४८८ पूंजीवादी उत्पादन यह मन की मन्दी को पाट देता है और बम-शक्ति के नाम को उसके मूल्य के नीचे गिरा देता है। मजदूरों को यह कहकर बहुत दिलासा दिया जाता है कि एक तो उनका कष्ट केवल अस्थायी कष्ट (“a temporary Inconvenience") है और, दूसरे, मशीनें उत्पादन के किसी भी बास क्षेत्र पर बहुत धीरे-धीरे ही अधिकार करती है, जिससे उनके विनाशकारी प्रभाव की व्यापकता एवं तीव्रता कम हो जाती है। पहला माश्वासन दूसरे मावासन को खतम कर देता है। अब मशीनें किसी उद्योग पर धीरे-धीरे अधिकार करती है, तब उन मशीनों से प्रतियोगिता करने वाले कारीगरों की स्थायी रूप से मुसीबत मा पाती है। जब परिवर्तन तेवी से होता है, तब उसका प्रभाव बहुत तीन होता है और बहुत बड़ी संख्या में लोग उसके शिकार हो जाते हैं। इंगलैंड में हाप का करपा इस्तेमाल करने वाले बुनकरों का जिस प्रकार धीरे-धीरे विनाश हमा, उससे अधिक भयानक घटना इतिहास में और कोई नहीं मिलती। उनके विनाश को यह किया कई दशकों तक चलती रही और अन्त में १८३८ में पूर्ण हुई। उनमें से बहुत से भूखों मर गये। बहुत से कुटुम्ब-परिवार वाले बुनकर बहुत समय तक गाई पेन्स रोजाना की मजदूरी पर एडियां रगड़ते रहे। दूसरी मोर, इंगलैस की बनी हुई सती मशीनों ने हिन्दुस्तान पर बड़ा तीन प्रभाव गला। वहाँ के गवर्नर-जनरल ने १८३४-३५ में रिपोर्ट भेजी थी कि "सी . 'इंगलैण्ड में हाथ की बुनाई और शक्ति की मदद से होने वाली बुनाई के बीच जो प्रतियोगिता चल रही थी, उसे १८३३ में गरीबों का कानून पास होने के पहले कुछ समय के लिये लम्बा कर दिया गया था। वह इस तरह कि जिन कारीगरों की मजदूरी मावश्यक अल्पतम से भी नीचे गिर गयी थी, उनको चर्च की ओर से सार्वजनिक सहायता दे दी जाती पी। "रेवरेण्ड मि० टर्नर १८२७ में कल-कारखानों वाले शायर डिस्ट्रिक्ट में विल्मस्लो नामक स्थान के पादरी थे। परावास सम्बंधी समिति के प्रश्नों तथा मि० टर्नर के उत्तरों से पता चलता है मशीनों के खिलाफ़ मानव-श्रम की प्रतियोगिता को किस तरह कायम रखा जाता था। 'प्रश्न: क्या शक्ति से चलने वाले करपे का उपयोग हाथ के कर के उपयोग का स्थान नहीं ले लेता? उत्तरः निस्सन्देह वह उसका स्थान ले लेता है। यदि हाथ का करपा इस्तेमाल करने वाले बुनकरों को अपनी मजदूरी में कटौती मंजूर करने के लिये तैयार न कर दिया जाता, तो शक्ति से चलने वाला करषा हाथ के कर के उपयोग का और भी अधिक स्थान ले लेता।"प्रश्न : लेकिन कटौती मंजूर करके बुनकर ने ऐसी मजदूरी स्वीकार कर ली है, जो उसके जीवन-निर्वाह के लिये अपर्याप्त है, और वह बाकी के लिये चर्च की पोर से सार्वजनिक सहायता का सहारा लेता है ? उत्तरः हां, यह बात सही है; और सच पूछिये, तो हाथ के करघे पौर शक्ति से चलने वाले करपे की प्रतियोगिता को गरीबों की सहायता के लिये वसूल किये जाने वाले करों के जरिये ही जारी रखा जाता है।' इस प्रकार, मशीनों के इस्तेमाल से मेहनत करने वालों का यह लाभ होता है कि वे पतन के गढ़े में धकेल देने वाले दिवालियापन के शिकार हो जाते है या परावासी बन जाते है और प्रतिष्ठावान तथा किसी हद तक स्वतंत्र कारीगरों से मनुष्य को प्रधोगति को पहुंचाने वाली दान की रोटी बाकर जिन्दा रहने वाले और सदा गिड़गिड़ाते रहने वाले मुहताजों में बदल जाते हैं। और इसे ये लोग अस्थायी प्रसुविधा कहते हैं।" ("A Prize Essay on the Comparative Merits of Competition and Co-operation” ['aforutforan ote wafar के तुलनात्मक गुणों के विषय में एक पुरस्कृत निबंध'], London, 1834, पृ० २६।) . .
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