सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मशीनें और माधुनिक उद्योग ५२९ १ . . इन कोरियों में अक्सर हद से ज्यादा भीड़ होती है और उसके कारण हवा एकदम दूषित हो जाती है। छोटे-छोटे झोपों के पास-पास पाम तौर पर पायी जाने वाली नालियों, पासानों, सड़ी-गली बीचों और गन्दगी का जो घातक प्रभाव होता है, वह अलग है।" स्थान की तंगी का हाल सुनिये : "लेस के एक स्कूल में १८ लड़कियां और एक मालकिन काम करती है, हर व्यक्ति के हिस्से में ३५ धन-फूट स्थान पाता है। एक और स्कूल में, जहां सदा असहनीय बाबू पायी जाती है, १८ व्यक्ति काम करते हैं, जिनमें से हरेक के हिस्से में २४. स्थान पाता है। इस उद्योग में दो-दो और हाई-बाई बरस की उन्न बच्चे भी काम करते हुए पाये जाते हैं।" बकिंघम और बेफोर्ड की काउटियों में जिस स्थान पर लेस बनाने का पंचा समाप्त हो जाता है, उस स्थान से सूती घास की बनी हुई ची बनाने का काम प्रारम्भ हो जाता है। यह पंषा हेर्टफोर्डशायर के एक बड़े हिस्से में और एसेक्स के पश्चिमी तथा उत्तरी भागों में फैला हुआ है। १८६१ में सूजी पास की बुनी हुई थी और सूक्षी पास के टोप बनाने के व्यवसाय में लगे हुए ४०,०४३ व्यक्ति। इनमें से ३,८१५ तो हर उन के पुरुष और बाकी सब औरतें, लड़कियां और बच्चियां थीं। इनमें १४,९१३ की उन्न २० वर्ष से कम थी, और उनमें से लगभग ७,००० बधियां दीं। लेस के स्कूलों की जगह पर यहां "straw-plalt schools" ("सूती घास की बुनाई के स्कूल") है। बच्चे पाम तौर पर अपने चौथे वर्ष में और ३ र ४ वर्ष की उम्र के बीच में ही सूखी घास की बुनाई का काम सीलना शुरू कर बेते हैं। शिक्षा उनको, बाहिर है, तनिक भी नहीं मिलती। बच्चे खुद प्राथमिक स्कूलों को "natural schools" ("प्राकृतिक स्कूल") कहते हैं, ताकि उनको कोई इन बुनाई के स्कूलों के साथ, इन खून चूसने वाली संस्थानों के साथ न गड़बड़ा दे, जिनमें बच्चों को केवल उनकी अपनी माताओं द्वारा निश्चित काम को पूरा कर देने के उद्देश्य से रखा जाता है। साधारणतया इन बच्चों को रोज ३० ग्रम बुनाई करनी पड़ती है। और जब स्कूल का समय समाप्त हो जाता है, तब उनकी माताएं अक्सर उनसे घर पर काम कराती है, और बच्चे रात के १०, ११ और १२ बजे तक काम करते रहते हैं। बच्चों को बार-बार मुंह से घास को नम करना पड़ता है, वो उनका मुंह काट देती है और उंगलियों को बनमी कर देती है।ग. बैल लन्दन के सभी गक्टरों की यह सामूहिक राय बताते हैं कि सोने या काम के कमरे में हर व्यक्ति को कम से ३०० धन-फट स्थान मिलना चाहिये। लेकिन स्थान के मामले में सूजी घास की बुनाई के स्कूलों में लेस बनाने के स्कूलों से भी अधिक उदारता विलायी जाती है। यहाँ "हर व्यक्ति को १२ तवा २२ धन-फूट से कम स्थान मिलता है।" गांच-पायोग के लि• हाइट नामक एक सदस्य ने बताया है कि यदि एक बच्चे को ३ अट लम्बे, ३ फूट चौड़े और ३ फूट अंचे बस में बन्द कर दिया जाये, तो बच्चा जितनी बगह धन-फूट उसके माथे से भी कम होता है। १२ या १४ बरस की उन तक बच्चे इस प्रकार के जीवन का मानन्द लेते हैं। उनके प्रब-भूने, प्रभागे मां-बापों को इसके सिवाय २ .१ . लेगा, १२ 'उप. पु., पृ. XXIX (उनतीस), Xxx (तीस)। 34-45