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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४८३

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४८० पूंजीवादी उत्पादन यहाँ हम उन भौतिक परिस्थितियों का केवल विकही करेंगे, जिनमें पटरियों के मजदूरों को श्रम करना पड़ता है। फ्रक्टरियों में तापमान इनिन म से बढ़ा दिया जाता है, हवा में धूल भर बाती है और शोर के मारे कान फटे जाते है। इन तमाम चीजों से मजबूर . 1 में छुड़वा देती है। और मिल में उसपर क्या गुजरती है? वहां हर चीज मालिक की उंगली के इशारे पर नाचती है। वह जैसे चाहता है, वैसे नियम बनाता है; नियमावली में अपनी इच्छानुसार परिवर्तन करता रहता है और नयी बातें जोड़ता रहता है , और अगर वह बिल्कुल बेहूदा बातें उसमें शामिल कर लेता है, तब भी अदालतें मजदूर से यही कहती है कि तुमने यह करार अपनी इच्छा से किया है, अब तो तुम्हें उसका पालन करना ही होगा . नौ वर्ष की भायु से मृत्यु तक इन मजदूरों को हर घड़ी यह मानसिक और शारीरिक यातना सहन करनी पड़ती है।" (F. Engels, उप० पु०, पृ. २१७ और उसके मागे के पृष्ठ।) "प्रदालतें कैसे फैसले करती है", इसके मैं दो उदाहरण दूंगा। एक उदाहरण १८६६ के अन्तिम दिनों का शेफ़ील्ड का है। उस शहर में एक मजदूर था, जिसने इस्पात के एक कारखाने में २ साल तक काम करने का करार किया था। अपने मालिक से झगड़ा हो जाने के फलस्वरूप वह कारखाना छोड़कर चला गया और उसने ऐलान कर दिया कि अब वह किसी हालत में भी इस मालिक के लिये काम नहीं करेगा। उसपर करार भंग करने का मुकदमा चला और दो महीने की कैद हो गयी। (यदि कोई मालिक करार भंग करता है, तो उसपर केवल दीवानी का मुकदमा चलाया जा सकता है। और उसको सिवाय इसके और कोई खतरा नहीं होता कि शायद कुछ रकम हरजाने की देनी पड़ जाये। ) मजदूर दो महीने की जेल काटकर बाहर पाया, तो मालिक ने उससे फिर कहा कि करार के अनुसार मेरे कारखाने में पाकर काम करो। मजदूर ने कहा : नहीं, मुझे इस करार को तोड़ने की सजा मिल चुकी है, अब मैं काम नहीं करूंगा। मालिक ने उसपर फिर मुकदमा दायर कर दिया। अदालत ने इस बार भी मजदूर को ही दोषी ठहराया, हालांकि मि० शी नामक एक जज ने सार्वजनिक रूप से इस कानूनी विभीषिका की सख्त निन्दा की, जिसके द्वारा किसी भी मनुष्य को एक ही अपराध या जुर्म के लिये जब तक वह जिन्दा रहता है, थोड़े-थोड़े समय के बाद बार-बार दण्ड दिया जा सकता है। यह फैसला "Great Unpaid" -जिलों के अवैतनिक न्यायाधीशों-ने नहीं, बल्कि लन्दन के एक सबसे ऊंचे न्यायालय ने सुनाया था।-[चीचे बर्मन संस्करण में जोड़ा गया कुटनोट: इस स्थिति का अब मन्त कर दिया गया है। कुछ अपवादों को छोड़कर,-मिसाल के लिये, जैसे गैस के सार्वजनिक कारखानों को छोड़कर,-बाकी सब जगह करार भंग करने के मामले में अंग्रेज मजदूर की स्थिति अब मालिकों के समान बना दी गयी है और उसपर भी केवल दीवानी अदालत में ही मुकदमा चलाया जा सकता है।-२० एं०] दूसरा उदाहरण नवम्बर १९६३ के अन्तिम दिनों का विल्टशायर का है। वहां वेस्टबरी लेह नामक स्थान में लेभोवर की कपड़ा-मिल के हैरंप नामक मालिक की ३० बुनकरों ने, जो शक्ति से चलने वाले करषों पर काम करती थीं, हड़ताल कर दी। कारण यह था कि हैरंप साहब को यह पादत थी कि वह सुबह को देरी से काम पर पाने वाली मजदूरों की मजदूरी में कटौती कर दिया करते थे। कामगारिनें यदि २ मिनट देर से पाती थीं, तो ६ पेंस की, ३ मिनट देर से पाती थीं, तो १ शिलिंग की, और दस मिनट देर से पाती पी, तो १ शिलिंग ६ पेंस की कटौती हो जाती थी। यानी, कटौती की दर । शिलिंग फ्री .