४८२ पूंजीवादी उत्पादन प्रायोगिक संपाम में हताहत होने वाले मजदूरों की सूचियां प्रकाशित किया करती हैं। पटरी- व्यवस्था में उत्पादन के सामाजिक साधनों की मितव्ययिता का इस तरह सबस्ती विकास किया बाता है, जैसे तापगृहों में पांचों को बनावटी रंग से बढ़ाया जाता है। यह मितव्ययिता पूंची . 1 हो सकते है। इन कारणों को समझे बिना पाजकल के पैसे समय में हड़तालों जैसी असाधारण घटनामों को समझना असम्भव है।" यहां मि. बेकर डार्विन के शक्ति से चलने वाले करवों पर काम करने वाले बुनकरों की उस हड़ताल का जिक्र कर रहे है, जो जून १८६३ में हुई oft (“Reports of Insp. of Fact. for 30 April, 1863" ["Srefcutie apat रिपोर्ट, ३० अप्रैल १८६३), पृ. ५०-५११) इन रिपोर्टों पर जो तारीखें पड़ी रहती है, उनमें इन तारीखों से सदा मागे का हाल रहता है। खतरनाक मशीनों से मजदूरों के बचाव की जो व्यवस्था फेक्टरी-कानूनों ने की है, उसका लाभकारी प्रभाव हुमा है। "लेकिन . अब कुछ ऐसे कारणों से दुर्घटनाएं होने लगी है, जिनका बीस वर्ष पहले अस्तित्व नहीं था। मिसाल के लिये , अब बास तौर पर मशीनों की बढ़ी हुई रफ्तार के कारण बहुत सी दुर्घटनाएं होने लगी है। अब पहियों, बेलनों, तकुमों और परकियों को पहले बढ़ी हुई रफ्तार पर चलाया जाता है और उनकी रफ्तार बराबर बढ़ती ही जा रही है। इसलिये अब उंगलियों को टूटा हुमा धागा पकड़ने के लिये अपनी हरकतों में पहले से अधिक तेजी और फुर्ती दिवानी पड़ती है, क्योंकि धागा पकड़ने में यदि जरा भी असमंजस या सुस्ती दिखायी जाती है, तो उंगलियों से हाथ धोना पड़ता है मजदूरों में अपना काम जल्दी से पूरा कर डालने की जो उत्सुकता रहती है, उसके कारण भी बहुत सी दुर्घटनाएं होती है। यह याद रखना चाहिये कि कारखानेदारों के लिये इस बात का अत्यधिक महत्त्व होता है कि उनकी मशीनें बराबर चलती रहें, यानी वे सदा सूत और सामान तैयार करती रहें। यदि एक मिनट के लिये भी उनका चलना रुक जाता है, तो न सिर्फ शक्ति का नुकसान होता है, बल्कि उत्पादन की भी हानि होती है, और फोरमैन लोग, जिनको सदा प्यादा से ज्यादा मात्रा में काम निकालने की फ़िक रहती है, मजदूरों से हमेशा मशीनें चालू रखने को कहा करते है। और मशीनों को चालू रखने का उन मजदूरों के लिये भी कम महत्त्व नहीं है जिनको पैदावार के वजन या माप के हिसाब से मजदूरी मिलती है। चुनांचे, पचपि बहुत सी फैक्टरियों में, बल्कि कहना चाहिये कि अधिकतर फैक्टरियों में, चलती हुई मशीनों को साफ़ करने की सक्त मनाही है, फिर भी यदि सब फैक्टरियों में नहीं, तो ज्यादातर फैक्टरियों में यह प्राम रिवाज है कि जब मशीनें चलती रहती है, तब मजदूर उनमें से कूड़ा निकाला करते हैं और उनके बेलनों और पहियों को साफ़ किया करते है, और कोई उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकता। इस प्रकार पिछले छः महीनों में केवल इस एक कारण से १०६ दुर्घटनाएं हुई है . : . हालांकि सफ़ाई का बहुत-कुछ काम लगातार रोषाना होता रहता है, फिर भी शनिवार का दिन इस काम के लिए खास तौर पर अलग कर दिया जाता है और उस दिन मशीनों की बूब अच्छी तरह सफाई की जाती है, और इस काम का बड़ा. हिस्सा उस वक्त किया जाता है, जब मशीनें चलती रहती है। सफाई के काम की चूंकि कोई मजदूरी नहीं मिलती, इसलिये मजदूर उसे यथासम्भव जल्दी से इतम कर गलना चाहते है। पुनाव शुक्रवार और बास तौर पर शनिवार के बराबर बड़ी संख्या में दुर्घटनाएं और किसी दिन नहीं होतीं। सप्ताह के पहले चार दिन दुर्घटनामों की संख्या का जो प्रोसत रहता है, शुक्रवार को .
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