मशीनें और माधुनिक उद्योग ५२१ (स) हस्तनिर्माण और घरेलू उद्योगों पर पटरी-व्यवस्था की प्रतिक्रिया . फैक्टरी-व्यवस्था के विकास के साथ-साथ लेती में भी कान्ति हो जाती है, और इन दोनों घटनामों के साथ-साथ उद्योग की अन्य तमाम शालाओं में न केवल उत्पादन बढ़ जाता है, बल्कि उसका स्वरूप ही बदल जाता है। फैक्टरी-व्यवस्था में व्यावहारिक म पाने वाला यह सिवान्त कि उत्पादन की प्रक्रिया का विश्लेषण करके उसे उसकी संघटक प्रवस्थानों में बांट बेना चाहिये और इस तरह को समस्याएं सामने पायें, उनको यांत्रिकी, रसायन और प्राकृतिक विज्ञान की सभी शाखामों का प्रयोग करके हल करना चाहिये,-यह सिद्धान्त अब हर जगह निर्णायक सिद्धान्त बन जाता है। पुनांचे मशीनें पहले सामान तैयार करने वाले उद्योगों को किसी एक तफसीली प्रक्रिया में घुस जाती है और फिर किसी दूसरी प्रक्रिया में प्रवेश कर जाती है। इस प्रकार इन उद्योगों की व्यवस्था का वह गेस स्फटिक, बो पुराने श्रम-विभाजन पर प्राधारित पा, धुल जाता है और निरन्तर होने वाले परिवर्तनों के लिये रास्ता खुल जाता है। इससे बिल्कुल अलग ढंग से सामूहिक मजदूर की बनावट में मौलिक परिवर्तन हो जाता है, मिलकर काम करने वाले व्यक्ति बदल जाते हैं। हस्तनिर्माण-काल के विपरीत अब मागे से थम-विभाजन का प्राधार यह होता है कि वहां कहीं भी सम्भव होता है, वहां पर स्त्रियों, हर उन के बच्चों तथा पनिपुन मजदूरों से और यदि संक्षेप में कहें, तो “cheap labour" (सस्ते श्रम) से काम लिया जाता है,-इंगलैस में इस प्रकार के मजदूरों के लिये इसी विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग किया जाता है। यह बात न केवल हर प्रकार के बड़े पैमाने के उत्पादन पर,- उसमें चाहे मशीनें इस्तेमाल की जाती हों या नहीं, बल्कि तथाकषित घरेलू उद्योगों पर भी लागू होती है, वे चाहे मजदूरों के घरों में चलाये जाते हों और चाहे छोटे-छोटे कारखानों में। माधुनिक काल के इस तथाकषित घरेलू उद्योग और पुराने ढंग के घरेलू उद्योग में नाम के सिवा और कोई समानता नहीं है। पुराने डंग का घरेलू उचोग अपने अस्तित्व के लिये स्वतंत्र शहरी बस्तकारियों, स्वतंत्र किसान की खेती और इनसे भी अधिक इस बात पर निर्भर था कि मजदूर और उसके परिवार के पास रहने का अपना मकान होता था। पुराने ढंग का वह उद्योग फ्रेक्टरी, हस्तनिर्माणशाला या गोराम के एक बाहरी विमाग में बदल दिया गया है। पूंजी फेक्टरी- मजदूरों, हस्तनिर्माण करने वाले कारीगरों और बस्तकारों को तो एक जगह पर बड़ी संख्या में इकट्ठा करके उनका संचालन तो करती है, उनके अलावा वह कुछ प्रवृश्य सूत्रों के द्वारा एक पौर सेना को भी गतिमान बना देती है। यह है घरेलू उद्योगों के मजदूरों की सेना, बो बड़े- बड़े पहरों में रहते हैं और बेहातों में भी फैले हुए हैं। एक मिसाल देखिये लंडनगरी में मैसर्स दिल्ली की एक क्रमीचों की पटरी है। उसके १,००० मजदूर खुब फ्रेपटरी के अन्दर काम करते हैं और ६,००० देहात में बिखरे हुए हैं तथा अपने-अपने घरों में बैठकर काम करते हैं।' माधुनिक हस्तनिर्माण में कैक्टरी की तुलना में ज्यादा बेशर्मी के साथ सस्ती और अपरिपक्व भम-शक्ति का पोवन किया जाता है। इसका कारण यह है कि कंपटरी-व्यवस्था के प्राविधिक मापार-प्रात् मांस-पेशियों की शक्ति के स्थान पर मशीनों से काम लेने और मम के हल्के स्वरूप-का हस्तनिर्माण में लगभग सर्वमा प्रभाव होता है और इसके साथ-साथ स्त्रियों 1 "Children's Employment Commission. 2nd Report, 1864" ('xtar-harto पायोग की दूसरी रिपोर्ट, १९६४'), पृ. LXVII (अड़सठ), अंक ४१२ ।
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