पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५२२

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ५१६ अनभाग ८-आधुनिक उद्योग द्वारा हस्तनिर्माण, दस्तकारियों और घरेलू उद्योग में की गयी क्रान्ति (क) बस्तकारी और मम-विभाजन पर भाषारित सहकारिता का पतन हम यह देख चुके हैं कि बस्तकारियों पर भाषारित सहकारिता को और बस्तकारी श्रम के विभाजन पर प्राधारित हस्तनिर्माण को मशीनें किस तरह समाप्त कर देती हैं। पहले ढंग की मिसाल है घास काटने की मशीन । वह घास काटने वाले व्यक्तियों की सहकारिता का स्थान ले लेती है। दूसरे रंग की एक अच्छी मिसाल है सुइयां बनाने की मशीन । ऐग्म स्मिथ के अनुसार, उनके समाने में १० मादमी सहकार करते हुए एक दिन में ४८,००० से अधिक सुइयां तैयार कर देते थे। दूसरी ओर, सुइयां बनाने की एक अकेली मशीन ११ घण्टे के काम के दिन में १,४५,००० सुइयां बना गलती है। एक औरत या लड़की ऐसी चार मशीनों की देखभाल करती है, और इस तरह वह दिन भर में लगभग ६,००,००० सुइयां या एक सप्ताह में ३०,००,००० से अधिक सुइयां तैयार कर देती है। जब कोई मशीन सहकारिता या हस्तनिर्माण का स्थान ले लेती है, तब इस तरह की एक अकेली मशीन बस्तकारी के ढंग के उद्योग का खुद एक प्राधार बन सकती है। फिर भी वस्तकारी की पोर इस तरह लौटकर भी महब फैक्टरी-व्यवस्था की पोर ही कदम बढ़ाया जाता है, और जैसे ही मशीनों को चलाने के लिये मानव-मांस-पेशियों के बजाय भाप हुमा, गया था। सामान्य रूप से देश के लिये और विशेष रूप से फैक्टरी-मजदूरों के लिये यदि इतना अहितकर परिणाम तो उसके पीछे कई कारण मिलकर काम कर रहे थे। अगर परिस्थितियां इजाजत देतीं, तो हम इन कारणों को अधिक स्पष्टता के साथ आपके सामने रखते । बहरहाल, अभी इतना ही कह देना काफ़ी है कि इनमें से सबसे स्पष्ट कारण यह है कि श्रम का निरन्तर प्राधिक्य रहता है। यदि यह न होता, तो ऐसा सत्यानाशी व्यवसाय , जिसे नष्ट होने से बचाने के लिये एक निरन्तर बढ़ती हुई मण्डी की आवश्यकता होती है, कभी जारी न रह पाता । वर्तमान व्यवस्था में व्यवसाय में समय-समय पर पाने वाला ठहराव उतना ही अवश्यम्भावी होता है, जितनी मौत, और इन ठहरावों से हमारी सूती मिलों में ताला पड़ सकता है। लेकिन मानव-मस्तिष्क निरन्तर काम करता रहता है, और यद्यपि हमारा विश्वास है कि जब हम यह कहते है कि पिछले २५ वर्षों में ६० लाख व्यक्ति इस देश को छोड़कर चले गये हैं, तब हम वास्तविकता को कुछ कम करके ही पेश कर रहे हैं, तथापि जनसंख्या में जो प्राकृतिक वृद्धि होती रहती है और पैदावार को सस्ता करने के लिये श्रम का जो विस्थापन होता रहता है, उसके कारण अधिक से अधिक समृद्धि के दिनों में भी वयस्क पुरुषों की एक बड़ी भारी संख्या को फैक्टरियों में किसी भी शर्त पर काम नहीं मिलता।" ("Reports of Insp. of Fact., 30th April, 1863" ['फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३० अप्रैल १८६३'], पृ० ५१-५२।)बाद के एक अध्याय में हम देखेंगे कि जब सूती व्यवसाय पर संकट माया था, उन दिनों हमारे मित्र कारखानेदारों ने मजदूरों के परावास को रोकने के लिये मुमकिन कोशिश की थी और यहां तक कि राज्य के हस्तक्षेप का भी सहारा लिया था। 1 "Ch. Empl. Comm. III Report, 1864". (! aterharatanat aratot frett रिपोर्ट, १८६४'), पृ० १०८, अंक ४४७। .