पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५५२

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मशीनें और माधुनिक उद्योग पंधे “mysteries (mysteres) (भेव) कहलाते थे। इन मेवों को केवल वे ही लोग मान सकते थे, जिन्हें विधिवत् बीना मिल चुकी थी,-ौर कोई उनको नहीं जान सकता पा। परन्तु माधुनिक उद्योग ने उस नकाब को तार-तार कर अलग कर दिया, जिसने उत्पादन की सामाजिक क्रिया को खुद मनुष्यों की प्रांतों से छिपा रखा था और जिसके कारण उत्पादन की स्वयंस्फूर्त ढंग से बंटी हुई विभिन्न शालाएं केवल बाहरी पावमियों के लिये ही नहीं, बल्कि दीक्षितों के लिये भी पहेलियां बनी हुई थी। माधुनिक उद्योग ने हर क्रिया को उसकी संघटक गतियों में बांट देने के सिद्धान्त का अनुसरण किया और ऐसा करते हुए इस बात का कोई खपाल नहीं किया. कि मनुष्य का हाथ इन गतियों को कैसे सम्पन्न कर पायेगा। इस सिदान्त ने प्रौद्योगिकी के नये प्राधुनिक विज्ञान को जन्म दिया। प्रौद्योगिक प्रक्रियानों के नाना प्रकार के, प्रकटतः असम्बद प्रतीत होने वाले और पपराये हुए रूप निश्चित डंग के उपयोगी प्रभाव पैसा करने के लिये प्राकृतिक विज्ञान को सचेतन और सुनियोजित ढंग से प्रयोग करने के तरीकों में परिणत हो गये। प्रौद्योगिकी ने गति के उन थोड़े से मौलिक रूपों का भी पता लगाया, जिनमें से किसी न किसी रूप में ही मानव-शरीर की प्रत्येक उत्पादक कार्रवाई व्यक्त होती है, हालांकि मानव-शरीर नाना प्रकार के प्रोवरों को इस्तेमाल करता है। यह उसी तरह की बात है, जैसे यांत्रिकी का विज्ञान अधिक से अधिक संश्लिष्ट मशीनों में भी सरल यांत्रिक शक्तियों की निरन्तर पुनरावृत्ति के सिवा और कुछ नहीं देखता। माधुनिक उद्योग किसी भी प्रक्रिया के वर्तमान रूप को कभी उसका अन्तिम रूप नहीं समझता और न ही व्यवहार में उसे ऐसा मानता है। इसलिये इस उद्योग का प्राविधिक प्राधार कान्तिकारी ढंग का है, जब कि इसके पहले वाली उत्पादन की तमाम प्रणालियां बुनियादी तौर पर रूढ़िवादी घो। माधुनिक उद्योग मशीनों, रासायनिक क्रियाओं तथा अन्य तरीकों के द्वारा 11 १॥ एटिएन्न बोयलियो की प्रसिद्ध रचना "Livre des métiers" में हम यह प्रदिष्ट पाते हैं कि जब किसी कारीगर को उस्तादों की श्रेणी में प्रवेश करने की अनुमति मिलती थी, तब उसे यह सौगंध खानी पड़ती थी कि वह "अपने भाइयों से भाइयों जैसा प्यार करेगा, उनके अपने धंधों में उनकी सहायता करेगा, कभी जान-बूझकर अपने व्यवसाय के भेद नहीं बोलेगा और इसके अलावा सब के हितों का ध्यान रखते हुए कभी अपने माल की प्रशंसा करने के लिये दूसरों की बनायी हुई वस्तुओं के अवगुणों की मोर खरीदार का ध्यान प्राकर्षित नहीं करेगा। 'उत्पादन के प्रौजारों में लगातार क्रान्तिकारी परिवर्तन किये बिना पूंजीपति-वर्ग का अस्तित्व असंभव है, और इस तरह उत्पादन के सम्बंधों में और उनके साथ-साथ तमाम सामाजिक सम्बंधों में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जाता है। पुराने जमाने के तमाम प्रौद्योगिक वर्गों की बात बिलकुल उल्टी थी। उत्पादन के पुराने तरीकों को ज्यों का त्यों बनाये रखना उनके जीवित रहने की पहली शर्त थी। उत्पादन प्रणाली में निरंतर क्रान्तिकारी परिवर्तन , सामाजिक सम्बंधों में लगातार उपल-पुपल, शाश्वत अस्थिरता और हलचल-पूंजीवादी युग की ये मुख्य विशेषताएं है, जो पहले के सभी युगों से उसे भिन्न बना देती है। अपने तमाम प्राचीन और पूज्य कहलाने वाले पूर्वग्रहों तथा मतों के साथ सब गतिहीन और जड़ सम्बंध समाप्त कर दिये जाते हैं। नये सम्बंधों के बनने में देर नहीं होती कि वे भी पुराने पड़ जाते है, उनके रूड़ हो जाने की नौबत ही नहीं मा. पाती। जिन चीजों को गेस समझा जाता था, वे हवा में उड़ जाती है, जिन्हें पवित्र माना जाता था, वे भू-मुंठित हो रही है, और अन्त में मनुष्य मजबूर हो जाता है कि वह