पूंजीवादी उत्पादन . भाषण से मिल सकती है, जो उन्होंने १९६३ में एग्निवरा में सामाजिक विज्ञान कांग्रेस के सामने दिया था। उसमें सीनियर ने अन्य बातों के अलावा यह भी बताया है कि उच्च और मध्य मेणियों के बच्चों को स्कूलों में जो नीरस और व्यर्व के लिये लम्बा समय बिताना पड़ता है, उससे शिक्षक का मम किस तरह क़िबूल ही बढ़ जाता है, और शिक्षक किस तरह "न केवल अनुपयोगी ढंग से, बल्कि सर्वषा हानिकारक ढंग से बच्चों के समय, स्वास्थ्य और शक्ति का अपव्यय किया करता है। जैसा कि रोबर्ट प्रोवेन ने विस्तार के साथ हमें बताया है, फैक्टरी-व्यवस्था में से भावी शिक्षा की कली फूटती है, - उस शिक्षा की, वो एक निश्चित मायु से ऊपर के प्रत्येक बच्चे के लिये शिक्षा और व्यायाम के साथ-साथ उससे कोई उत्पादक मम कराने का भी प्रबंध करेगी, और यह केवल इसलिये नहीं किया जायेगा कि यह उत्पादन की कार्य-शामता को बढ़ाने का एक तरीका है, बल्कि इसलिये भी कि पूरी तरह विकसित मानव के उत्पादन का यह एकमात्र तरीका है। जैसा कि हम देख चुके हैं, माधुनिक उद्योग प्राविधिक साधनों के द्वारा हस्तनिर्माण के उस मम-विभाजन को समाप्त कर देता है, जिसके अन्तर्गत हर पावनी बीवन भर के लिये एक अकेली तफसीली क्रिया से बंध जाता है। साथ ही इस उद्योग का पूंजीवादी रूप इसी श्रम- विभाजन को पहले से भी अधिक भयानक शकल में पुनः पैदा कर देता है। जिसे सचमुच फैक्टरी कहा जा सकता है, उसमें मजदूर को मशीन का जीवित उपांग बनाकर ऐसा किया जाता है और फैक्टरी के बाहर हर जगह कुछ हद तक मशीनों तवा मशीन पर काम करने . " शिक्षा और श्रम को जोड़ दिया जाये। जाहिर है, काम बहुत कठिन, नागवार या स्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं होना चाहिये। परन्तु शिक्षा और श्रम के मिलाप के लाभदायक होने के बारे में मुझे जरा भी सन्देह नहीं है। इसलिये कि मेरे बच्चों की शिक्षा में विविधता पा सके, मैं चाहता हूं कि वे पढ़ाई के साथ-साथ कुछ काम भी किया करें और खेलें कूदें भी। ("Ch. Empl. Comm.V Rep." ['बाल-सेवायोजन आयोग की ५ वीं रिपोर्ट '], पृ० ६२, अंक ३६।) ISenior, उप० पु०, पृ० ६६ । माधुनिक उद्योग एक ख़ास स्तर पर पहुंचकर उत्पादन की प्रणाली में तथा उत्पादन की सामाजिक परिस्थितियों में जो क्रान्ति पैदा कर देता है, उसके द्वारा वह किस तरह लोगों के दिमागों में भी इनकिलाब पैदा कर सकता है, इसकी एक अच्छी मिसाल सीनियर के १८६३ के भाषण की, १८३३ के फैक्टरी-कानून की उन्होंने जो तीव्र मालोचना की थी, उससे तुलना करके देखी जा सकती है। इसका एक और उदाहरण देखना हो, तो उपर्युक्त कांग्रेस के विचारों की इस तथ्य से तुलना कीजिये कि इंगलैण्ड के कुछ देहाती जिलों में गरीब मां-बापों को अपने बच्चों को शिक्षा देने की मुमानियत है, और यदि वे यह प्रतिबंध तोड़ते हैं, तो उनको भूख से तड़प-तड़पकर मर जाना पड़ता है। मिसाल के लिये, मि० स्नेल के कथनानुसार, सोमरसेटशायर की यह रोजमर्रा की घटना है कि जब कोई गरीब पादमी चर्च की भोर से सार्वजनिक सहायता मांगता है, तो उसे अपने बच्चों को स्कूल से हटा लेने के लिये मजबूर किया जाता है। फेल्यम के पातरी मि० वोल्लार्टन ने भी कुछ इस तरह के उदाहरण बताये है, जहां कुछ परिवारों को इस बिना पर किसी भी तरह की सहायता देने से इनकार कर दिया गया था कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजते है! .
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