पूंजीवादी उत्पादन है, लेकिन फालतू पावादी की औरतों को जीवित रखने में इतना कम मम लगता है कि उसका हिसाब लगाने की भी कोई खास बरत नहीं होती। यही कारण है कि मशीनों की भूमि- इंगलग-में मानव-श्रम-शक्ति का प्रत्यन्त निकृष्ट कामों के लिए पैसा लन्नाजनक एवं घोर अपव्यय किया जाता है, वैसा और किसी देश में नहीं किया जाता। अनुभाग ३-मजदूर पर मशीनों का प्राथमिक प्रभाव जैसा कि हम अपर बता चुके हैं, माधुनिक उद्योग का प्रस्थान-विन्तु मम के प्राचारों में होने वाली शान्ति होती है, और यह कान्ति अपना सबसे अधिक विकसित म पटरी में पायी जाने वाली मशीनों की संगठित संहति में प्राप्त करती है। इस बस्तुगत संघटन में मानव- सामग्री का किस प्रकार समावेश किया जाता है, इसकी छानबीन करने के पहले पाइये, हम यह देखें कि इस क्रान्ति का बुब मजदूर पर सामान्यतया क्या प्रभाव पड़ता है। क) पूंजी द्वारा अनुपूरक भम-शक्ति पर अधिकार। -लियों और बच्चों का काम पर लगाया जाना . जिस हब तक मशीनें मांस-पेशियों की शक्ति को अनावश्यक बना देती है, उस हर तक मशीनें मांसपेशियों की बहुत बोड़ी शक्ति रखने वाले मजदूरों को और उन मजदूरों को नौकरी देने का साधन बन जाती हैं, जिनका शारीरिक विकास तो अपूर्ण है, पर जिनके अवयव और भी लोचदार है। इसलिए मशीनों का इस्तेमाल करने वाले पूंजीपतियों को सबसे पहले स्त्रियों और बच्चों के मन की तलाश होती थी। प्रतएव, मम तवा भम-बीवियों का स्थान लेने के लिए जिस विराट यंत्र का प्राविष्कार हुमा पा, वह तुरन्त ही मजदूर के परिवार के प्रत्येक सबस्य को, बिना किसी प्रायु-मेव या लिंग-भेद के, पूंजी के प्रत्यक्ष वालों में भर्ती करके मजदूरी करने वालों की संख्या को बढ़ाने का साधन बन गया। उसके बाद से बच्चों को पूंजीपति के लिए बो अनिवार्य काम करना पड़ता था, उसने न केवल बच्चों के खेल-कूब का स्थान छीन लिया, बल्कि परिवार की बीविका के लिए घर पर रहकर किये जाने वाले कुछ सीमित डंग के स्वतंत्र भमका भी स्थान ले लिया।। 9 . . जिन दिनों अमरीकी गृह-युद्ध के कारण कपास का संकट पैदा हो गया था, उन्हीं दिनों इंगलैण्ड की सरकार ने डा. एडवर्ड स्मिथ को सूती मिलों में काम करने वाले मजदूरों की सफाई सम्बंधी हालत की जांच करने के लिए लंकाशापर , शायर और अन्य स्थानों पर भेजा था। ग. स्मिथ ने रिपोर्ट दी कि इस बात के अलावा कि मजदूरों को कारखानों के वातावरण से हटा दिया गया है, कुछ और प्रकार का लाभ भी हुमा है। स्त्रियों को अब अपने बच्चों को "गोडफे का शरबत" ("Godfrey's cordial") नाम का जहर नहीं पिलाना पड़ता, बल्कि उन्हें अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए काफ़ी अवकाश मिल जाता है। उनको बाना पकाने का ढंग सीखने के लिए वक्त मिल गया है। दुर्भाग्यवश यह कला उन्होंने ऐसे समय पर सीबी है, पब उनके पास पकाने के लिये कुछ नहीं है। परन्तु इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि घर पर परिवार के लालन-पालन के लिए जो श्रम पावश्यक था, पूंजी ने अपना विस्तान
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