनों की संख्या, पाकार तथा गति के बीच एक निश्चित अनुपात कायम हो पाता है। सामूहिक मशीन सब नाना प्रकार की मशीनों तवा मशीनों के बलों की एक संगति संहति होती है, और वह उतनी ही पूर्ण होती जाती है, जितनी उत्पादन की पूरी किया एक निरन्तर चलने वाली क्रिया बनती जाती है, अर्थात् कच्चे माल के उत्पादन प्रक्रिया की पहली अवस्था से मन्तिम अवस्था तक गुबरने में जितने कम व्यापात होते हैं, या, दूसरे शब्दों में, जितना उसके एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुंचने का कार्य मनुष्य के हाथों के द्वारा नहीं, बल्कि बुर मशीनों के द्वारा सम्पन्न होता है। हस्तनिर्माण में हर तफतीली उपनिया का पृषक कर दिया जाना मम-विभाजन के स्वल्म के कारण अनिवार्य हो जाता है, पर एक पूरी तरह विकसित फैक्टरी में, इसके विपरीत, इन मियामों की अविच्छिन्नता अनिवार्य होती है। मशीनों की संहति चाहे केवल एक ही प्रकार की मशीनों की सहकारिता पर पाषारित हो, जैसा कि बुनाई में होता है, और पाहे अलग-अलग प्रकार की मशीनों के योग पर प्राधारित हो, जैसा कि कताई में होता है, वह पर जब कभी किसी स्वचालित मूल पालक के द्वारा चलायी जाती है, तब सदा एक बड़ा लम्बा-चौड़ा स्वचालित यंत्र बन जाती है। लेकिन वहां कोई फैक्टरी पूरी की पूरी जुद अपने भाप के इंजन द्वारा चलायी जाती है, वहां पर भी या तो कुछ बास मशीनों को अपने कुछ बाल संचलनों के लिये मजबूर की मदद की पावश्यकता हो सकती है (स्वचालित म्यूल का प्राविकार होने के पहले म्यूल के प्राचार को घर से उपर चौड़ाने में इस तह की मवर की परत होती थी, और महीन कताई करने वाली मिलों में उसकी मान भी मावस्यकता होती है) और या किसी मशीन के काम करने के लिये यह बरी हो सकता है कि उसके कुछ खास हिस्सों से मजबूर हाप के प्राचारों की तरह काम ले। अब तक slide rest (फिसलने वाला पाचार) स्वचालित नहीं हो गया, तब तक मशीन बनाने बालों की पकंज्ञापों में यही पुरंत होती थी। जब कोई मशीन बिना पावनी की मदद के काले प्रतएव, फैक्टरी-व्यवस्था का सिद्धान्त यह है कि कारीगरों के बीच श्रम का विभाजन अथवा क्रम-भाजन करने के बजाय किसी क्रिया को उसके मौलिक संघटकों में विभक्त कर दिया जाये।" (Andrew Ure, "The Philosophy of Manufactures" [ एण्डयू उरे, 'उद्योगों का वर्णन'], London, 1835, पृ. २०१)