पूंजीवादी उत्पादन . बिल साइक्स की बलील भी ठीक इसी तरह की थी। उसने कहा था: "पूरी के सदस्यो । इसमें शक नहीं कि सौदागर का गला काटा गया है। मगर इसमें मेरा कोई दोष नहीं है, दोष चाकू का है। इस बरासी अस्थायी प्रसुविधा के कारण क्या हमें चाकूका उपयोग बन कर देना चाहिये? सरा सोचिये तो! बिना बाकू के सेती और व्यापार की क्या बक्षा होगी? शरीर-रचना का ज्ञान प्राप्त करने में चाकू से जितनी सहायता मिलती है, क्या शल्य-क्रिया में भी उससे उतनी ही सहायता नहीं मिलती? और, इसके अलावा, क्या खुशी की रावत में भी पाकू काम में नहीं पाता? यदि भाप चाकू का प्रयोग बन्द करगे, तो पाप हमें बर्बरता के गड़े में धकेल रेंगे।" जिन उद्योगों में मशीनें इस्तेमाल होने लगती है, उनमें पचपि वे लाजिमी तौर पर मजदूरों को बेकार बना देती है, तथापि, इस बात के बावजूद, यह मुमकिन है कि अन्य उद्योगों में मशीनों के कारण पहले से स्वादा भादमी नौकर रखे जाने लगे। किन्तु इस प्रभाव में और तवाकषित पति-पूर्ति के सिद्धान्त में कोई समानता नहीं है। चूंकि मशीन से तैयार की गयी प्रत्येक वस्तु हाप से तैयार की गयी उसी प्रकार की वस्तु से सस्ती होती है, इसलिये हम इस अचूक नियम पर पहुंच जाते हैं: यदि मशीनों से तैयार की गयी किसी वस्तु की कुल मात्रा बस्तकारी या हस्तनिर्माण के द्वारा बनायी गयी उस वस्तु की कुल मात्रा के बराबर रहती है, जिसका मशीनों द्वारा तैयार की गयी वस्तु ने स्थान ले लिया है, तो उसके उत्पादन में खर्च किया गया कुल श्रम पहले से घट जाता है। श्रम के उपकरणों-मशीनों, कोयले और इसी प्रकार की अन्य चीजों -पर नो नया मम खर्च होता है, वह उस मन से लाजिमी तौर पर कम होता है, जिसे मशीनों के प्रयोग ने बेकार बना दिया है। यदि ऐसा न हो, तो मशीन की पैदावार उतनी ही महंगी रहे, जितनी हाप के मम की पैसवार होती है, या हो सकता है कि उससे भी अधिक महंगी हो जाये। लेकिन, असल में, मशीनों के द्वारा पहले से कम मजदूरों की मदद से नो बस्तु तैयार की जाती है, उसकी कुल मात्रा हाप से बनायी गयी उस बस्तु की कुल मात्रा के बराबर नहीं होती, जिसका मशीन को बनायी वस्तु ने स्थान प्रहण कर लिया है, बल्कि वह उससे बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। मान लीजिये कि पहले जितने बुनकर हाप से काम करके १,००,००० गव कपड़ा तैयार कर सकते थे, उनसे कम बुनकर शक्ति से चलने वाले करवों पर १,००,००० गड कपड़ा तैयार कर देते हैं। पैदावार पहले से चौगुनी हो जाती है। उसमें पहले से चौगुना कच्चा माल लगता है। इसलिये कच्चे माल का उत्पादन पहले से चौगुना हो जाना चाहिये। लेकिन वहाँ तक श्रम के उपकरणों का सम्बंध है, जैसे कि मकान, कोपला, मशीनें इत्यादि, उनपर यह बात लागू नहीं होती। उनके उत्पादन के लिये जिस अधिक मम की प्रावश्यकता होती है, वह एक सीमा से भागे नहीं बढ़ सकता, और यह सीमा इस बात पर निर्भर करती है कि मशीन से बनायी गयी वस्तु की मात्रा में और उतने ही मजदूरों द्वारा हाथ से बनायी गयी इसी वस्तु की मात्रा में कितना अन्तर होता है। - . (MacCulloch, “Princ. of Pol. Econ." [मैक्कुलक, 'पर्यशास्त्र के सिद्धान्त'], London, 1830, पृ. १६६।) 1"कताई की मशीन के पाविष्कारक ने हिन्दुस्तान को बरबाद कर दिया है। पर यह एक ऐसा तथ्य है, जो हमारे हृदय को कोई खास नहीं छूता" (A. Thlers, "De la propriete", Paris, 1848, पृ. २७५) श्री पिये ने यहां पर कताई की मशीन को शक्ति से चलने वाले करणे के साप गड़बड़ा दिया है, "पर यह एक ऐसा तय है, जो हमारे हण्य को कोई बास नहीं छूता। "
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