४७८ पूंजीवादी उत्पादन . विविध प्रकार की चेष्टामों की कोई सरत नहीं रहती और वह शारीरिक तथा बौद्धिक दोनों प्रकार की प्रियाशीलता के प्रत्येक कण का अपहरण कर लेता है। मशीन से भम कुछ हल्का हो बाता है, पर यह बीर भी यहां पर एक उंग की यातना बन जाती है, क्योंकि मशीन मजदूर को काम से मुक्त नहीं करती, बल्कि काम की सारी दिलचस्पी बातम कर देती है। हर प्रकार का पूंजीवादी उत्पादन जिस हब तक न सिर्फ भम-अभिया, बल्कि प्रतिषित मूल्य पैा करने की प्रक्रिया भी होता है, उस हब तक उसमें एक समान विशेषता होती है। वह यह कि उसमें मजदूर मन के पौधारों से नहीं, बल्कि श्रम के प्राचार मजदूर से .काम लेते हैं। लेकिन यह विपर्यन पहले-पहल केवल फैक्टरी-व्यवस्था में ही प्राविधिक एवं इनिपगम्य वास्तविकता प्राप्त करता है। एक स्वचालित यंत्र में पान्तरित हो जाने के फलस्वरूप मम का प्रचार मम-प्रक्रिया में पूंजी की शकल में, पानी उस मृत भन के रूप में मजदूर के सामने बड़ा होता है, जो बीवित भम-क्ति पर हावी रहता है और पूस-यूसकर उसका. सत निकाल लेता है। जैसा कि हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं, हाव के मन से उत्पादन की बोरिक शक्तियों के अलग कर दिये जाने और न शक्तियों के मम पर पूंजी के प्राधिपत्य में बदल जाने को किया अन्तिम कम से उस माधुनिक उद्योग के द्वारा पूर्णता प्राप्त करती है, जो मशीनों के प्राचार पर बड़ा किया जाता है। पटरी के हर अलग-अलग महत्वहीन मजदूर की व्यक्तिगत एवं विशेष निपुगता उत विज्ञान के, उन विराट भौतिक शक्तियों के तबाश्रम की उस विशाल राशि के सम्मुन एक प्रत्यणु मात्रा बनकर रह जाती है, जो फेक्टरी-यंत्र में निहित होती है और इस यंत्र के साक्-साथ. जिनके कारण "मालिक" (master) के हाथ में इतनी बड़ी ताकत होती है। इस "मालिक" के मस्तिष्क में मशीनों के तबा उनपर उसके एकाधिकार के बीच एक अविच्छन्नीय एकता होती है, और इसलिये जब कभी उसका अपने मजदूरों से कोई झगड़ा होता है, तो यह बड़े तिरस्कार के भाव से उनसे कहता है: "पटरी के मजदूरों को यह तय मच्छी तरह याद रखना चाहिये कि उनका श्रम वास्तव में एक हीन कोटि का निपुण भम है और दूसरा ऐसा कोई मम नहीं है, जिसे इतनी प्रासानी से सीखा जा सकता हो या बो इसी स्तर का भम हो और फिर भी जिसके लिये इस से अधिक पारिममिक दिया जाता हो, या जिसे सबसे कम निपुणता रखने वाले किसी विशेषज्ञ से पोड़ी सी शिक्षा लेकर इससे जल्दी तथा इससे अधिक पूर्णता के साथ सीता. ना सकता हो. .... उत्पादन के व्यवसाय में मालिक की मशीनें वास्तव में मजदूर के श्रम तथा निपुणता की अपेक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण भूमिका प्रवा करती है, और यह निपुणता तो ६ महीने की शिक्षा से प्राप्त की जा सकती है और कोई भी साधारण ओत-मजदूर उसे प्राप्त कर सकता है। मजदूर कि श्रम के प्राचारों की एकम्मी गति की प्राविधिक प्रवीनता में फंस जाता है और मजदूरों में चूंकि स्त्री और पुरुष दोनों और हर उनके व्यक्ति होते हैं और इसलिये कि उनके समुदाय की बनावट एक विचित्र रंग की 1F. Engels, उप० पु०, पृ० २१६ । "The Master Spinners' and Manufacturers' Defence Fund. Report of the Committee' ('कताई करने वाली मिलों के मालिकों और कारखानेदारों का सुरक्षा- समिति की रिपोर्ट'), Manchester, 1854, पृ० १७। प्रागे हम देखेंगे कि "मालिक" जब अपने "जीवन्त" स्वचालित यंत्र को बो बैठने का खतरा देवता है, तब वह एक बिल्कुल दूसरा राग भी मलाप सकता है। कोष।-
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