पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५२६

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ५२३ . . . . इनका शिकार बनते हैं। लड़के-लड़कियों को रस्सी बटने के कारखानों में भारी काम करना पड़ता है और नमक की खानों में, मोमबत्तियों की हस्तनिर्माणशालामों में और रासायनिक कारखानों में रात को काम करना पड़ता है। रेशम की बुनाई के व्यवसाय में, अब यह धंधा मशीनों द्वारा नहीं किया जाता, तो करपा चलाते-पलाते लड़के-लड़कियों का बम निकल जाता है। एक सबसे ज्यादा शर्मनाक, सबसे अधिक गन्दा और सबसे कम मजदूरी वाला श्रम चोपड़ों को छांटने का है। इस काम के लिये औरतों और लड़कियों को स्यादा तरजीह से जाती है। यह एक सुविवित बात है कि ब्रिटेन में चीबड़ों का उसका अपना एक विशाल भार तो है ही, उसके अलावा वह पूरे संसार के बीचड़ों के व्यापार की मण्डी बना हुआ है। यहां जापान, दक्षिणी अमरीका के सुदूर राज्यों और कनारी द्वीपों से चौपड़े पाते हैं। लेकिन चीपड़ों की पूर्ति के मुख्य केन्द्र है जर्मनी, फ्रांस, स, इटली, मिम, तुर्को, बेल्जियम और हालेख। ये चोपड़े साव बनाने, बिस्तर के गहे बनाने और shoddy (कतरनों से बनने वाला कपड़ा) तैयार करने के काम में पाते हैं और कागज बनाने के व्यवसाय में कच्चे माल की तरह इस्तेमाल होते हैं। जो लोग चौपड़ों को छांटने का काम करते हैं, वे चेचक तथा छूत की अन्य बीमारियों को फैलाने वाले माध्यम का काम करते हैं और इन बीमारियों के वे जुब पहले शिकार बनते हैं। मजदूरों से किस तरह कमर-सोर काम लिया जाता है, उनको कितना कठिन और अनुपयुक्त श्रम करना पड़ता है और इस प्रकार के श्रम का उनपर बचपन से ही कितना बुरा प्रभाव पड़ता है और वह कैसे उन्हें पशु समान बना देता है, इसकी अच्छी मिसालें पाप न सिर्फ कोयला-सानों में तवा पाम तौर पर सभी खानों में, बल्कि सपरल और इंट बनाने के उद्योग में भी देख सकते हैं। इस उद्योग की मशीनों का अभी हाल में पाविष्कार हुआ है और इंगलैण में अभी केवल जहां-तहां ही उनका उपयोग शुरू हुमा है। इस व्यवसाय में मई और सितम्बर के बीच के दिनों में काम सुबह को ५बजे शुरू होता है और रात के ८ बजे तक चलता रहता है, और जहाँ इंटें खुली हवा में सुलायी जाती है, वहां अक्सर सुबह के ४ बजे से रात के ९ बजे तक काम होता रहता है। यदि सुबह के ५ बजे से रात के ७ बजे तक काम कराया जाये, तो वह "कम" और "हल्का" काम समझा जाता है। छ-छ: और यहां तक कि चार- चार बरस के लड़कों और लड़कियों से काम लिया जाता है। ये बच्चे भी वयस्क मजदूरों के बराबर घण्टों तक काम करते है, और अक्सर बच्चों से और भी ज्यादा देर तक काम कराया जाता है। काम बहुत सस्त होता है और गरमियों की तपन पकान को और भी बढ़ा देती है। मिसाल के लिये, मोल्ले में सपरल बनाने का एक भट्ठा है। वहां एक औरत, जिसकी उम्र २४ बरस की पी, रोजाना २,००० सपरतें बनाया करती थी। २ नन्ही-नन्ही लड़कियां उसकी मदद करती थीं। मिट्टी होकर उसके पास ले जाती थी और सपरलों कार लगाती थीं। ये बरा- बरा सी लड़कियां ३० फुट की गहराई से मिट्टी उठाकर गड़े के बालू किनारों पर पढ़ती थीं . 'उप० पु०, पृ० ११४, ११५, अंक ६,७। कमीशन के सदस्य ने ठीक ही कहा है कि यद्यपि भाम तौर पर मशीनें मनुष्य का स्थान ले रही हैं, तथापि इस व्यवसाय में अक्षरशः लड़के-लड़कियां मशीनों का स्थान ले रहे हैं। 'चीथड़ों के व्यवसाय की रिपोर्ट और बहुत सी तफसीली बातों के लिये देखिये "Public Health, VIII Rep." ('सार्वजनिक स्वास्थ्य की .८ वीं रिपोर्ट'), London, 1866, परिशिष्ट, पृ० १९६-२०८ । .