पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४९२

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ४८६ . मुसीबत यहां पायी है, वाणिज्य के इतिहास में उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है। हिन्दुस्तान के मैदान पूती कपड़ा बुनने वालों की हड़ियों से सब हो गये हैं।"इन बुनकरों को इस "नवर" संसार से विदा करके मशीनों ने निस्सन्देह उन्हें केवल "एक अस्थायी प्रसुविधा" वी बी। फिर मशीनें कि सदा उत्पादन के नये क्षेत्रों पर अधिकार जमाया करती है, इसलिये उनका प्रस्थापी प्रभाव वास्तव में स्थायी होता है। इसलिये, मोटे तौर पर, उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली मजदूर के मुकाबले में मम के प्राचारों को स्वतंत्रता और अलगाव का बो स्वरूप रे देती है, वह मशीनों के द्वारा विकसित होकर भरपूर विरोष बन जाता है। अतएव मशीनों के पाने बाद ही मजदूर पहली बार श्रम के प्राचारों के खिलाफ उप विद्रोह करता है। मम का पोवार मजदूर को धराशायी कर देता है। जब कभी मशीनें नयी-नयी इस्तेमाल होती है और उनकी पुराने बातों से विरासत में मिली बस्तकारियों और हस्तनिर्माणों से प्रतियोगिता मारम्भ होती है, तब मजदूर और श्रम के प्राचार का यह प्रत्यक्ष विरोष सबसे अधिक स्पष्ट रूप में सामने पाता है। मगर माधुनिक उद्योग में भी मशीनों के निरन्तर सुधार और स्वचलन की प्रणाली के विकास का सदृश प्रभाव होता है। "उन्नत मशीनों का उद्देश्य यह होता है कि हाप के मम को कम कर और इस बात की व्यवस्था करें कि कोई मिया या उत्पादन की कोई कड़ी मानव-उपकरण के बजाय लोहे के बने उपकरण की सहायता से सम्पन्न हो जाया करे। "अभी तक हाप से चलायी जाने वाली मशीन को अब शक्ति द्वारा चलाना- यह लगभग रोजमर्रा की बात हो गयी है... मशीनों में इस तरह के छोटे-छोटे सुधार, जिनका हेश्य यह होता है कि शक्ति के खर्च में बचत हो, उतने ही समय में पहले से ज्यादा काम निकले, या मशीन किसी बच्चे का, स्त्री का या पुरुष का स्थान ले ले, -इस तरह के सुधार बराबर होते रहते हैं और यद्यपि ऊपर से देखने में उनका बहुत महत्व मालूम नहीं होता, तथापि उनके परिणाम बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। 'जब कभी किसी क्रिया में एक खास तरह की पटुता और हाप की मजबूती की पावश्यकता होती है, तब उसे जितनी जल्दी सम्भव होता है, चतुर मजबूर के हाथ से निकाल लिया जाता है, जिसके अनेक प्रकार की अनियमितताएं करने की सम्भावना रहती है। यह पिया एक खास तरह के ऐसे यंत्र को सौंप दी जाती है, 9134 . 1"जिस कारण से देश का राजस्व (अर्थात् , जैसा कि रिकाों ने इसी अंश में समझाया है, जमींदारों और पूंजीपतियों की माय, क्योंकि मार्थिक दृष्टिकोण से वही Wealth of the Nation [राष्ट्र की दौलत ] होती है) "बढ़ सकता है, उसी का साप-साथ यह भी नतीजा हो सकता है कि मावादी फ़ालतू और मजदूर की हालत खराब हो जाये।" (Ricardo, उप० पु०, पृ० ४६६ ।) “मशीनों में जो भी सुधार होता है, उसका निरन्तर यह उद्देश्य और यह प्रवृत्ति होती है कि मनुष्य के श्रम की तनिक भी मावश्यकता न रहे या वयस्क पुरुषों के श्रम के स्थान पर स्त्रियों और बच्चों के श्रम का अथवा निपुण मजदूरों के श्रम की जगह पर मनिपुण मजदूरों के श्रम का उपयोग करके श्रम का दाम घटा दिया जाये।" (Ure, उप पु०, ग्रंथ १, पृ. ३५)

  • “Reports of Inspectors of Factories for 31st October, 1858" ('$refcet im

इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५८'), पृ. ४३ । du Reports of Inspectors of Factories for 31st October, 1856" ('frefcut के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १९५६'), पृ० १५। .