५३० पूंजीवादी उत्पादन , . और किसी बात की चिन्ता नहीं होती कि अपने बच्चों के जरिये वे जितना स्यावा से ज्यादा कमा सकते हों, कमा लें। बच्चे बड़े होते हैं, तो मां-बाप की एक कौड़ी बराबर भी परवाह नहीं करते, बो स्वाभाविक ही है, और घर छोड़कर चल देते हैं। "कोई पाश्चर्य नहीं, यदि उस पावादी में, जिसका लालन-पालन इस तरह होता है, सदा बहालत और दुराचार का बोलबला रहता है उनकी नैतिकता निम्नतम स्तर पर रहती है औरतों की एक बड़ी संख्या के हरामी बच्चे होते हैं, और वह भी इतनी अपरिपक्व अवस्था में कि दुराचार के मांकड़ों की सबसे अधिक जानकारी रखने वाले व्यक्ति भी देख कर स्तम्भित रह जाते हैं।"1 और इन प्रावणं परिवारों की भूमि सारे योरप का भाव ईसाई देश मानी जाती है,- कम काउंट मॉटालेम्बर्ट का तो यही खयाल है, जो निश्चय ही ईसाई धर्म के एक अधिकारी -कम से उपर्युक्त उद्योगों में दो मजदूरी मिलती है, यह बहुत ही कम होती है (सूजी घास की बुनाई के स्कूलों में बच्चों को ३ शिलिंग की मजदूरी भी कभी-कभार ही मिलती है); पर से हर जगह पर खास तौर पर लेस बनाने वाले रिस्ट्रिक्टों में truck system (बहरत का सामान मालिक की दुकान से खरीदने की प्रणाली) का प्रचार है, जिसका नतीजा यह होता है कि नाम को जो मजदूरी मिलती है, असल में वह और भी कम हो जाती है। . 3 (ब) प्राधुनिक हस्तनिर्माण तथा घरेलू उद्योग का प्राधुनिक यांत्रिक उद्योग में परिवर्तन । इन उद्योगों पर फैक्टरी-कानूनों के लागू हो जाने के कारण इस क्रान्ति का और भी तेज हो जाना स्त्रियों और बच्चों के श्रम का सरासर दुरुपयोग करके, काम करने और जिन्दा रहने की सामान्य रूप से मावश्यक परिस्थितियों को छीनकर और सर्वथा पाशविक ढंग से प्रत्यधिक काम कराके तथा रात को काम लेकर भम-शक्ति को सस्ता करने की जो कोशिशें की जाती हैं, वे पाखिर कुछ ऐसी प्राकृतिक बाधामों से टकराती हैं, जिनको रास्ते से हटाना असम्भव हो जाता है। इन तरीकों को अपना प्राधार बनाकर मालों को सस्ता करने और ग्राम तौर पर पूंजीवादी शोषण करने की जो कोशिशें की जाती है, वे भी पाखिर को इसी तरह की बाबानों से टकराकर रुक जाती है। जैसे ही यह अवस्था पाती है, और उसके माने में बात वर्ष लग जाते हैं,-वैसे ही मशीनों के उपयोग की. घड़ी मा जाती है, और उसी समय से बिखरे हुए घरेलू उद्योग तथा साथ ही हस्तनिर्माण भी जल्दी-जल्दी फ़ैक्टरी-उद्योग में परिवर्तित होने लगते हैं। इस प्रकार के परिवर्तन का एक बहुत ही विराट पैमाने का उदाहरण हमें “wearing appareli (पहनने की पोशा) बनाने के उद्योग की शकल में देखने को मिलता है। Children's Employment , उप० पु०, पृ. XL (चालीस), XLI (इकतालीस)। ? "Child. Empl. Comm. I Rep., 1863" ('atharta ATITT of neemt रिपोर्ट, १९६३'), पृ १८५।
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