पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५१२

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मशीनें और आधुनिक उद्योग . . महाद्वीप में बो बुनकर बेकार हो गये थे, उनकी संख्या अलग है। इस विषय पर मुझे दो-चार बातें और कहनी हैं। उनके सिलसिले में मैं उन सम्बंधों का विक कहंगा, वो सचमुच पाये जाते हैं और जिनके अस्तित्व पर हमारी सैडान्तिक लोग अभी तक प्रकाश नहीं गल पायी है। जब तक उद्योग की किसी शाखा में फैक्टरी-व्यवस्था पुरानी बस्तकारियों या हस्तनिर्माण के स्थान पर विस्तृत होती जाती है, तब तक इस संघर्ष का परिणाम उतना ही निश्चित रहता है, जितना निश्चित तौर पर कमान से लड़ने वाली सेना के साथ बन्दूकों से लैस सेना की मुठभेड़ का परिणाम होता है। यह पहला काल, जिसमें मशीनें अपने कार्य-क्षेत्र को जीतती हैं, निर्णायक महत्व का होता है, क्योंकि इस काल से प्रसाधारण मुनाफे कमाने में मदद मिलती है। इन मुनानों के कारण न केवल पहले से तेज गति से संचय करना सम्भव होता है, बल्कि ये मुनाने उस अधिक सामाजिक पूंजी के एक बड़े हिस्से को भी उत्पादन के इस क्षेत्र में खींच लेते हैं, जो बराबर पैदा होती और अपने लिये नित नये क्षेत्रों की तलाश में रहती है। तेव और अंधाधुंध कार्रवाइयों के इस पहले काल से जो विशेष लाभ होते हैं, वे उत्पादन के प्रत्येक ऐसे क्षेत्र में महसूस किये जाते हैं, जिनपर मशीनें चढ़ाई कर देती हैं। लेकिन जैसे ही फेक्टरी- व्यवस्था एक खास हब तक सुविस्तृत माधार और परिपक्वता प्राप्त कर लेती है और बास तौर पर जैसे ही उसका प्राविधिक प्राधार-मशीनें -भी जुद मशीनों के द्वारा तैयार होने लगता है, जैसे ही कोयला-सानों और लोहे की खानों में, पातु के उद्योगों में और यातायात के साधनों में क्रान्ति पैदा हो जाती है,-संक्षेप में, जैसे ही माधुनिक प्रौद्योगिक व्यवस्था द्वारा उत्पादन करने के लिये मावश्यक सामान्य परिस्थितियां तैयार हो जाती हैं, वैसे ही उत्पादन की यह प्रणाली एक ऐसा लोच और यकायक छलांग मारकर विस्तार करने की ऐसी सामग्रं प्राप्त कर लेती है, जिसके रास्ते में कच्चे माल की पूर्ति और पैदावार की बिक्री के सवालों को छोड़कर और कोई कठिनाई पाड़े नहीं पाती। एक पोर तो मशीनों का तात्कालिक प्रभाव यह होता है कि कच्चे माल की पूर्ति उसी तरह बढ़ जाती है, जिस तरह cotton gin (कपास मोटने की मशीन) का इस्तेमाल होने पर कपास का उत्पादन बढ़ गया था। दूसरी मोर, मशीनों से तैयार की जाने वाली वस्तुएं कि सस्ती होती हैं और साथ ही चूंकि यातायात पौर संचार के साधनों में बहुत सुधार हो जाता है, इसलिये ये चीजें विदेशी मंडियों को जीतने का प्रस्त्र बन जाती है। दूसरे देशों के बस्तकारी के उत्पादन को बरबाद करके मशीनें उनको खबर्दस्ती कच्चा माल पैदा करने वाले क्षेत्रों में बदल देती हैं। इस प्रकार, ईस्ट इण्डिया को ब्रिटेन के वास्ते कपास, ऊन, सन और पाट और नील पैदा करने के लिये मजबूर किया गया।' शक्ति से चलने वाले करघे ने बहुत विस्तार प्राप्त कर लिया है।" ("Reports of Inspectors of Factories for 31st October, 1856" [ 'फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५६ '], पृ०१५) कच्चे माल के उत्पादन पर मशीनें अन्य जिन तरीकों से प्रसर डालती हैं, उनका जिक तीसरी पुस्तक में किया जायेगा। हिनुस्तान से ब्रिटेन को कपास का निर्यात १९४६ ३,४५,४०,१४३ पौण्ड १८६० २०,४१,४१,१६८ पौण्ड १९६५ ४,५९,४७,६०० पौण्ड