मशीनें और माधुनिक उद्योग ४८१ की प्रत्येक माननिय पर समान मात्रा में प्राघात लगता है। और मशीनों की भीड़ में मजदूर की जान बाने या हाथ-पैर कटने का जो खतरा हमेशा बना रहता है, वह अलग है। जिस तरह एक के बाद दूसरा मौसम प्राता है, उसी नियमित ढंग से फ्रक्टरियां भी समय-समय पर घण्टा और ४ पौण्ड १० शिलिंग प्रति दिन की बैठती थी, जब कि बुनकरों की मजदूरी, यदि वर्ष का पोसत निकालकर देखा जाये, तो कभी १० शिलिंग-१२ शिलिंग फ्री हफ़्ता से ज्यादा नहीं होती थी। इसके अलावा, हैरंप ने सीटी बजाकर काम प्रारम्भ करने का समय सूचित करने के लिये एक लड़के को नियुक्त कर रखा था। वह अक्सर सुबह को ६ बजने के पहले ही सीटी बजा देता था, और अगर सीटी बन्द होने के समय तक सब कामगारिने कारखाने में नहीं पहुंच जाती थीं, तो कारखाने के फाटक बन्द कर दिये जाते थे, और जो कामगारिनें बाहर रह जाती थीं, उनपर जुर्माना कर दिया जाता था। कारखाने में चूंकि कोई घड़ी नहीं थी, इसलिये प्रभागी कामगारिनों को हैरैप द्वारा प्रोत्तेजित उस टाइम-कीपर लड़के की दया पर निर्भर रहना पड़ता था। हड़ताल करने वाली कामगारिनों का, जिनमें कम-उम्र लड़कियां और कुटुम्ब-परिवार वाली माताएं भी थीं, यह कहना था कि वे फिर से काम शुरू करने को तैयार है, बशर्ते कि टाइम-कीपर की जगह पर कारखाने में एक घड़ी लगा दी जाये और जुर्माने एक ज्यादा मुनासिब दर के अनुसार किये जायें। हैरंप ने १९ स्त्रियों और लड़कियों पर करार भंग करने का मुकदमा दायर कर दिया। अदालत में उपस्थित सभी लोगों को यह देखकर बहुत क्रोध भाया कि इनमें से हर स्त्री तथा हर लड़की से ६ पेंस जुर्माने के और २ शिलिंग ६ पेंस मुक़दमे के खर्च के वसूल किये गये। हैरंप अदालत से चला, तो एक भीड़ फबतियां कसती हुई उसके पीछे-पीछे चल रही थी।- कारखानेदारों की एक प्रिय तरकीब यह है कि मजदूर जिस सामग्री पर मेहनत करते है, उसमें कुछ खराबी होने पर वे मजदूरों को सजा देते है और उनकी मजदूरी में से पैसे काट लेते हैं। १८६६ में इस प्रथा के फलस्वरूप इंगलैण्ड के मिट्टी के बर्तन बनाने वाले डिस्ट्रिक्टों में एक माम हड़ताल हो गयी। “Ch. Empl. Com." ['बाल-सेवायोजन आयोग'] (१८६३ - १८६६) की रिपोर्टों में ऐसे उदाहरण बताये गये हैं, जिनमें मजदूर को न सिर्फ कोई मजदूरी नहीं मिली, बल्कि ऊपर से वह अपने श्रम के द्वारा और जुर्माने के नियमों के फलस्वरूप 'अपने योग्य मालिक का बुरी तरह कर्जदार भी बन गया।' हाल में कपास का संकट पाने के समय भी मजदूरों की मजदूरी काटने के मामले में फैक्टरियों के निरंकुश मालिकों की दूरदर्शिता के अनेक उदाहरण देखने को मिले थे। फैक्टरियों के इंस्पेक्टर मि० भार० बेकर ने कहा है : "अभी हाल में खुद मुझको एक सूती मिल के मालिक के खिलाफ मुकदमा दायर करना पड़ा है। गरीबी के इन कष्टदायक दिनों में भी उसने अपने कुछ कम उम्र मजदूरों की मजदूरी में से डाक्टर के सर्टीफिकेट की फ्रीस के १०- १० पेंस काट लिये थे (जिसके लिये खुद उसको केवल ६ पेंस देने पड़े थे), जब कि कानून उसको केवल ३ पेंस काटने की इजाजत देता था और प्रथा के अनुसार कुछ भी नहीं कटा पौर मुझे एक पौर मालिक का पता चला है, जो भी यही चीज़ करना चाहता है, मगर कानून की लपेट में नहीं माना चाहता। उसके यहां जो गरीब बच्चे काम करते है, जैसे ही गक्टर उनको इस धंधे के योग्य करार दे देता है, वैसे ही यह मालिक उनको कपास की बुनाई की रहस्यमयी कला सिबाने की फ्रीस के रूप में उनसे १ शिलिंग प्रति व्यक्ति वसूल करना शुरू कर देता है। इसलिये , हड़तालों बसी असाधारण घटनामों के कुछ अन्तर्भूत कारण 31-45 . जाता... .
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