पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५०२

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ४९९ . - यह एक निर्विवार तव्य है कि जीवन-निर्वाह के साधनों से महबूर को "मुक्त कर देने" की जिम्मेवारी पुर मशीनों पर नहीं होती। मशीनें तो उस शाला में उत्पादन को बढ़ाती हैं और सस्ता कर देती हैं, जिसपर वे अधिकार कर लेती है, और शुरू-शुरू में अन्य शाखाओं में तैयार होने वाले जीवन-निर्वाह के साधनों में मशीनों के कारण कोई तबदीली नहीं पाती। इसलिये, बिन मजदूरों को काम से जवाब मिल गया है, उनके लिये समाज के पास मशीनों का उपयोग प्रारम्भ होने के बाद यदि अधिक नहीं, तो कम से कम उतनी बीवनोपयोगी वस्तुएं प्रवश्य होती हैं, जितनी इसके पहले उसके पास थीं। और वार्षिक पैदावार का जो बड़ा भारी हिस्सा काम न करने वाले लोग बाया कर देते हैं, वह अलग है। और पूंजीवादी व्यवस्था की वकालत करने पाले पर्वशास्त्री असल में इसी नुस्ते को अपना प्राधार बनाते हैं। उनका कहना है कि मशीनों के पूंजीवावी उपयोग के साथ जो प्रसंगतियां और विरोष मभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं, वे चूंकि पुर मशीनों से नहीं, बल्कि मशीनों के पूंजीवावी उपयोग से पैरा होते हैं, इसलिये , वास्तव में, उनका कोई अस्तित्व नहीं होता। इसलिये, मशीनों पर यदि अलग से विचार किया जाये, तो उनसे श्रम के घन्छे छोटे हो जाते हैं, लेकिन पूंजी की सेवा में लग जाने पर उनसे भम के घण्टे लम्बे हो जाते हैं। मशीन खुब मन को हल्का करती है, मगर अब पूंजी उससे काम लेती है, तब वह श्रम की तीव्रता को बढ़ा देती है। मशीन खुद प्रकृति की शक्तियों पर मनुष्य की विजय का प्रतिनिधित्व करती है, किन्तु पूंजी के हाथों में पहुंचकर वह मनुष्य को इन शक्तियों का वास बना देती है। मशीन खुद उत्पादकों की बोलत में वृद्धि करती है, लेकिन पूंजी के हाथों में पहुंचकर वह उत्पादकों को कंगाल बना देती है,-पूंजीवादी अर्थशास्त्री का दावा है कि इन तमाम और इनके अलावा कुछ अन्य कारणों से भी, और अधिक संकट में पड़े बिना ही, यह बात दिन के प्रकाश के समान स्पष्ट हो जाती है कि ये तमाम प्रसंगतियां वास्तविकता का महब विसावटी रूप हैं और असल में उनका न तो कोई वास्तविक और न कोई सैद्धान्तिक अस्तित्व है। इस प्रकार, वह मागे की सारीमाथापच्ची से बच जाता है, और उससे भी बड़ी बात यह है कि वह अपने विरोषियों के बारे में घोषित कर देता है कि वे इतने मूल हैं कि मशीनों के पूंजीवावी उपयोग के विल्ड लड़ने के बजाय जुद मशीनों से लड़ते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि पूंजीवादी सर्वशास्त्री कभी इस बात से इनकार नहीं करता कि मशीनों के पूंजीवादी उपयोग से कुछ प्रस्थायी प्रसुविधा हो सकती है। लेकिन हर सिक्के का दूसरा रूख भी तो होता है। पूंजीवाची पर्वशास्त्री के विचार से पूंजी के अतिरिक्त किसी अन्य द्वारा मशीनों का उपयोग असम्भव है। इसलिये, पूंजीवाची पर्वशास्त्री की मसरों में, मशीनों द्वारा मजदूर का शोषण और मजदूर द्वारा मशीनों का शोषण, दोनों समान ही बातें हैं। प्रतएव जो कोई भी मशीनों के पूंजीवादी उपयोग से पैा होने वाली वास्तविक परिस्थिति का भण्डाफोड़ करता है, वह मशीनों के किसी भी प्रकार के उपयोग का विरोधी है और सामाणिक प्रगति का शत्रु है। प्रसिद्ध . . - 1 अन्य व्यक्तियों के अलावा मैक्कुलक भी शेखी बघारने के साथ-साथ इस तरह की बेतुकी बकवास करने की कला के परम प्राचार्य है। उन्होंने ८ वर्ष के बच्चे के भोलेपन का प्रदर्शन करते हुए लिखा है : “यदि मजदूर की निपुणता को अधिकाधिक बढ़ाते जाना लाभदायक है, ताकि उसमें पहले जितने या पहले से कम श्रम के द्वारा उत्तरोत्तर बढ़ती हुई मात्रा में माल तैयार करने की सामर्थ्य पैदा होती जाये, तो इस फल की प्राप्ति में जिन मशीनों से उसे सबसे अधिक कारगर सहायता मिल सकती हो, उनकी मदद लेना भी लाभदायका होना चाहिये।". . 32*