५२० पूंजीवादी उत्पादन , या पानी जैसी किसी यांत्रिक चालक शक्ति से काम लिया जाने लगता है, वैसे ही यह फेक्टरी-व्यवस्था अस्तित्व में पा जाती है। जहां-तहां कोई उद्योग यांत्रिक शक्ति से भी छोटे पैमाने पर चलाया जा सकता है, पर किसी भी हालत में यह स्थिति बहुत दिनों तक नहीं रहती। इस प्रकार का छोटे पैमाने का उद्योग या तो भाप की शक्ति किराये पर लेकर पलाया जा सकता है, जैसा कि बिरमिंघम के कुछ पंधों में होता है, या छोटे तापमंजनों का उपयोग करके चलाया जा सकता है, जैसा कि बुनाई की कुछ शालाओं में होता है। कोवेन्द्री के रेशम की बुनाई के उद्योग में "कुटीर-फैक्टरियों" का प्रयोग किया गया था। एक मांगन में चारों ओर मोपड़ियों की पंक्तियां बड़ी कर दी गयी थी, बीच में engine house (रंजन का घर) बनाया गया पा और इंजन को पुरों के बरिये झोपड़ियों में रखे हुए करषों से जोड़ दिया गया था। शक्ति के एवज में क्री करवा एक निश्चित रकम किराये के तौर पर देनी पड़ती थी। करघे चाहे चलें या न चलें , साप्ताहिक किराया हर हालत में देना होता था। हर मॉपड़ी में २ से ६तक करणे होते थे। उनमें से कुछ बुनकर की सम्पत्ति होते थे, कुछ को यह उपार खरीद लेता था और कुछ किराये पर ले लेता था। इन कुटीर-पिटरियों और असली फैक्टरी के बीच १२ साल तक संघर्ष चलता रहा। यह संघर्ष अन्त में ३०० कुटीर-फैक्टरियों को तबाह करके ही समाप्त हमा।' वहां कहीं पर स्वयं उत्पादन-प्रमिया के स्वरूप के कारण बड़े पैमाने का उत्पादन अावश्यक नहीं था, वहां पर पिछले कुछ दशकों में गिन नये उद्योगों-मसलन लिफाफे बनाने के उद्योग, लोहे के कलम बनाने के उद्योग इत्यादि-का जन्म हुमा है, फ्रक्टरी अवस्था तक पहुंचने के पूर्व प्राम तौर पर पहले बस्तकारी की और फिर हस्तनिर्माण की दो छोटी-छोटी अन्तरकालीन अवस्थाओं में से गुजरे हैं। वहाँ हस्तनिर्माण के द्वारा किसी वस्तु का उत्पादन कुछ प्रानुक्रमिक मियामों का एक कम न होकर अनेक प्रसम्बड प्रक्रियामों के रूप में होता है, वहां यह संक्रमण बहुत कठिनाई से होता है। इस बात से लोहे के कलम बनाने वाली फैक्टरियां खोलने के रास्ते में बड़ी मुश्किलें पैदा हो गयी थी। फिर भी करीब १५ वर्ष पहले एक ऐसी मशीन का प्राविष्कार जो बिल्कुल अलग-अलग ६ मियाएं एक बार में पूरी कर गलती थी। शुरू-शुरू में जो मोहे के फलम बस्तकारी को प्रणाली के अनुसार बनाये गये , १८२० में ७ पौग शिलिंग फ्री गुल्स (१२ बर्बन) के भाव पर विके। १८३० में ये हस्तनिर्माण के द्वारा बनाये जाने लगे, तो उनका भाव - शिलिंग फ्री गुस्स हो गया। और पाजकल फ्रेपटरी-व्यवस्था २ से लेकर ६ पेंस फ्री गुम्स तक के भाव पर इन कलमों को पोक व्यापारियों को बेच देती है।' , हुमा, 1 , . संयुक्त राज्य अमरीका में इस तरह अक्सर दस्तकारियों को मशीनों के प्राधार पर पुनः चालू कर दिया जाता है, और इसलिये वहां पर जब वह अवश्यम्भावी परिवर्तन होगा तया फैक्टरी-व्यवस्था कायम होगी, तब वहां केन्द्रीकरण की क्रिया ऐसे प्रचण्ड वेग से चलेगी कि योरप और यहां तक कि इंगलैण्ड भी पीछे छूट जायेगा। 'देखिये “Rep. of Insp. of Fact., 31st Oct., 1865" ('फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६५'), पृ. ६४। 'मि. गिलोट ने बिर्मिघम में पहली बड़ी पैमाने की लोहे के कलम बनाने की फैक्टरी खड़ी की थी। यह फैक्टरी १८५१ में ही हर साल १८ करोड़ कलम तैयार करने लगी थी पौर १२० टन इस्पात बर्ष करती थी। संयुक्तांगल राज्य में इस उद्योग का एकाधिकार निर्मिषम को मिला हुआ है, और वह भाषकल परवों कलम तैयार कर रहा है। १८६१ की जनगणना के अनुसार, इस उद्योग में १,४२८ व्यक्ति काम करते थे, जिनमें से १,२६८ लड़कियां और स्त्रियां पीं, जिनकी मायु ५ वर्ष से प्रारम्भ होती थी।
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५२३
दिखावट